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डब्ल्यूएचओ क्यों कह रहा है कोल्ड ड्रिंक और च्युइंग गम की मिठास बन सकती है कैंसर की वजह

डब्ल्यूएचओ ‘एस्पार्टेम’ को उन रसायनों की सूची में शामिल कर सकता है जिनसे इंसानों में कैंसर होने की संभावना है। एस्पार्टेम एक कृत्रिम कम कैलोरी वाला स्वीटनर है। भारत में इसका इस्तेमाल सोफ्ट ड्रिंक, बिस्कुट, पेस्ट्री, दही, जैम और जेली जैसे खाद्य उत्पादों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। क्या ख़तरनाक पदार्थों की सूची में डालने से इन उत्पादों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी? गाँव कनेक्शन ने कुछ विशेषज्ञों से बात की।
#WHO report

अगली बार जब आप ‘डाइट’ सॉफ्ट ड्रिंक्स की ओर अपना हाथ बढ़ाएं और सोंचे यह सेहत के लिहाज से अच्छा है तो एक बार फिर से सोचिएगा ! हो सकता है आप ‘एस्पार्टेम’ से बनी कोल्ड ड्रिंक पी रहे हों। हाल की समाचार रिपोर्टों के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) जल्द ही इसे ‘कैंसर’ होने की संभावना वाले पदार्थों की सूची में डालने वाला है।

एस्पार्टेम, एक रासायनिक रूप से प्राप्त कम कैलोरी वाला स्वीटनर है जो चीनी की तुलना में 180 गुना अधिक मीठा होता है। इसका इस्तेमाल काफी सारे खाद्य उत्पादों में किया जाता है।

इनमें कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक, बिवरेज, कन्फेक्शनरी, बेकरी प्रोजेक्ट, ब्रेकफास्ट सीरियल, शुगर-फ्री पुडिंग, शुगर-फ्री जैम, पाउडर बिवरेज और रेडी टू कुक फूड शामिल हैं। दरअसल इस स्वीटनर को “शुगर फ्री” खाद्य उत्पादों या “डाइट” सोफ्ट ड्रिंक में धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है।

करोड़ों डॉलर की एफएमसीजी कंपनियां लागत में कटौती करने के लिए अपने उत्पादों में एस्पार्टेम मिलाती हैं और साथ ही अपने पैकेज्ड उत्पादों का स्वाद भी बढ़ाती हैं। लेकिन यह सब आम जनता की सेहत को ताक पर रख कर किया जाता है।

29 जून को, ब्रिटिश समाचार एजेंसी ‘रॉयटर्स’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि दो अज्ञात स्रोतों के अनुसार, इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) इन स्वीटनर को उन पदार्थों की सूची में रख सकती है जो ‘संभवतः कैंसरकारी’ हैं। आईएआरसी डब्ल्यूएचओ की कैंसर रिसर्च शाखा है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट में कहा गया है, “आईएआरसी के एक प्रवक्ता ने बताया कि आईएआरसी और जेईसीएफए (डब्ल्यूएचओ और फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन एक्सपर्ट कमेटी ऑन फूड एडिटिव) दोनों समितियों के निष्कर्ष जुलाई तक गोपनीय थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वे “कॉम्पलीमेंट्री” थे। आईएआरसी का निष्कर्ष कैंसरजन्यता को समझने के लिए पहला मौलिक कदम के बारे में बताते हैं।”

कुल 322 पदार्थ हैं, जो डब्ल्यूएचओ की ‘संभावित कार्सिनोजेनिक’ श्रेणी में आते हैं। इसमें एलोवेरा अर्क, मादक पेय, कॉफी और कोयले की धूल भी शामिल हैं।

कमजोर नियम और खाद्य लेबलिंग का अभाव

हालिया समाचार रिपोर्ट ने दुनिया भर में चिंता की लहर पैदा कर दी है। गाँव कनेक्शन ने भारत पर इसके प्रभाव को समझने के लिए क्षेत्र के विशेषज्ञों से संपर्क किया।

उद्योग और नियामक व्यवस्था के विशेषज्ञ चंद्र भूषण ने कहा कि भारत में खाद्य नियम बहुत ढीले हैं और इसे लेकर बने कानून तो और भी बदतर है।

एफएसएसएआई भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, और भारत में खाद्य सुरक्षा और रेगुलेशन से संबंधित एक समेकित क़ानून है। यह भारत में निम्नलिखित उत्पादों में एस्पार्टेम (निर्दिष्ट मात्रा में) मिलाने को मंज़ूरी देता है।

