लखनऊ। किसी व्यक्ति की मौत के बाद मौत के कारणों को पता लगाने के लिए मृतक के शरीर के कुछ आंतरिक अंगों को सुरक्षित रखा जाता है, इसे विसरा कहते हैं। बिसरा का रासायनिक परीक्षण करने के बाद मौत की वजह स्पष्ट हो जाती है। विसरा सैम्पल की जांच फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री में होती है।
राजकीय मेडिकल कॉलेज बांदा के फॉरेंसिक मेडिसिन के प्रो. एके सिंह ने बताया, ” किसी व्यक्ति का शव देखने पर उसकी मृत्यु संदिग्ध लगे या उसे जहर देने की आशंका जताई जा रही हो तो उस व्यक्ति का विसरा सुरक्षित रख लिया जाता है। बाद में जांच के बाद स्थिति का पता लगाया जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो मानव शरीर के अंदरुनी अंगों फेफड़ा, किडनी, आंत को विसरा कहा जाता है।”
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” किस अंग को कितना सुरक्षित रखना है यह भी निश्चित होता है। मृतक के शरीर से 100 ग्राम खून, 100 ग्राम पेशाब, 500 ग्राम लीवर सुरक्षित रखा जाता है। इसे सेचूरेटेड सॅाल्ट सोल्यूशन में सुरक्षित रखा जाता है, जिससे बाद में जांच करने पर सही रिपोर्ट पता किया जा सके और किसी और अन्य जहर के लक्षण न आएं।” प्रो. एके सिंह ने आगे बताया।
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विसरा को तीन शीशे के जारों में सुरक्षित रखा जाता है, एक में जितने भी पाचन तंत्र हैं उन्हें रखते हैं, दूसरे में ब्रेन, किडनी, लीवर और तीसरे में ब्लड को रखा जाता है। देश में प्वाइजनिंग इंफार्मेशन सेंटर बहुत कम हैं, जहां यह डाटा बनाया जा सके की देश में कितने लोग जहर खाने से मर रहे हैं। यूपी में तो एक भी ऐसा सेंटर नहीं है। मेडिकल कॉलेज में भी फॉरेंसिक साइंस लैब नहीं होता है, जहां यह पता लगाया जा सके कि व्यक्ति की मौत किन कारणों से हुई है। जिस वजह से यह पता लगा मुश्किल होता कि कितनी मात्रा में किस जहर से व्यक्ति की मौत हुई है।
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