2 एकड़ में सब्जियों की जैविक खेती से हर हफ्ते 10-15 हजार कमा रहा ये किसान

कोरोना काल में लोगों का ध्यान प्राकृतिक और पौष्टिक खाने की तरफ गया। इस दौरान जैविक सब्जियों की भी मांग बढ़ी है। एमपी में किसानों के मुताबिक ऑर्गेनिक सब्जियों के रेट भी अच्छे मिल रहे हैं, इसलिए वो organic farming की तरफ बढ़ रहे हैं।
#madhya pradesh

पन्ना (मध्यप्रदेश)। “जहरीली सब्जी खाकर बीमार पड़ने और इलाज में हजारों रुपए फूंकने से अच्छा है कि हम जैविक तरीके से उगाई गई स्वास्थ्यवर्धक ताजी सब्जियां खाएं।” अपने खेत में लगी सब्जियां दिखाते हुए संत कुमार कुशवाहा (41 वर्ष) मुस्कुराते हुए कहते हैं।

मध्यप्रदेश के पन्ना शहर से लगी ग्राम पंचायत पुराना पन्ना के गांव रानीपुर टगरा के किसान संत कुमार कुशवाहा अपने 2 एकड़ के खेत में केंचुआ खाद व जैविक कीटनाशकों का उपयोग कर सब्जी उगाते हैं। संत कुशवाहा बताते हैं, “ज्यादातर बाजार पहुंचते ही हमारी सारी सब्जियां बिक जाती हैं। कुछ ग्राहक तो ऐसे हैं जो नियमित रूप से खेत में आकर मनपसंद सब्जियां खरीद कर ले जाते हैं।”

कुशवाहा के मुताबिक उनके 2 भतीजे सुरेंद्र कुशवाहा (22 वर्ष) व सचिन कुशवाहा (25 वर्ष) भी अपने हिस्से की जमीन में जैविक तरीके से सब्जी उगाते हैं। उनके हिस्से में भी दो-दो एकड़ जमीन है।

कमाई के बारे में पूछने पर संत कुमार कुशवाहा कहते हैं, “सब्जी से हर हफ्ते में 10-15 हजार रुपये कमा लेते हैं। भतीजों की भी लगभग इतनी ही आय हो जाती है।”

कुशवाहा परिवार के मुताबिक सब्जियों की खेती उन्हें औसतन हर महीने एक लाख से डेढ़ लाख की आय होती है, (इसमें खर्च भी शामिल है)।

संत कुमार कुशवाहा आगे बताते हैं, “3 साल पहले तक मैं भी दूसरे किसानों की तरह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग करता था, जिसमें लागत ज्यादा आती थी। उसी दौरान जैविक खेती के बारे में पता चला। उद्यान विस्तार अधिकारी संजीत सिंह बागरी ने हमें मार्गदर्शन दिया जिसके बाद जैविक खेती करने लगे।”

जैविक खेती में संत कुमार का अनुभव ज्यादा नहीं है लेकिन पिछले करीब दो साल (2020-21) से उन्हें जैविक खेती में अच्छा मुनाफा हुआ है, क्योंकि इनकी मांग ज्यादा है।

एमपी में देश का सबसे ज्यादा जैविक क्षेत्रफल

पिछले कुछ वर्षों से भारत में जैविक खेती और जैविक उत्पादों की मांग तो बढ़ी है, लेकिन जमीन पर अभी जैविक खेती प्रारंभिक स्तर पर नजर आती है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार मार्च 2020 तक देशभर में 2.78 मिलियन हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही थी जो देश के कुल बुवाई रकबे 140.1 मिलियन हेक्टेयर का करीब 2 फीसदी ही है।

देशभर में सबसे ज्यादा जैविक खेती का क्षेत्रफल मध्य प्रदेश 0.76 मिलियन हेक्टेयर है जो देश में सबसे ज्यादा है। मध्य प्रदेश उन 12 राज्यों में भी शामिल हैं जहां कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) से मान्यता प्राप्त प्रमाणीप्रकण संस्थाएं हैं।

