समंदर में मछलियों को पकड़ने के लिए प्लास्टिक के बने जाल का इस्तेमाल होता है, लेकिन कभी आपके दिमाग में ये ख़याल आया कि जब जाल किसी काम नहीं रहते तो इनका क्या होता है? ज़ाहिर सी बात है प्लास्टिक ये जाल प्रदूषण बढ़ाने का काम करते हैं, लेकिन तमिलनाडु में इसका भी हल निकाल लिया गया है।
तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक अनोखी पहल शुरू की है, अब यहाँ पर कोई अपने बेकार जाल को फेंकता नहीं, बल्कि उसे बेचकर पैसे कमा रहा है।
अगस्त 2024 में शुरू हुआ था तमिलनाडु फिशनेट इनिशिएटिव प्रोजेक्ट, जिसके ज़रिए समुद्री कचरे को काम किया जा रहा है।
तमिलनाडु, जिसकी तटरेखा बंगाल की खाड़ी के किनारे 1,076 किलोमीटर तक फैली हुई है, इस पहल के तहत 13 तटीय जिलों और 52 प्रमुख मछली पकड़ने वाले गाँवों में काम किया जा रहा है। 2023-24 की विधानसभा सत्र के दौरान, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री ने इस परियोजना के लिए 1 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की थी।

क्योंकि ALDFG (Abandoned, Lost, and Discarded Fishing Gear) समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा है और घोस्ट फिशिंग जैसी समस्याओं का कारण बनता है। पिछले कुछ दशकों में, मछुआरे प्लास्टिक से बने जालों पर इस्तेमाल करते आ रहे हैं।
इसके लिए सेंटर बनाया गया है, जहाँ पर मछुआरे पुराने फिशिंग नेट जमा करते हैं, और उन्हें इसके 40 रुपए प्रति किलो मिलते हैं। इससे न केवल पर्यावरण को लाभ हुआ बल्कि मछुआरों का भी कुछ कमाई हो गयी। अगस्त 2024 से अब तक इस योजना के तहत 12,984 किलो फिशिंग नेट जमा किए गए, और मछुआरों को कुल 5.20 लाख रुपए का भुगतान किया गया।
How TN is turning waste into wealth- alongside conserving marine biodiversity ! Here is a project to ponder on this Global Recycling Day. The Tamil Nadu Fishnet Initiative is tackling plastic pollution on ground with the local community. At the Kasimedu Fishing Harbour in… pic.twitter.com/bloiMD4Bxp
— Supriya Sahu IAS (@supriyasahuias) March 18, 2025
तमिलनाडु स्थानीय स्तर पर प्रति वर्ष 6,000 टन मछली जाल का उपयोग करता है, जबकि 9,000 टन मछली जाल का निर्यात किया जाता है। इस कार्यक्रम के तहत रीसाइक्लिंग यूनिट्स भी खोली गई हैं, जो घरेलू सामान, दोबारा इस्तेमाल होने वाले सामान बना रहे हैं।
रीसाइक्लिंग से जीवन में कई बदलाव आ सकते हैं, क्योंकि प्रदूषण फैलाने वाले इंसान ही हैं। अगर उन्हें यह समझ आ जाए कि इसे कैसे रोका जा सकता है या बेकार चीजों का दोबारा उपयोग कैसे किया जा सकता है, तो बिना किसी झिझक के इसे अपनाना एक बड़ी और सकारात्मक पहल होगी।
रीसाइकल इंडिया फाउंडेशन के अनुसार, “घोस्ट फिशिंग नेट पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। इससे समुद्री जीवों की मौत हो सकती है, जिससे उनकी संख्या घटेगी और पूरा इकोसिस्टम प्रभावित होगा।
सिंगल-यूज़ प्लास्टिक आज पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। इसके रिसाइक्लिंग के बाद इसे बैग, ईंटें और सड़क निर्माण में इस्तेमाल किया जा सकता है।

हर साल 18 मार्च को ग्लोबल रिसाइक्लिंग डे मनाया जाता है, जो पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करना और पृथ्वी का ध्यान रखना है।
पर्यावरण की स्थिरता बनाए रखने के लिए रिसाइक्लिंग ज़रूरी है। यह प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, प्रदूषण को कम करने, ऊर्जा बचाने और लैंडफिल में जाने वाले कचरे को घटाने में मदद करता है, जिससे न केवल आने वाली पीढ़ियों को बल्कि आज की पीढ़ी को भी फायदा होगा।
अक्सर लोगों को प्रदूषण एक मामूली समस्या लगती है, क्योंकि वे सोचते हैं कि इसका उनकी ज़िंदगी से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन असल में अगर पर्यावरण सही नहीं रहेगा, तो अनेक बीमारियाँ फैलेंगी, गर्मी ज़्यादा होगी और प्रदूषण के कारण ज़िंदगी मुश्किल होती जाएगी।
पेरिस एग्रीमेंट (Paris Agreement) 2015 में अपनाया गया एक ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करना है। इसके तहत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती कर इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का प्रयास जारी है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 80% संभावना है कि अगले पांच वर्षों में से कम से कम एक वर्ष ऐसा होगा जब वैश्विक तापमान अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगा। इससे गर्मी और अधिक बढ़ेगी, समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों को कई जोखिमों का सामना करना पड़ेगा।

समुद्री जीवन महासागरों, झीलों और नदियों के संरक्षक होते हैं। वे जलवायु को नियंत्रित करने, आजीविका प्रदान करने और इकोसिस्टम को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हमें ग्रामीण भारत से सीख लेनी चाहिए। भारत में सदियों से सस्टेनेबल को अपनाया गया है, लेकिन आधुनिक शहरी जीवनशैली ने उनसे कुछ सीखा नहीं । ग्रामीण भारत में लोग चीजों को फेंकने के बजाय उनकी मरम्मत करके उनका दोबारा इस्तेमाल करते हैं। जुगाड़ की परंपरा में भी यह देखने को मिलता है कि लोग कम सामान से भी बहुत कुछ बना लेते हैं।
हालांकि, भारत में फास्ट फैशन ब्रांड्स के बढ़ते प्रभाव ने सस्ते लेकिन कम टिकाऊ कपड़ों को बढ़ावा दिया है। इससे लोग हर फंक्शन के लिए नए कपड़े खरीदने लगे हैं, जिससे टेक्सटाइल वेस्ट की समस्या और गहरी होती जा रही है।
क्यों मनाया जाता है ग्लोबल रिसाइक्लिंग डे?
ग्लोबल रिसाइक्लिंग डे की शुरुआत सबसे पहली बार रंजीत बक्सी ने 2015 में ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल रिसाइक्लिंग (BIR) के दुबई सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण के दौरान किया था। उन्होंने रिसाइक्लिंग के महत्व पर जोर दिया। पहला आधिकारिक ग्लोबल रिसाइक्लिंग डे 18 मार्च, 2018 को मनाया गया, जो BIR की 70वीं वर्षगांठ का प्रतीक था।
CSIRO की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आबादी 1.4 बिलियन से अधिक है और यहाँ हर दिन 26,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जो लगभग 26,000 छोटी कारों के वजन के बराबर है।
यदि इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया, तो आने वाले समय में पर्यावरण खतरे में हैं।