मैंगलूरू के इस स्कूल में बच्चे सीख रहे हैं खेती के तौर-तरीके, बाजार में जाकर फसल भी बेचेंगे

#सीबीएसई

कर्नाटक के मैंगलूरू तालुक में एक सीबीएसई स्कूल बच्चों को छोटी उम्र से ही खेती की जानकारी दे रहा है। यह है शारदा विद्यानिकेतन पब्लिक स्कूल जहां कक्षा 5 से 10वीं तक के बच्चों को खेती-किसानी की न केवल किताबी जानकारी दी जाती है बल्कि उन्हें खेत में काम करना भी सिखाया जाता है। इतना ही नहीं फसल कटने के बाद बच्चे उसे बाजार भी ले जाते हैं। यह सब बाकायदा उनके स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल है।

इस स्कूल ने रामनगर के नेथरा क्रॉप साइंसेज के सहयोग से बच्चों को पढ़ाने के लिए एक कृषि विज्ञान का कोर्स भी तैयार किया है। शारदा ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशंस, मैंगलूरू के प्रेजिडेंट एमबी पुराणिक ने बताया, ‘मैंगलूरू शहर के बाहर स्थित इस स्कूल में इस साल से कृषि विज्ञान एक आवश्यक विषय के तौर पर पढ़ाया जा रहा है। मतलब हर छात्र-छात्रा को इसे पढ़ना ही है। हर हफ्ते बच्चों को एक प्रैक्टिकल और दो थ्योरी क्लास करने होते हैं। इस पाठ्यक्रम को पढ़ाने वाले टीचर एग्रीकल्चर में एमएससी हैं। उनकी मदद के लिए चार डिप्लोमाधारी लोग तैनात हैं।”

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शहरी बच्चे जानेंगे क्या होती है खेती

यह पूछे जाने पर कि एग्रीकल्चर साइंस या कृषि विज्ञान को आवश्यक विषय का दर्जा क्यों दिया, पुराणिक ने बताया, “आजकल बहुत से बच्चे, खासकर शहरों में रहने वाले नहीं जानते कि फसलें कैसे उगाई जाती हैं। इस विषय से उन्हें खेती करने का व्यक्तिगत अनुभव हो जाएगा।”

स्कूल ने इस इलाके की मिट्टी की जांच भी करवाई है ताकि यहां कौन सी सब्जियां उगाई जाएं यह पता लगाया जा सके। फिलहाल छात्र-छात्राओं ने 3.5 एकड़ के इलाके में करीब 18 सब्जियां बोई हैं। आगे स्कूल की योजना है कि स्कूल कैंपस के पास खाली पड़े खेतों में धान की खेती की जाए।

यहां उगने वाली सब्जियों और फल की खपत तो स्कूल कैंपस में ही हो जाएगी, पर बाद में स्टूडेंट्स की एक टीम बनाकर खेतों से मिलने वाली उपज को पास ही के बाजार में बेचा जाएगा। इसके लिए कैंपस के पास एक आउटलेट भी बनाया जाएगा जहां सप्ताह में एक या दो बार कृषि उत्पादों को बिक्री के लिए रखा जाएगा।

शारदा विद्यानिकेतन के प्रशासकीय अधिकारी विवेक तंत्री के मुताबिक, “‘शैक्षिक वर्ष में दो बार इन बच्चों के कृषि विज्ञान की जानकारी का मूल्यांकन किया जाएगा।”

पानी की बचत और रखरखाव भी सीख रहे हैं

तंत्री ने आगे बताया, “खेती के अलावा बच्चों को जल प्रबंधन की भी व्यावहारिक जानकारी दी जाती है। परिसर में लगभग 2,000 छात्र और शिक्षक हैं। उनमें से 1,000 से अधिक बच्चे और अध्यापक स्कूल में बने मकानों और हॉस्टलों में ही रहते हैं। यहां प्रभावी जल प्रबंधन के लिए भी जरूरी कदम उठाए गए हैं। परिसर में एक वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट है जो हर रोज 10 लाख लीटर पानी को रिसाइकल करता है। इस पानी का इस्तेमाल ड्रिप इरीगेशन के माध्यम से सिंचाई के लिए किया जाता है। इसके अलावा पिछले चार साल से स्कूल में बनी इमारतों की छतों से रेनवॉटर हार्वेस्टिंग की जा रही है। इस पानी से चार बोरवैल रिचार्ज होते हैं। इसका असर यह देखा गया कि आसपास के इलाके में वॉटर टेबल का स्तर ऊपर उठा है।”

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(यह लेख मूल रूप से द हिंदू बिजनेस लाइन में 27 जून 2018 को छपा था ) 

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