मध्य प्रदेश जैविक प्रमाणीकरण संस्था के निदेशक डॉ जीपी प्रजापति ने गांव कनेक्शन से कहा, “पिछले कुछ वर्षों में एमपी में जैविक खेती के लिए प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करने वाले किसानों की संख्या बढ़ी है। यहां तुअर, चना, गेहूं, सोयाबीन समेत कई अनाजों और सब्जियों की खेती पर किसानों का जोर है।” एमपी में इसके अलावा कई दूसरी सरकारी और निजी एजेंसियां भी जैविक सर्टिफिकेट के लिए उत्तरदाई हैं।

उनके मुताबिक साल 2021 में जैविक खेती के सर्टिफिकेशन के लिए 125 नए आवेदन मिले हैं, जिनकी कार्रवाई जारी है। आवेदन करने वालों में कई किसान समूह भी हैं, जिन्हें भी एक यूनिट ही माना गया है।

मौसम के हिसाब से लगाते हैं हर तरह की सब्जियां

रबी के इस सीजन में नवंबर महीने में उनके खेतों में टमाटर, पत्ता गोभी, सेम, बैंगन, कुंदरू, मिर्च, टमाटर, चना, भिंडी, मिर्च, पपीता आदि की फसल लगी है। खरीफ के सीजन में उन्होंने छोड़े हिस्से में बासमती धान भी लगाया था। धान वाले खेत में कुछ दिनों में वो मटर की खेती करेंगे। बैंगन, टमाटर, मिर्च और परवल की रोपाई कुछ दिनों पहले की है जो मार्च-अप्रैल के आसपास तक आसानी से उपज देगी।

संत कुमार के परिवार में ज्यादातर लोग खेत का काम खुद करते हैं, जिनमें परिवार की महिलाएं भी साथ देती हैं। जरुरत पड़ने पर एक या दो मजदूर लगाए जाते हैं।

संत कुमार कहते हैं, “ज्यादातर काम मैं और पत्नी गीता कुशवाहा करते हैं। जरुरत पड़ने पर मजदूर लगाते हैं, इससे लागत कम हो जाती है।”

सिंचाई के लिए खेतों में तीन कुंए हैं, जिनमें पर्याप्त पानी है। जुताई का काम ट्रैक्टर के बजाय पावर टिलर से करते हैं, जो उन्हें उद्यान विभाग से 75 हजार रुपये के अनुदान पर मिला है। छोटे खेत होने के कारण पावर टिलर से जुताई आसानी से हो जाती है।

जैविक सब्जी उत्पादक किसानों को मिले पहचान

मध्य प्रदेश को देश में सर्वाधिक प्रमाणित जैविक कृषि क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है। बावजूद इसके पन्ना जैसे जिलों के जैविक खेती करने वाले किसानों को अभी वह पहचान नहीं मिल सकी है, जिसके वे हकदार हैं। संत कुमार कुशवाहा जैसे सैकड़ों किसानों को जैविक खेती के गुर सिखाने और प्रेरित करने वाली स्वयं सेवी संस्था ‘समर्थन’ जैविक किसानों को उनका हक व पहचान दिलाने के लिए भी काम कर रही है।

सर्मथन के क्षेत्रीय समन्वयक ज्ञानेंद्र तिवारी ने गांव कनेक्शन को बताया कि जो किसान तीन सालों से रासायनिक खाद व पेस्टीसाइड मुक्त जैविक तरीके से खेती कर रहा है, उसका पंजीयन जैविक कृषक के रुप में होना चाहिए। लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई ठोस पहल वा प्रयास नहीं हुए।

ज्ञानेंद्र तिवारी ने गांव कनेक्शन को बताया कि “समर्थन” ने जैविक खेती करने वाले किसानों का जिला स्तर पर एक नेटवर्क बनाने की पहल शुरू की है। प्रथम चरण में 10 पंचायतों के 31 गांवों को लिया गया है, जहां सघन रूप से जैविक किसानों को चिन्हित करने का काम किया जा रहा है।”

