समझिए कैसे होती है चकबंदी और क्यों ज़रूरी है चकबंदी कराना

आमतौर पर किसान चकबंदी प्रक्रिया को काफी जटिल मानते हैं; लेकिन इसे अगर समझ लें तो चकबंदी के दौरान होने वाली दिक्कतों से बच सकते हैं ।
#Chakbandi

ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार के बढ़ने के साथ ही खेती की जमीनों में बँटवारा होता रहता है। ऐसे में एक समय के बाद पैतृक खेत, बाग जैसी ज़मीने छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटी रहती हैं। इसके कारण किसानों को छोटे ज़मीन के टुकड़ों पर खेती करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

इतना ही नहीं, लम्बे समय के बाद गाँवों में खेत की सीमाओं संबंधी विवाद, सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण आदि की शिकायतें बढ़ जाती हैं, जिसके कारण सरकार चकबंदी कराती है।

किसानों की सहूलियत के लिए शुरू की गई चकबंदी की प्रक्रिया काफी अहम होती है, लेकिन इस प्रक्रिया की जानकारी किसानों को काफी कम होती है या गाँव स्तर पर कुछ प्रभावशाली लोग इस प्रक्रिया से आम लोगों को दूर रखना ही बेहतर समझते हैं। अगर किसान लगातार चकबंदी प्रक्रिया पर नज़र रखें और जानकारी लेते रहे तो चकबंदी उनके लिए सहूलियत भरी हो सकती हैं।

कब हुई चकबंदी की शुरुआत?

उत्तर प्रदेश में चकबंदी योजना की शुरुआत साल 1954 में मुजफ्फरनगर जिले की कैराना तहसील और सुल्तानपुर जिले की मुसाफिर खाना तहसील से हुई थी।

सफल परीक्षण के बाद चकबंदी योजना को साल 1958 से पूरे प्रदेश में लागू किया गया। चकबंदी योजना के लिए चकबंदी संचालक/आयुक्त के अधीन चकबंदी विभाग का गठन किया गया।

क्या है चकबंदी की प्रक्रिया

जोत चकबन्दी अधिनियम की धारा 4(1), 4(2) के तहत गाँवों में चकबंदी कराने के लिए राज्य सरकार विज्ञापन जारी कराती है। इसके बाद चकबंदी आयुक्त द्वारा धारा 4क (1), 4क (2) के तहत चकबंदी प्रक्रिया शुरू करने की अधिसूचना जारी करते हैं ।

गाँवों में चकबंदी की अधिसूचना जारी होने के बाद उस ग्राम के राजस्व न्यायालय मुकदमें अप्रभावी हो जाते हैं। इस दौरान चकबंदी बंदोबस्त अधिकारी की अनुमति के बिना कोई भी खातेदार (किसान) अपनी ज़मीन का इस्तेमाल खेती से जुड़े काम के अलावा नहीं कर सकता है।

चकबंदी अधिसूचना ज़ारी होने के बाद ग्राम में चकबंदी समिति का गठन भूमि प्रबंधन समिति के सदस्यों में से किया जाता है, जिसका अध्यक्ष ग्राम प्रधान होता है। यह समिति चकबंदी प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर पर चकबंदी अधिकारियों को सहयोग और परामर्श देती हैं।

चकबंदी लेखपाल गाँव में जाकर अधिनियम की धारा-7 के तहत भू-चित्र संशोधन, स्थल के अनुसार करता है और चकबंदी की धारा-8 के तहत पड़ताल का काम करता है, जिसमें गाटो की भौतिक स्थिति, पेड़, कुओं, सिंचाई के साधन आदि का अकंन आकार पत्र-दो में करता है। इसके अलावा खतौनी में पाई गई अशुद्धियों का अंकन आकार-पत्र 4 में करता है।

पड़ताल के बाद सहायक चकबंदी अधिकारी द्वारा चकबंदी समिति के परामर्श से भूमि का विनिमय अनुपात का निर्धारण गाटो की भौगोलिक स्थिति आदि के आधार पर किया जाता है। अधिनियम की धारा-8 (क) के तहत सिद्धांतों का विवरण पत्र तैयार किया जाता है, जिसमें कटौती का प्रतिशत, सार्वजानिक उपयोग की भूमि का आरक्षण और चकबंदी की प्रक्रिया के दौरान अपनाए जाने वाले सिद्धांतों का उल्लेख किया जाता है।

