बहराइच (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश की ये महिला किसान खेती करने के साथ ही अब व्यापारी बनकर पुरुष व्यापारियों को चुनौतियां देने में लग गई हैं। ये अपने आस-पास के गांव में इलेक्ट्रॉनिक मशीन से तौल करती हैं जिससे किसानों को घटतौली से छुटकारा और अनाज के वाजिब दाम मिल रहे हैं।
“कभी दरवाजे की देहरी पर खड़े होने से डर लगता था। हमेशा घूंघट में रहते थे, शुरुआती दौर में घर से बाहर निकलना थोड़ा मुश्किल था। लोग कई तरह की बाते बनाते थे, लेकिन जब घर से बाहर कदम निकाला तो अब कोई भी काम करने में संकोच नहीं लगता है।” ये मुस्कुराते हुए दुबली-पतली रामा देवी (35 वर्ष) ने कहा, “आज से पांच साल पहले स्वयं सहायता समूह बनाकर 10 रुपए हफ्ते में जमा करना शुरू किया। अब महीने 150 रुपए जमा करते हैं, हम आठ दस लोग हैं जो पिछले साल से व्यापारी बनकर तौल का काम कर हैं।”
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उत्तर प्रदेश के बहराइच जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर रिसिया ब्लॉक के डिहवा गाँव में रहने वाली 10-12 महिलाओं ने एक गैर सरकारी संस्था ‘ट्रस्ट कम्युनिटी लाइवलीहुड्स’ की मदद से पहले स्वयं सहायता समूह से जुड़ी। यहां इन्होंने कुछ पैसे की बचत के करने के साथ इस समूह से लोन लेकर रोजगार करना शुरू किया। व्यापारियों की घटतौली से परेशान और बाजिब दाम न मिलने की वजह से इन महिलाओं ने महिला व्यापारी बनने की ठान ली। शुरूआत में इन्होंने 97 कुंतल अनाज खरीदा। अब तक ये रवि और खरीफ की फसल को मिलाकर 472 कुंतल अनाज खरीद चुकी हैं।
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रामा देवी जय भवानी स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। इनके नेतृत्व में इनके समूह की आठ महिलाएं इलेक्ट्रॉनिक मशीन की तौल से लेकर बोरा भरना और लेनदेन करना ये खुद ही करती हैं। रामा कहती हैं, “जब हमने तौल करने का काम शुरू किया था तो कई बार व्यापारियों ने हमे धमकी भी दी थी, क्योंकि अब गांव के लोग अपना अनाज हमें बेचते हैं। जिससे उनका घाटा हो रहा है, ये व्यापारी तराजू से थे जिसमें एक कुंतल में पांच से दस किलो तक ज्यादा डाल लेते थे। भाव भी कुछ कम देते थे जिसमें वो अपना किराया भाड़ा निकालते थे।”
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‘ट्रस्ट कम्युनिटी लाइवलीहुड्स’ नाम की संस्था पिछले पांच वर्षों से उत्तर प्रदेश के बहराइच और श्रावस्ती जिले में खेती किसानी, महिला सशक्तीकरण, स्वरोजगार के लिए काम कर रही है। इस संस्था को टाटा ट्रस्ट और किसानों के प्रोग्राम को नाबार्ड संस्था सपोर्ट कर रही है। संस्था की टीम लीडर नीरजा का कहना है, “महिलाएं सशक्त हों इसके लिए इन्हें समूह खुलवाए गये। इन्हें गांव में रहकर ही रोजगार के ही बेहतर अवसर मिलें इसके लिए इन्हें खेती के नये तौर-तरीके बताए गये। कोई भी काम सिर्फ महिला और पुरुषों के बीच बंटा न हो इसके लिए इन्हें महिला गल्ला व्यापारी बनने के लिए प्रेरित किया गया।”
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किसान इन महिला व्यापारियों को ही बेचते हैं अनाज
अनाज का उचित दाम और समय से पैसा मिल जाने की वजह से यहां के किसान अब इन महिला व्यापारियों को ही खोजते हैं।
लीलावती का कहना है, “जब हमने तौल करना शुरू किया तो हमारे पति इस बात से बहुत नाराज हुए। उन्हें लगा महिला होकर पुरूषों वाला काम करेगी तो लोग क्या कहेंगे। लेकिन जब मैंने उन्हें पुरुष व्यापारियों की घटतौली के बारे में बताया तो धीरे-धीरे ही सही पर उनके बात समझ आ गयी।”
वो आगे बताती हैं, “एक बार उन्होंने दूसरे व्यापारियों को अनाज बेचा, मेरे कहने पर उन्होंने दोबारा तौलने की बात कही तो हर कुंतल अनाज ज्यादा ही निकला, तब बात उनके समझ आयी और उन्होंने तबसे हमारे काम को सपोर्ट किया।”
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