लखनऊ। शिक्षकों के पास बहुत काम है इसलिए प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती है, ये खबर अकसर पढ़ने को मिलती है। पर ये शिक्षक भी परिषदीय विद्यालयों के हैं जिन्होंने न सिर्फ अपने स्कूल में बच्चों के लिए पढ़ाई के नये तौर तरीके अपनाएं है बल्कि ये साबित भी कर दिया है अगर शिक्षक चाहें तो तमाम कामों के बावजूद शिक्षा का स्तर बेहतर कर सकते हैं।
“बच्चे जो पुराने खेल खेलते हैं जिसमे उन्हें बहुत मजा आता है हम उन्ही खेलों को अपनाकर उन्हें पढ़ाने की कोशिश करते हैं, बच्चों को पर्चियों वाला अजीर बजीर खेल बहुत पसंद है, हम उन पर्चियों के माध्यम से विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, साल और महीनों के नाम, सामान्य ज्ञान याद कराते हैं बच्चे इस तरीके से खुश भी होते हैं और खेल-खेल उन्हें चीजें याद हो जाती हैं।” ये कहना है परिषदीय विद्यालय की शिक्षिका चेतना पाण्डेय का। ये कानपुर के कल्यानपुर ब्लॉक के जगतपुर भीसी के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती हैं इनका मानना है, “अगर हमे बच्चों को पढ़ाना है तो उनकी रूचि किस चीज में है इसपर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है, छोटे बच्चों की रूचि ज्यादातर खेलों में होती है इसलिए हमने अपने पढ़ाने के तरीकों में खेल-खेल में शिक्षण को अपना लिया है जिससे बच्चे बहुत आसानी से अपने पाठ्यक्रम को याद कर रहे हैं।”
इस प्रयास की ऐसे हुई थी शुरुआत
राज्य शैक्षिणक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद लखनऊ और स्टर एजूकेशन द्वारा साल 2014 में टीचर चेंजमेकर मूवमेंट की शुरुआत लखनऊ से की गयी। वर्तमान समय में इस कार्यक्रम से 10 जिलों के 8,741 परिषदीय विद्यालयों के 19,0 47 शिक्षक जुड़े हुए हैं। ये प्रयास लगभग छह लाख बच्चों को व्यवहारिक और सकारात्मक ढंग से प्रभावित कर रहा है।
राज्य शैक्षिणक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) और स्टर एजूकेशन द्वारा उत्तरप्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में पढ़ाने वाले 502 शिक्षकों को सम्मानित करने के लिए ‘टीचर चेंजमेकर सम्मेलन-2017’ का आयोजन लाल बहादुर शास्त्री गन्ना किसान संस्थान, लखनऊ के सभागार में किया गया था जिसमे एससीईआरटी-स्टर द्वारा चयनित 46 शिक्षकों के नवाचारों की पुस्तिका ‘नवोन्मेष-2017’ का विमोचन किया गया जिसमे उनके नये-तरीको के जिक्र है। उन शिक्षकों द्वारा प्रदर्शनी भी लगाई गयी जिसमे उन्होंने अपने स्कूल में अपना रहे माडलों को दिखाया।
विभाग के अधिकारियों ने शिक्षकों के इस प्रयास के बारे में दी अपनी राय
एससीईआरटी लखनऊ के निदेशक डॉ सर्वेन्द्र विक्रम बहादुर सिंह ने कहा, “ शिक्षकों द्वारा किया गया ये प्रयास ठीक है पर मै बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हूं, आज का युग तकनीकि का युग है शिक्षकों को शिक्षा के स्तर में इसे और बेहतर करने की जरूरत है। इस तरह की सामग्री को बनाने में बहुत समय लगता है और ये बहुत जल्दी समाप्त होने वाली गतिविधी है।” उन्होंने आगे कहा, “लर्निंग मैटेरियल में बहुत ज्यादा इनोवेशन की जरूरत नहीं है थोड़ा और सोंचने की जरूरत है, पढ़ाई के साथ-साथ शिक्षकों का छात्रों के साथ अच्छा व्यवहार भी बहुत जरूरी है क्योंकि आपका व्यवहार भी बच्चों के शैक्षणिक स्तर पर असर डालता है।”