• सॉफ्ट ड्रिंक

• बिस्कुट, ब्रेड, केक और पेस्ट्री

• पारंपरिक मिठाइयाँ

• जैम, जेली और मुरब्बा

•चॉकलेट

• शूगर /शूगर फ्री कन्फेक्शनरी

• च्युइंग गम/बबल गम

• कस्टर्ड पाउडर मिक्स

• फ्रूट/ वेजिटेबल नेक्टर

• आइसक्रीम, फ्रोज़न मिठाई और हलवा

• फ्लेवर्ड मिल्क

• रेडी टू सर्व टी /कॉफी

•दही

भूषण दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संगठन, आईफॉरेस्ट (इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। हालिया समाचार रिपोर्ट और एस्पार्टेम को ‘कैंसर होने की संभावना वाले पदार्थों की सूची में डाले जाने के बारे में बात करते हुए गांव कनेक्शन से कहा , “कैंसर होने की संभावना वाली सूची में एस्पार्टेम को रखना सिर्फ एक चेतावनी है। कैंसरजन्यता की चार कैटेगरी हैं। उसमें से एस्पार्टेम को तीसरी कैटेगरी में रखा गया है। दुनिया भर की सरकारें इस कैटेगरी के कारण किसी पदार्थ पर प्रतिबंध लगाने या उस पर अंकुश लगाने के आदेश जारी नहीं करती हैं। साफ है एफएसएसएआई इसके इस्तेमाल को लेकर किसी भी तरह का अंकुश लगाने के लिए कोई आदेश जारी नहीं करेगी।”

भूषण ने कहा, सबसे बड़ा मुद्दा भारत में खाद्य उत्पादों की लेबलिंग और लोगों के बीच जागरूकता के खराब स्तर को लेकर है।

उन्होंने कहा, “उत्पादों पर लेबलिंग इस तरह से की जानी चाहिए कि आम जनता समझ सके। लेबल पर रसायनों के नाम लिखना बेकार है क्योंकि अधिकतर लोगों को इन रसायनों के बारे में जानकारी नहीं होती है। लेबलिंग दिशानिर्देशों को बदला जाना चाहिए ताकि लोग दी गई सूचना के आधार पर निर्णय ले सकें।”

लेकिन कंपनियाँ जानबूझकर अपने उत्पादों में एस्पार्टेम क्यों मिलाती हैं?

एस्पार्टेम का आविष्कार 1965 में जेम्स एम. श्लैटर नाम के एक अमेरिकी केमिस्ट ने किया था। यूनाइटेड स्टेट फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) के अनुसार, खाद्य उत्पाद बनाने वाली कंपनियां उत्पादों को मीठा करने के लिए चीनी पर लागत में कटौती करने के लिए एस्पार्टेम का इस्तेमाल करती हैं।

उन्होंने अपनी वेबसाइट में एक लेख ‘एस्पार्टेम एंड अदर स्वीटनर्स इन फूड’ में इसका जिक्र करते हुए लिखा है, “एस्पार्टेम, सुक्रालोज और स्टीविया जैसे पदार्थ मिठास या चीनी के विकल्प हैं और इनका इस्तेमाल उत्पादों को मीठा करने के लिए किया जाता है। कुछ मामलों में तो ये खाद्य पदार्थों के स्वाद को बढ़ाते हैं। ये आर्टिफिशियल शुगर आम चीनी की तुलना में अधिक मीठी होती हैं। चीनी जितनी मिठास पाने के लिए इसकी थोड़ी सी मात्रा काफी होती है।”

एस्पार्टेम का असर?

कई शोध अध्ययन एस्पार्टेम से होने वाले स्वास्थ्य ज़ोखिमों को रेखांकित करते हैं। एक गैर-लाभकारी खोजी सार्वजनिक स्वास्थ्य अनुसंधान और पत्रकारिता समूह ‘यूएस राइट टू नो’ के अनुसार एस्पार्टेम के इस्तेमाल से कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, हृदय रोग, स्ट्रोक, डिमेंशिया, अल्जाइमर, न्यूरो टॉक्सिसिटी, ब्रेन डैमेज और मूड डिसऑर्डर हो सकते हैं।

4 मार्च, 2022 को एक पीर रिव्यूड मेडिकल जर्नल पीएलओएस मेडिसिन में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार, गन्ने की चीनी की तुलना में बहुत कम कैलोरी होने के बावज़ूद कृत्रिम मिठास (विशेष रूप से एस्पार्टेम और एसेसल्फेम-के), कैंसर के बढ़ते ज़ोखिम से जुड़े हैं। इनका इस्तेमाल दुनियाभर के कई खाद्य पदार्थों और ड्रिंक्स में किया जाता है। ”