प्रारंभिक स्तर पर की गई पूरी कार्यवाहियों से खातेदार को अवगत कराने के लिए अधिनियम की धारा-9 के तहत आकार-पत्र 5 का वितरण किया जाता है, जिसमें खातेदार अपने खाते की स्थिति और गाटो के क्षेत्रफल की अशुद्धियाँ जान जाता है।

आकार-पत्र 5 में दिए गए विवरणों के आधार पर अगर किसान ( खातेदार) को आपत्ति है तो किसान लिखित आपत्ति सहायक चकबंदी अधिकारी के सामने पेश करता है, जिसके बाद प्राप्त आपत्तियों के आधार पर सहायक चकबंदी अधिकारी द्वारा अभिलेखों को शुद्ध करते हुए आदेश पारित किये जाते हैं, जो खातेदार ( किसान) इन आदेशों से सहमत नहीं होते हैं, वो बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी के यहाँ अपील कर सकता है।

धारा-9 के तहत वादों के निस्तारण के बाद धारा-10 के तहत पुनरीक्षित खतौनी बनाई जाती है, जिसमें खातेदारों की जोत सम्बन्धी, गलतियों को शुद्ध रूप में दर्शाया जाता है। सहायक चकबंदी अधिकारी द्वारा चकबंदी समिति के परामर्श से चकबंदी योजना बनाई जाती है और धारा-20 के तहत आकार पत्र-23 भाग-1 का वितरण किया जाता है।

चकबंदी बंदोबस्त अधिकारी द्वारा प्रस्तावित चकबंदी योजना को धारा-23 के तहत पुष्ट किया जाता है, जिसके बाद नई जोतों पर खातेदारों को कब्ज़ा दिलाया जाता है। अगर कोई खातेदार इस प्रक्रिया से खुश नहीं है तो खातेदार धारा-48 के तहत उप संचालक चकबंदी के न्यायालय में निगरानी वाद दायर कर सकता है।

अधिनियम की धारा-27 के तहत रिकॉर्ड (बंदोबस्त) तैयार किया जाता है, जिसमें आकार पत्र-41 और 45 बनाया जाता है। नए नक़्शे का निर्माण किया जाता है, जिसमें पुराने गाटो के स्थान पर नये गाटे बना दिए जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया की हर स्तर पर जाँच की जाती है।

चकबंदी के लिए ग्राम सभा प्रस्ताव देती है

चकबंदी प्रक्रिया को समझाते हुए उत्तर प्रदेश चकबंदी विभाग के पूर्व उपायुक्त महेन्द्र सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “सबसे पहले चकबंदी के लिए ग्राम सभा प्रस्ताव देती है, चकबंदी विभाग के अधिकारी पड़ताल करने के बाद रिपोर्ट देते हैं कि यह गाँव चकबंदी के लायक है या नहीं, उसके बाद ही जिलाधिकारी द्वारा प्रदेश सरकार को प्रस्ताव भेजा जाता है, उसके बाद सरकार द्वारा धारा-4 लगाने के बाद चकबंदी की प्रक्रिया शुरू होती है।”

“ग्राम पंचायत में चकबंदी की प्रक्रिया शुरू होते ही राजस्व के रिकार्ड तहसील से चकबंदी विभाग को दे दिए जाते हैं; जब चकबंदी पूरी हो जाती है तो धारा-52 लगा दी जाती है, मतलब चकबंदी पूरी; जिसके बाद राजस्व रिकॉर्ड तहसील को फिर से पहुँचा दिए जाते हैं। ” महेंद्र सिंह ने आगे कहा।

वो आगे बताते हैं, “चकबंदी के दौरान ज़मीन की मालियत लगाई जाती है; अगर किसी की सबसे अच्छी ज़मीन होती है उसकी कीमत ज़्यादा होती है तो अच्छी ज़मीन की कीमत सौ पैसे होती है, सबसे कम चालीस पैसे में लगाई जाती है।”