वहीं स्टर एजूकेशन के राष्ट्रीय निदेशक संदीप मिश्रा ने कहा, “परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा का स्तर ठीक नहीं है ये चर्चा मात्र से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है, इसे कैसे ठीक किया जाए ये ज्यादा जरूरी है। प्रदेश के 10 जिलों के इन शिक्षकों का प्रयास सराहनीय है जिनकी कोशिश से इन विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ी है।” उन्होंने आगे कहा, “भविष्य में इस तरह के शिक्षकों की संख्या लगातार बढ़ेगी जिससे प्राथमिक विद्यालयों में अपने बच्चे भेजने से माता-पिता में कोई संकोच नहीं रहेगा। इस तरह के शिक्षकों को समय-समय पर उत्साहवर्धन किया जाना चाहिए जिससे इन शिक्षकों का मनोबल बढ़ेगा और ये लगातार बेहतर प्रयास करते रहेंगे।”
राज्य शैक्षिणक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के सयुंक्त निदेशक अजय सिंह का कहना है, “ये शिक्षक अगर निरंतर ऐसा ही प्रयास करते रहे तो वो दिन दूर नहीं होगा जब इन स्कूलों की चर्चा हर जगह होगी, स्कूल में बच्चों के साथ दोस्ताना माहौल हो जिससे बच्चे स्कूल आने में झिझक न करें। इस प्रदर्शनी में टीचर एक दूसरे के पढ़ाने के तरीकों को देख रहे हैं, ये शेयरिंग का एक अच्छा मंच है जहाँ ये एक दूसरे के आइडिया ले सकते हैं।”
ये हैं दस जिले जहाँ के शिक्षक कर रहे हैं नये प्रयास
उत्तरप्रदेश के दस जिले जिसमे लखनऊ, कानपुर नगर, उन्नाव, फैजाबाद, रायबरेली, बाराबंकी, वाराणसी, जौनपुर, चंदौली और मिर्जापुर हैं जहाँ के सैकड़ों शिक्षकों ने टीचिंग लर्निंग मैटेरियल का प्रयोग करते हुए बच्चों की रूचि के अनुसार खेल-खेल में पढ़ाने की कोशिश में लगे हैं। शिक्षकों के इस प्रयास से ग्रामीण क्षेत्रों के परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की उपस्तिथि के साथ ही उनकी पढ़ाई में रूचि भी बढ़ी है।
शिक्षकों ने साझा किये अपने अनुभव
कानपुर से 42 किलोमीटर दूर शिवराजपुर ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय दहारुद्रपुर की शिक्षिका रीता झा ने बच्चों को पढ़ाने के लिए दि लर्निग ट्रेन बनाई है। इसके बारे में वो बताती हैं, “बच्चों को इस ट्रेन से अंको का ज्ञान, अक्षर ज्ञान, अग्रेंजी वर्णमाला, महीनों के नाम अंग्रेजी और हिन्दी में, राष्ट्रीय प्रतीक सबकुछ इसी से याद करवाते हैं, बच्चे खेल-खेल में गाना गाते हैं- छुक-छुक रेल चली, करती कितने खेल चली और धीरे-धीरे उन्हें सबकुछ याद हो जाता है।” रीता झा प्रदेश की पहली शिक्षिका नहीं है जिन्होंने अपने स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का ये नया तरीका अपनाया हो बल्कि इनकी तरह प्रदेश की सैकड़ों शिक्षक नये-नये तरीके अपना रहे हैं जिससे इन परिषदीय विद्यालयों का शिक्षा स्तर बेहतर हो सके।