शोध में उल्लेख किया गया था, “ये निष्कर्ष यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण और वैश्विक स्तर पर अन्य स्वास्थ्य एजेंसियों द्वारा फूड एडिटिव स्वीटनर पर चल अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इससे इन शोधों को नई अंतर्दृष्टि मिलेगी।”

यूएसएफडीए ने रोज़ाना शरीर के वजन के हिसाब से प्रति किलोग्राम (मिलीग्राम/किग्रा) 50 मिलीग्राम एस्पार्टेम की एक्सेप्टेबल डेली इनटेक(एडीआई) की स्वीकृति दी हुई है। वहीं यूरोपियन फूड सेफ्टी अथॉरिटी (ईएफएसए) ने रोज़ 40 मिलीग्राम/किलोग्राम का थोड़ा कम एडीआई स्थापित किया है। कनाडा के फूड डायरेक्टरेट ऑफ हेल्थ के वैज्ञानिकों ने 40 मिलीग्राम/किग्रा शरीर के वजन/दिन का एडीआई स्थापित किया है।

एक्सेप्टेबल डेली इनटेक या एडीआई किसी पदार्थ के एक व्यक्ति के जीवन में ऱोजाना खाए जाने की तय मात्रा है, जो महत्वपूर्ण शोध के आधार पर मानव उपभोग के लिए सुरक्षित मानी जाती है।

एफएसएसएआई और कृत्रिम मिठास

भारत में, एफएसएसएआई ने छह कृत्रिम मिठास को मंज़ूरी दी हुई है। इनमें एस्पार्टेम, सैकरीन सोडियम, एसेसल्फेम पोटेशियम, सुक्रालोज़, नियोटेम और आइसोमाल्टोज शामिल हैं।

एफएसएसएआई के खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और डिस्पले) विनियम, 2020 के अनुसार, एस्पार्टेम वाले हर पैकेज पर एक बॉक्स में चेतावनी या घोषणा होनी चाहिए, जिसमें लिखा होना चाहिए: “बच्चों के लिए नहीं”; “फेनिलकेटोन्यूरिक्स के लिए रिकमंडेड नहीं; दौरे पड़ने वाले लोगों के लिए नहीं, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताएँ इसका इस्तेमाल न करें।”

डब्ल्यूएचओ द्वारा आगामी घोषणा के बारे में ख़बरों को लेकर बात करते हुए, दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में सस्टेनेबल फूड सिस्टम कार्यक्रम के निदेशक अमित खन्ना ने कहा कि इसके बारे में टिप्पणी करना जल्दबाज़ी होगी।

खन्ना ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ऐसी रिपोर्टें इतनी मज़बूत नहीं होती कि उन पर टिप्पणी की जा सके। ऐसी रिपोर्टों के पीछे कई कारण हो सकते हैं। ऐसी रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देना अटकलबाजी होगी, लेकिन अगर डब्ल्यूएचओ वास्तव में औपचारिक घोषणा करता है, तो भारतीय खाद्य नियामकों को भविष्य में उचित कार्रवाई करनी होगी।”

भारतीय सेना से सेवानिवृत्त सतीश गादी ने बताया कि सरकारी हस्तक्षेप अकेले खाद्य सुरक्षा में सकारात्मक बदलाव नहीं ला सकता है। गादी गुड़गाँव स्थित चिकित्सक हैं और भारतीय रेलवे के मुख्य चिकित्सा निदेशक के रूप में कार्य कर चुके हैं।

उन्होंने कहा, “यह सब बड़े पैमाने पर लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर निर्भर करता है। ऐसे देश के लिए जहाँ भूख और अभाव खुद में एक बड़ी चिंता का विषय है, लोगों से कार्सिनोजेन्स के बारे में चिंतित होने की उम्मीद करना ठीक नहीं है। एफएसएसएआई अकेले ऐसे मुद्दों का प्रबंधन नहीं कर सकता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य पूरी सरकार, समाज और कल्याण समूहों का दायित्व है।”

एक समाचार रिपोर्ट में एफएसएसएआई के एक प्रवक्ता के हवाले से कहा गया, “हमारा वैज्ञानिक पैनल डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश की विस्तार से जाँच और मूल्यांकन कर रहा है।”

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