इस दिवाली आप भी जलाइए ये ख़ास दीया, एक बार तेल डालने के बाद 24 घंटे रहेगा रौशन

छत्तीसगढ़ के कुम्हारपारा गाँव के रहने वाले अशोक चक्रधारी के बनाए गए ये खास दीये 24 घंटे तक आपके घर को रोशन कर सकते हैं

िवाली में जब लोग अपने घरों को बल्ब की रंगीन झालरों से सजाने लगे हैं, मिट‍्टी के दीयों के बिना दीपावली का त्यौहार कहाँ पूरा हो सकता है, ऐसे में अगर आपको कोई ऐसा दीया मिल जाए जिसमें एक बार तेल डालने पर लगातार 24 घंटे तक जलता रहे तो क्या ही बात हो।

अशोक चक्रधारी ने अपनी पारंपरिक कारीगरी में विज्ञान का थोड़ा सा मिश्रण कर एक ऐसा तेल का दीया तैयार किया है, जो लगातार पूरे दिन तक जल सकता है।

छत्तीसगढ़ के कोंडागाँव जिला मुख्यालय से लगभग छह किलोमीटर दूर मसौरा ग्राम पंचायत के कुम्हार पारा गाँव अपनी मिट्टी की कारीगरी के लिए जिले ही नहीं पूरे बस्तर में मशहूर हैं।

अशोक ने अपने चाक पर बहुत सारे प्रयासों और असफलताओं के बाद इस इसे बनाया है, जिससे उन्हें काफी सराहना मिली। अशोक चक्रधारी गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “अब तो देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी माँग बढ़ गई है।”

54 साल के अशोक आगे कहते हैं, “मैंने केवल चौथी कक्षा तक पढ़ाई की है। मिट्टी के बर्तन बनाने का काम भी घटता जा रहा है क्योंकि बाजार में स्टील और प्लास्टिक के आकर्षक सामान लोगों को ज्यादा लुभाते हैं। लेकिन इन मिट्टी के दीयों ने हम जैसे कुम्हारों को एक नई पहचान दी है।”

कुम्हारपारा गाँव में कुम्हारों के करीब दो सौ घर हैं। ज्यादातर परिवार मिट्टी के बर्तन ही बनाते हैं, लेकिन कई परिवार ऐसे भी हैं जो टेराकोटा मूर्तियां भी मूर्तियां भी बनाते हैं।

चौबीस घंटे तक जलने वाला यह दीया तीन भागों से बना होता है। इसमें एक स्टैंड, एक गुंबदनुमा कंटेनर जिसमें एक छोटी सी पाइप लगी होती है, और दीया होता है। इस गुंबद में तेल भरा जाता है और इसे उलटकर स्टैंड पर रखा जाता है। इसकी छोटी पाइप से तेल धीरे-धीरे दीये की बत्ती पर गिरता रहता है और लौ को जिंदा रखता है। चक्रधारी ने बताया, “इस दीये का एक सेट बनाने में मुझे लगभग एक घंटा लगता है। एक दिन में मैं लगभग 10 सेट बना लेता हूँ।”

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इस दीये का विचार चक्रधारी को एक कुम्हार से मिला था, जिससे वह वर्षों पहले भोपाल में मिले थे। उन्होंने कहा, “लेकिन मैंने इसे सही तरीके से बनाने से पहले कई बार प्रयास किया और असफल रहा।”

अब चक्रधारी के दीयों की बहुत माँग है। उन्होंने बताया कि उनके साथ लगभग आठ-दस अन्य कुम्हार भी इन दीयों को बना रहे हैं, लेकिन फिर भी माँग पूरी नहीं हो पा रही है।

चक्रधारी हंसते हुए बताते हैं कि कुछ समय पहले तक मिट्टी के बर्तनों की इतनी कम माँग थी कि उनके साथी कुम्हारों ने चाक चलाना बंद कर दिया था। “लेकिन आज सभी अधिकारी मुझसे यह दीया खरीदने आते हैं और अन्य राज्यों से भी इन दीयों की काफी माँग है,” उन्होंने गर्व से कहा। चक्रधारी को कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार भी मिल चुके हैं। उन्होंने अपने गाँव में ‘झिटकू मितकी’ नामक एक छोटा सा वर्कशॉप/दुकान केंद्र भी स्थापित किया है, जहाँ वह अपनी मिट्टी की कारीगरी का प्रदर्शन करते हैं।

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