संस्था के मुताबिक पन्ना में लक्ष्मीपुर, रक्सेहा, बिलखुरा, जमुनिहाई, अहिरगुंवा, रहुनिया, मकरी कुठार, जनवार, सकरिया और मुटवां कला गाँव में जैविक खेती करने वाले किसानों को चिन्हित जैविक खेती से जोड़ा गया है ताकि इनकी अपनी एक अलग पहचान हो ताकि शासन की योजनाओं का लाभ मिलने के साथ-साथ इनके जैविक उत्पादों की सही कीमत इन्हें मिल सके।

पन्ना के उद्यान विस्तार अधिकारी संजीत सिंह बागरी बताते हैं कि पन्ना जिले में जैविक ढंग से सब्जी की खेती के साथ-साथ औषधीय खेती की अच्छी संभावनाएं हैं। खुशी की बात यह है कि किसानों का रुझान जैविक खेती की तरफ बढ़ रहा है। उनके मुताबिक पन्ना जिले के अजयगढ़ व शाहनगर ब्लॉक में अनेकों किसान जैविक ढंग से सब्जी का उत्पादन कर रहे हैं।

जैविक सब्जियों का शुरू होगा अलग बाजार

जैविक तरीके से सब्जियों का उत्पादन करने वाले किसानों के लिए अभी कोई अलग बाजार नहीं है, जहां वे अपना उत्पाद लेकर जा सकें। एक ही सब्जी बाजार होने से जैविक सब्जियों की उचित कीमत नहीं मिल पाती। जैविक किसानों की इस समस्या का स्थाई निदान करने तथा लोगों को ताजी स्वास्थ्यवर्धक

जैविक सब्जियां मिल सके इसके लिए जैविक सब्जियों का पृथक बाजार शुरू करने की योजना बनाई गई है।

उपसंचालक कृषि पन्ना ए.पी. सुमन के मुताबिक इस बाबत प्रस्ताव बनाकर अनुमति हेतु कलेक्टर के पास भेजा जा रहा है। जैविक सब्जियों का बाजार शुरू होने पर शहर के आसपास स्थित ग्रामों के किसानों से अपना उत्पाद लेकर यहां आने को कहा जाएगा। आजीविका मिशन के डीपीएम बी.के. पाण्डेय भी जैविक किसानों को प्रोत्साहित करने तथा उन्हें बाजार उपलब्ध कराने में रुचि ले रहे हैं।

फैमिली किसान बनाना अब वक्त का तकाजा

जैविक खेती को बढ़ावा देने तथा परंपरागत देशी बीजों के संरक्षण हेतु अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले विंध्य क्षेत्र के किसान पद्मश्री बाबूलाल दाहिया का कहना है कि फैमिली किसान बनाना अब वक्त का तकाजा है। अच्छा डॉक्टर ढूंढने से बेहतर है कि अच्छी सब्जी व पौष्टिक अनाज ढूंढा जाए। फैमिली किसान बनाने से फैमिली डॉक्टर बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

पद्मश्री दाहिया बताते हैं, “रासायनिक खाद व कीटनाशकों का आधाधुंध उपयोग कर जो खेती की जाती है, वह सेठों को खुशहाल करती है। किसान के हिस्से में उसी अनुपात में लाभ आता है जितना डेयरी की 10-12 लीटर दूध देने वाली भैंस के पड़ेरु के हिस्से में दूध।”

वे कहते हैं कि यदि आपने फैमिली किसान बना लिया तो फिर फैमिली डॉक्टर की जरूरत कम ही पड़ेगी। “किंतु झूर शंख नहीं बजेगा, उसके लिए कुछ अतिरिक्त व्यय करना पड़ेगा। क्योंकि आपके उस फैमिली किसान के भी मुंह-पेट व बाल बच्चे हैं”।

Recent Posts



More Posts

popular Posts