बच्चों को माता-पिता समय से स्कूल भेजें इसके लिए शिक्षिका सरोज यादव ने एक ऐसा तरीका अपनाया जिससे एक सप्ताह में बच्चे समय से आने लगें वो बताती हैं, “जो बच्चे देर से आते थे बरामदें में लगे ब्लैक बोर्ड में उनका नाम लिख दिया जाता था, दिन में उस बोर्ड पर कई बार बच्चों की नजर पड़ती और जो उनके माता-पिता आते तो वो भी देखते, एक सप्ताह तक ही ऐसा किया बच्चे अपने आप ही समय से आने लगे।” सरोज यादव फैजाबाद जिले के मया ब्लॉक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय आनापुर सरैया की सहायक अधियापिका हैं। वहीं इसी ब्लॉक के अछोरा गाँव की शिक्षिका आशा ने बताया, “हम बच्चों के नाम पर फलों के नाम याद करवाते हैं अगर किसी फल का नाम प से है तो हम देखते हैं किसके नाम में प अक्षर शामिल है एक दूसरे नाम के एक-एक शब्द जोड़कर फलों के नाम याद कराते हैं इससे बच्चे खेलते भी हैं और उन्हें फलों के नाम भी याद हो जाते हैं।”
गणित विषय पढ़ने से बच्चे हमेशा डरते हैं, बच्चों की गणित में रूचि बढ़े इसके लिए अमिता यादव ने मिट्टी की छोटी-छोटी कटोरियां बनाई हैं उसमे चावल के 100-100 दाने रखें हैं। बच्चों को अगर ये सिखाना है कि पांच रुपये में कितने पैसे होते हैं उसके लिए ये तरीका बहुत आसान है वो बताती हैं, “बच्चों को बताते हैं एक रूपए में 100 पैसे होते हैं और एक मिट्टी की कटोरी में 100 चावल के दाने रखते हैं, पांच रूपए में कितने पैसे हैं बच्चे आसानी से पांच कटोरी में सौ-सौ दाने रख लेते हैं और बता देते हैं कि पांच रुपए में पांच सौ पैसे होंगे।”
ये कानपुर के पतारा ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती हैं। बच्चे पौधे लगायें और मिट्टी की उपजाऊं क्षमता समझे इसके लिए ये पौधों को लगाने की पूरी प्रक्रिया बताती हैं। इनका मानना है, “अगर बच्चों को वाकई में पढ़ाना है तो उनको विषय के साथ-साथ आस-पास के हर माहौल के बारे में भी जानकारी देनी जरूरी है, जिससे अक्षर ज्ञान के साथ-साथ उनका मानसिक विकास भी हो। बच्चों को सीधे-सीधे पढ़ाने पर उनकी बहुत ज्यादा रूचि नहीं रहती है इसलिए खेल-खेल में ही उन्हें पढ़ाने की कोशिश की जाए जिससे वो पढ़ाई भी पूरी करें और स्कूल आने से डरें भी नहीं।”
ये शिक्षक पढ़ाई के ये अपनाते हैं नये-नये तरीकें
प्रदेश के दस जिले के सैकड़ों शिक्षक और शिक्षिकाओं ने अब ये ठान लिया है कि उन्हें इस कहावत को बदलना ही है कि प्राथमिक विद्यालय में बच्चे पढ़ने के लिए नहीं बल्कि खाने के लिए जाते हैं। इन शिक्षकों ने खेल-खेल में जो पढ़ाई के तरीके अपनाए हैं वो सराहनीय है। अगर सभी शिक्षक इस तरह के नये-नये तरीके अपना लें तो निश्चित तौर पर इन परिषदीय विद्यालयों की तस्वीर बदल सकती है।
फैजाबाद की शिक्षिका अराधना दुबे ने बताया, “हम बच्चों से एक बाल अखवार चार्ट पेपर में बनवाते हैं जिसमे वो गाँव-गाँव भर की खबरें लिखते हैं, सभी का नाम और कक्षा लिखते हैं इससे उनकी लिखने की क्षमता बढ़ रही है और हमे गाँव के बारे में पूरी जानकारी हो रही है।” ये फैजाबाद से 30 किलोमीटर दूर मया ब्लॉक के जगदीशपुर, टंडडौली के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में पढ़ाती हैं।