प्रगतिशील किसान सेठपाल सिंह को मिला पद्मश्री पुरस्कार, बीएससी के बाद खेती शुरु करने वाले किसान की कहानी

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के प्रगतिशील किसान सेठपाल सिंह उन खास लोगों में शामिल हैं, जिन्हें देश के सबसे बड़े पुरस्कारों में से एक पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
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सेठपाल सिंह का खेत किसी प्रयोगशाला से कम नहीं, अपने 15 हेक्टेयर खेत में वो धान, गेहूं, गन्ना जैसी फसलों के साथ ही लौकी, मिर्च, गोभी, मिर्च जैसी सब्जियों की खेती भी करते हैं। यही नहीं वो खेत में सिंघाड़े की भी खेती करते हैं, पिछले कुछ साल में उन्होंने कमल की भी खेती शुरू की है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसान गन्ने की खेती ही करते हैं, लेकिन सहारनपुर जिले के नंदीफिरोजपुर गाँव के 55 वर्षीय किसान सेठपाल सिंह हमेशा से कुछ नया करते रहे हैं, तभी तो उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

हर किसी का सपना होता है कि वो पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करें, लेकिन इस प्रतिभाशाली किसान ने इस बात को गलत साबित किया। साल 1987 में कृषि में स्नातक की पढ़ाई के बाद सेठपाल ने नौकरी करने के बजाए खेती करना बेहतर समझा और खेती में आ गए।

खेती में शुरूआत के बारे में सेठपाल सिंह बताते हैं, “पहले हम भी दूसरे किसानों की तरह सिर्फ गन्ना, गेहूं और धान जैसी फसलों की खेती ही करते थे, लेकिन इसमें ज्यादातर नुकसान ही होता था। इसके बाद हम कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आए वहां वैज्ञानिकों से हमें कृषि विविधीकरण के बारे पता चला कि जिससे किसान हर दिन कमाई कर सकता है। तब से हम गन्ने की खेती भी करते हैं सब्जियों की भी खेती करते हैं, इसके साथ ही खेत में ही सिंघाड़ा भी उगाते हैं, हम मछली पालन भी करते हैं इसके साथ ही पशुपालन और मशरूम की भी खेती करते हैं।”

सेठपाल सीजन के हिसाब से सब्जियों की खेती करते हैं, गर्मियों लौकी, कद्दू, करेला और सर्दियों में गोभी, मिर्च, मूली जैसी कई फसलों की खेती करते हैं। सेठपाल कहते हैं, “हम पहले पॉलीबैग में सब्जियों की नर्सरी तैयार करते हैं, उसके बाद उसे खेत में लगाते हैं। यही कोशिश रहती है कि एक फसल का सीजन खत्म हो तब तक दूसरी फसल तैयार हो जाए।”

सेठपाल ने कई तरह के फलदार पौधे भी लगाए हैं। फोटो: दिवेंद्र सिंह

वो आगे कहते हैं, “पहले शुरू में लोग मेरा मजाक उड़ाते थे कि क्या कर रहे हैं, देखिए गन्ने की एक साल की फसल होती है, उसके बाद मिल में जाती है, तब पेमेंट नहीं मिल पाता। इतने खर्च होते हैं, जिन्हें पूरा कर पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे हर दिन का खर्च निकलता रहे।”

सेठपाल सिंह तालाब नहीं खेत में ही सिंघाड़े की करते हैं, खेती की शुरूआत के बारे में वो बताते हैं, “एक बार हम सहारनपुर के पास के एक गाँव से गुजर रहे थे, वहां पर किसान तालाब से सिंघाड़े की बेल निकाल रहे थे। हम लोग वहां रुके और जानकारी ली, उसके बाद हम कृषि विज्ञान केंद्र गए और डॉक्टर साहब के पास गए उन्होंने कहा कि आप भी इसकी खेती कर सकते हैं। तब 1997 में हमने इसकी शुरुआत की।”