चकबंदी की प्रक्रिया के दौरान होने वाले विवाद के बारे में समझाते हुए महेन्द्र सिंह करते हैं, “चकबंदी में हम सब के साथ अच्छा कर नहीं पाते हैं; किसी को अच्छा चक (खेत) मिल जाता है, तो किसी का नुकसान हो जाता है; नब्बे प्रतिशत तक तो सही होता है, उसके बाद 10 प्रतिशत तो उड़ान चक बनते ही हैं जिसे लेकर लोग विवाद करते हैं।”

‘उड़ान चक’ उन्हें कहा जाता है जो किसी किसान को मूल स्थान से दूर दे दिए जाते हैं। इसके साथ ही, चकबंदी के दौरान दो से पाँच प्रतिशत तक की कटौती की जाती है। बचत की ज़मीन को खेलकूद, पंचायत घर के लिए छोड़ दिया जाता है।

क्या होते हैं ‘चक आउट’ खेत?

बाग, मकान या आबादी से लगा हुआ खेत है, तो उसे चकबंदी से बाहर कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया पड़ताल के बाद की जाती है।

लखनऊ के बख्शी का तालाब ब्लॉक के सहायक चकबंदी अधिकारी प्रवीण सिंह गौतम बताते हैं, “चकबन्दी में सबसे ज़्यादा विवाद, टाइटल, यानी खेत का मालिकना हक़ से सम्बंधित आते हैं; इसकी वजह चकबंदी टीम की पड़ताल के समय सही जानकारी उपलब्ध कराना होता है; जैसे किसी किसान परिवार के मुखिया की मौत हो गई तो उसके उत्तराधिकारियों को सही समय पर इसकी सूचना उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि टाइटल प्रक्रिया के दौरान टाइटल बदला जा सके।”

वो आगे कहते हैं, “दूसरा सबसे मुश्किल काम होता है कब्जा दिलाना; किसान बोलता है हम कब्जा नहीं देंगे, जब कोई किसान संतुष्ट नहीं होता है तो मुकदमा फाइल कर देता है; कब तक यह मुकदमा निपटे यह तय नहीं होता है, अगर एक बार कागज पर चक बदल गया, तो मुकदमा निपटने के बाद ही उसकी यथा स्थिति हो सकती है, मुकदमे के बीच में जिसे जो दे दिया जाता है वही लेना पड़ता है।”

किसान किस स्तर पर सजग रहें

जब चकबंदी की शुरूआती पड़ताल होती है उसी समय किसान को अगर कोई आपत्ति है तो दर्ज करानी चाहिए। साथ ही चकबंदी टीम को सही जानकारी देनी चाहिए। इसके बाद किसान को परचा नम्बर 5 दिया जाता है। इसमें किसान की पूरी कुंडली दर्ज होती है। जैसे खाता का विवरण, ज़मीन का रकबा, गाटा संख्या,ज़मीन की मालियत, विभाजन आदि दर्ज होता है।

“पर्चा नम्बर 5 में किसान को आपत्ति दाखिल करने के लिए समय दिया जाता है। अगर परचा 5 मिलने के बाद किसान समय से आपत्ति दर्ज करा दें तो किसानों के लिए और चकबंदी टीम दोनों के लिए सुविधाजनक होता है। ” सहायक चकबंदी अधिकारी प्रवीण सिंह गौतम ने बताया।

कौन करता है पंचायत की चकबंदी प्लानिंग ?

सहायक चकबंदी अधिकारी (एसीओ) की टीम में कानूनगो और लेखपाल का काम महत्वपूर्ण होता है।

महेंद्र सिंह बताते हैं, “सहायक चकबंदी अधिकारी सबसे पहले चक काटने की योजना बनाता है, जो प्लानिंग बनाने का काम होता है वो सहायक चकबंदी अधिकारी का काम होता है; यही चक काटने की योजना बनाता है, वह जितनी अच्छी योजना बना देता है उतने ही विवाद कम होते हैं।”

चकबंदी से खुश नहीं हैं तो क्या करें ?

अगर कोई चकबंदी से खुश नहीं है तो एसीओ के बाद चकबंदी अधिकारी (सीओ) के यहाँ अपील कर सकता है। इसके बाद एसओसी फिर ,डीडीसी के यहाँ अपील की जाती है। यहाँ भी बात न बने तो हाई कोर्ट में पील की जाती है।

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