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क्या जैव ईंधन के इस्तेमाल से खाद्य सुरक्षा पर पड़ सकता है असर?

फरवरी 2024 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने "इलेक्ट्रिसिटी 2025" नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें बताया गया कि 2023 तक भारत की बिजली की मांग 7% बढ़ चुकी है। यह वृद्धि इसी गति से जारी रही तो 2026 तक भारत चीन को पीछे छोड़ देगा। इस स्थिति में ऊर्जा, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास और खोज अत्यंत आवश्यक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जैव ईंधन इस दिशा में एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

प्रधानमंत्री ने हाल ही में अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जैव ईंधन पर चर्चा की और सरकार के इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों का ज़िक्र किया। उन्होंने जैव ईंधन को सतत ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बताया, जो देश की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने में सक्षम है।

जैव ईंधन (बायोफ्यूल) नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं, जो जैविक पदार्थों जैसे कृषि अवशेष, पशु वसा, और कचरे से उत्पन्न होते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि बायोफ्यूल कई प्रकार के होते हैं, लेकिन एथेनॉल और बायोडीजल सबसे प्रमुख हैं। एथेनॉल गन्ना, मक्का जैसी फसलों से बनता है, जबकि बायोडीजल पशु वसा, वनस्पति तेल, और शैवाल से प्राप्त होता है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा फोरम के आंकड़ों के अनुसार, 2030 तक वैश्विक जैव ईंधन की मांग 200 बिलियन लीटर तक पहुंच जाएगी।

शोध से पता चला है कि जैव ईंधन पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों के साथ मिलाकर प्रयोग करने से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है। भारत सरकार ने 2018 में राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति बनाई, जिसके तहत 2025-26 तक पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिश्रण और 2030 तक डीजल में 5% बायोडीजल मिश्रण का लक्ष्य रखा गया है। इस नीति का उद्देश्य जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी लाकर विदेशी मुद्रा की बचत करना है। 2022-23 में भारत ने 502 करोड़ लीटर एथेनॉल की आपूर्ति की, जिससे तेल आयात पर 24,300 करोड़ रुपये की बचत हुई।

भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए जैव ईंधन का प्रयोग कई लाभकारी सिद्ध हो सकता है। यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलती है। संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार, बायोफ्यूल 90% तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम कर सकते हैं। बायोडीजल 78% कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है, जबकि एथेनॉल 40-50% तक उत्सर्जन को कम करता है। इससे भारत को 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।

जैव ईंधन से किसानों की आय में वृद्धि होगी और सरकार के ‘किसानों की आय दोगुनी करने’ के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह वनरोपण और जैव विविधता संरक्षण को भी प्रोत्साहित करेगा।

हालांकि, जैव ईंधन के उपयोग में चुनौतियाँ भी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि एथेनॉल के लिए गन्ना और मक्का जैसी फसलों की माँग बढ़ेगी, जिससे इनकी कीमतें बढ़ेंगी। ऐसे में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के बायोफ्यूल का उत्पादन जरूरी है, लेकिन इस दिशा में तकनीकी विकास अभी सीमित है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैव ईंधन के विकास में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए नई नीतियां और कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं। जी-20 के तहत भारत की अध्यक्षता में अक्टूबर 2023 में “वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन” (GBA) की स्थापना की गई। यह संगठन अमेरिका, ब्राजील, और भारत जैसे प्रमुख जैव ईंधन उत्पादक देशों को एक साथ लाता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह गठबंधन जैव ईंधन उत्पादन में आने वाली चुनौतियों को हल कर पाएगा या नहीं, और क्या जैव ईंधन को सचमुच सतत ऊर्जा का खजाना बनाया जा सकेगा।

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