वो पूरी तरह से समतल खेत में सिंघाड़े की खेती करते हैं, इसका लेवल और दूसरे खेत का लेवल एक ही है। बस इस खेत के मेड़ को थोड़ा ऊंचा कर देते हैं। जून के दूसरे सप्ताह में हम सिंघाड़े की रोपाई कर देते हैं और सितम्बर के आखिरी सप्ताह तक फल आने लगते हैं।

वो आगे बताते हैं, “जून से दिसम्बर तक ये फसल चलती है, दिसम्बर में जैसे-जैसे पाला बढ़ता है ये फसल खत्म हो जाती है। इसमें कीटनाशकों का प्रयोग न के बराबर होता है। मिट्टी की जांच के बाद जिसकी कमी होती है, उसी के हिसाब से डालते हैं। जो दूसरे तालाबों में सिंघाड़े की खेती होती है कई बार उसमें गाँव भर का गंदा पानी आता रहता है। उसकी वजह से उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं होती, जबकि हमारे खेत में ट्यूबवेल का पानी भरा जाता है, जिससे ज्यादा अच्छा सिंघाड़ा उगता है। यहीं नहीं जो मार्केट में सिंघाड़ा उगता है उसके मुकाबले इसका पांच-छह रुपए ज्यादा रेट मिलता है।”

“जब सिंघाड़े की फसल मिल जाती है तो दिसम्बर के बाद हम इससे पानी निकाल देते हैं, लेकिन फसल अवशेष रहने देते हैं जो बढ़िया जैविक खाद बन जाती है। इसके बाद हम सब्जी की फसल की खेती करते हैं, “उन्होंने आगे कहा।

सिंघाड़े के साथ ही अब सेठपाल सिंह ने कमल की खेती भी शुरू की है, जिसका कमल नाल यानी कमल ककड़ी बिकती है और साथ ही फूल भी बिक जाते हैं।

सेठपाल अपने खेत के पास ही तालाब में मछली पालन भी करते हैं। वो बताते हैं, “क्योंकि हम विविधकरण खेती करते हैं, हमने मछली उत्पादन भी शुरू किया है, साढ़े चार फीट पानी में तीन प्रजतियों की मछली डालते हैं, इसमें रोहू, कतला और नैन का पालन करते हैं। ये तीनों अलग-अलग सतह में रहती हैं और एक दूसरी मछलियों को भी नुकसान भी नहीं पहुंचाती हैं। सबसे खास बात तालाब से भूजल की समस्या नहीं रहती हमारे ट्यूबवेल में बारह महीने तक पानी आता रहता है।

कृषि विज्ञान केंद्र, सहारनपुर के प्रभारी व प्रधान वैज्ञानिक डॉ आईके कुशवाहा किसानों के खेतों में जाकर भी उन्हें नई जानकारी देते रहते हैं।

इसके अलावा सेठपाल सिंह अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। अपनी 15 हेक्टेयर की भूमि में सेठपाल सिंह सिर्फ पांच हेक्टेयर भूमि में गन्ने की बुवाई करते हैं। बाकी 10 हेक्टेयर में वो बागवानी, सब्जी और सिंघाड़ा जैसी फसलों की खेती कर अच्छा मुनाफा ले रहे हैं।

सेठपाल के यहां तक के सफर तक पहुंचने में कृषि विज्ञान केंद्र का अहम योगदान रहा। कृषि विज्ञान केंद्र, सहारनपुर के प्रभारी व प्रधान वैज्ञानिक डॉ आईके कुशवाहा किसानों के खेतों में जाकर भी उन्हें नई जानकारी देते रहते हैं। उनकी देख-रेख में ही सारे काम चलते रहते हैं, यही नहीं वैज्ञानिकों की पूरी टीम आती है। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. आईके कुशवाहा बताते हैं, “सेठपाल सिंह हमारे जिले के ऐसे किसानों में से एक हैं, जिन्हें जितना हम बताते हैं, उससे ज्यादा सीखने को मिलता है। जिस समय किसान गन्ने के भुगतान के लिए परेशान रहते हैं, सेठपाल अपने उसी खेत से अच्छा मुनाफा कमाते ह

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