भोपाल। इस झुग्गी-झोपड़ी के बच्चे अब इधर-उधर घूमते नहीं है। इनके पास हर शाम पढ़ने का अपना एक ठिकाना है जहाँ पर ये पढ़ाई कर सकते हैं। सबसे खास बात ये है इन बच्चों की टीचर इन्ही की बस्ती की 11 वर्षीय मुस्कान है। जो हर शाम इनके साथ पढ़ने-पढ़ाने का काम करती है। ‘किताबी मस्ती’ नाम का ये ठिकाना यहां के बच्चों को खूब भाता है।
अगर आप इस मुस्कान से मिलेंगे तो आपके मन में कुछ अलग करने की इच्छा जरुर होगी। क्योंकि इतनी कम उम्र में वो बड़ी बेबाकी और उत्साह से आपके पूछे सवालों का जबाब देगी जिसे सुनकर आप उत्साहित हुए बिना नहीं रह सकते। पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली मुस्कान का जैसा नाम है वैसा ही काम है। उसने मुस्कुराते हुए बताया, “पहले हम स्कूल से आकर खेलने लगते थे, अगर कोई पढ़ाई भी करता था तो अपने घर पर स्कूल का होमवर्क कर लेता था। जबसे ये लाइब्रेरी खुली है यहाँ पर सभी बच्चे अपने आप आकर पढ़ाई करते हैं।” उसने कहा, “इस लाइब्रेरी में महापुरुषों की कहानियों की किताब, सामान्य ज्ञान की किताब, चुटकले की किताब जैसी कई किताबें हैं जो हम सब मिलकर रोज शाम पढ़ते हैं। मैं अपने से छोटे बच्चों को पढ़ाती हूँ और मुझसे बड़े भैया मुझे पढ़ाते हैं।”
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बेसहारा और झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा पर काम कर रही सेव द चिल्ड्रेन संस्था द्वारा कराए गए एक सर्वे के मुताबिक, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले 63 फीसदी बच्चे निरक्षर हैं। इसमें 37 फीसदी लड़कियां हैं। इन बस्तियों के बच्चे निरक्षर न रहें, लड़कियां भी पढ़ाई करें और आगे आयें इन आकड़ों को कम करने के लिए मुस्कान आगे आयी है। मुस्कान के इस प्रयास से हम बहुत बड़े बदलाव की तो बात नहीं कह सकते हैं लेकिन इनके प्रयास से सुधार की एक बड़ी सम्भावना जरुर नजर आ रही है।
भोपाल जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर ‘अरेराहिल दुर्गानगर’ नाम की एक झुग्गी-झोपड़ी की बस्ती है। हर बस्ती की तरह इस बस्ती के बच्चे भी जब मन होता था तो स्कूल जाते थे नहीं तो घर के दूसरे काम करने में लग जाते। स्कूल से आकर पढ़ाई करने के बारे में तो ये सोचते ही नहीं थे। जब इस बस्ती पर राज्य शिक्षा केंद्र का ध्यान तो उन्होंने यहाँ लाइब्रेरी खोलने की शुरुआत की। उन्हें इस बस्ती से किसी एक बच्चे का चयन करना था जो इस लाइब्रेरी की जिम्मेदारी संभाल सके। इस बस्ती में बाकी बच्चों से मुस्कान बहुत अलग थी, उसकी पढ़ने में बहुत रूचि थी, इसलिए लाइब्रेरी के संचालन की जिम्मेदारी मुस्कान को दे दी गयी।
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लाइब्रेरी की शुरुआत 26 जनवरी 2016 को गयी थी। अभी इस लाइब्रेरी में लगभग एक हजार किताबें हैं। शुरुआत में मुस्कान ने मेहनत की और घर-घर जाकर बच्चों को बुलाकर लाती थी, लेकिन धीरे-धीरे इन बच्चों को यहाँ आना अच्छा लगने लगा, अब ये अपने आप स्कूल से आने के बाद यहाँ पढ़ने आ जाते हैं। अगर किसी बच्चे को इस लाइब्रेरी की कोई भी किताब घर ले जाने के लिए चाहिए तो इसके लिए मुस्कान ने एक रजिस्टर बनाया है, जिसकी पूरी लिखा पढ़ी वो खुद करती है।
मुस्कान एक नई सोच ‘किताबी मस्ती’ नाम के इस चबूतरे पर हर रोज पढ़ने आने वाली आठवीं कक्षा की पूनम चौरसिया ने कहा, “जबसे यहाँ पढ़ने आने लगी हूँ तबसे बहुत नई चीजें सीखी हैं, राजधानी के नाम, वहां बोली जाने वाली भाषा हमे याद है। रोज नई-नई कहानियां पढ़ते हैं जिसे पढ़कर हमे बहुत मजा आती है।” सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली उसरा कुरेशी ने कहा, “हम सब एक दूसरे से कुछ न कुछ सीखते हैं, मुस्कान हमसे छोटी जरुर है पर पढ़ने में बहुत होशियार है, पढ़ाने के काम की शुरुआत उसने की थी, तबसे हम सब मिलकर यहाँ पढ़ाई करने लगे हैं।”
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मुस्कान को किया जा चुका है सम्मानित
मुस्कान के इस प्रयास के लिए नीति आयोग ने दिल्ली में ‘वुमन ट्रान्सफॉर्मिंग इण्डिया अवार्ड्स’ 9 सितम्बर 2016 को सम्मानित किया। वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने मुस्कान को लाइब्रेरी का बेहतर संचालन के लिए दो लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि दी है।
मजदूरी कर रहे मुस्कान के पिता का तीन महीने पहले हुआ देहांत
मुस्कान के पिता की मजदूरी से पूरे घर का खर्चा चलता था। मुस्कान के पिता टिम्बर का काम करते थे, मजदूरी के दौरान 29 जुलाई को वो छत से गिर गये थे। कुछ दिन इलाज चलने के बाद 9 अगस्त 2017 को मुस्कान के पिता का देहांत हो गया। दो भाई दो बहनों में मुस्कान दूसरे नम्बर की हैं। मुस्कान की माँ इस सदमे से अभी तक बाहर नहीं निकल पायीं हैं उन्होंने कहा, “मुझे बच्चों की पढ़ाई की बहुत चिंता है, पता नहीं अब इन्हें हम पढ़ा भी पायेंगे या नहीं। हमारे सभी बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार हैं, मुस्कान ने इतनी उम्र में अपना नाम रोशन किया है इस बात से इनके पापा बहुत खुश थे।” इतना कहते हुए वो अपने आंसुओं को रोक नहीं पायीं।
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