हनुमानगढ़ ( राजस्थान)। चंद्रपाल बेनीवाल 6 साल पहले जब स्पोर्ट्स टीचर बनकर बरमसर गांव के सरकारी स्कूल पहुंचे थे, तो वहां खेलने वाली एक भी लड़की नहीं थी। यहां तक की उनके प्रयासों से जब एक लड़की का स्टेट लेवल पर खेलने के लिए चयन हुआ तो उसके माता-पिता ने लड़की होने के नाते घर से भेजने से ही मना कर दिया। लेकिन आज उसी गांव के हालात बदल गए हैं, इस गांव की 10 लड़कियों ने हाल ही में राज्यस्तर पर नाम कमाया है।
खेल और खासकर लड़कियों को खेलकूद जैसी प्रतियोगिताओं से दूर रखने वाले इस गांव में जब अक्टूबर में जब ये लड़कियां फुटबाल और एथलिटिक्स खेलकर लौटीं तो गांव वाले बस अड्डे पर डीजे और गुलाल के साथ उनका स्वागत करने गए थे।
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में खेलकूद एवं शारीरिक शिक्षक चंद्रपाल बेनीवाल बताते हैं, “राज्यस्तर पर होनी वाली खेलकूद प्रतियोगिताओं में हमारे स्कूल से अंडर 17 में 10 लड़कियां खेली हैं, जिनमें 6 फुटबाल टीम थीं जबकि 4 एथलिटिक्स में रहीं। अक्टूबर जब ये लड़कियां ट्राफी और मेडल लेकर वापसी लौटी थीं तो गांव वालों ने बैंडबाजे और फूलमाला के साथ इनका स्वागत किया।”
थोड़ा ठहर कर चंद्रपाल कहते हैं, “छह सालों में गांव का माहौल पूरा बदल गया है। जब मैं यहां आया था तो स्कूल का मैदान तक नहीं था, लड़कियां तो दूर लड़के तक खेल-कूद में शामिल नहीं होते थे। स्कूल के पास गली थी पहली बार वहीं पर बच्चों को प्रैक्टिस कराई। जिसमें लड़कियों की संख्या न के बराबर थी, लेकिन कुछ आईं और पहली बार ही एक लड़की का स्टेट लेवल खेलने के लिए चयन हुआ लेकिन उसके परिजनों ने बाहर भेजने से मना कर दिया। लेकिन किसी तरह बात बनी और वो लड़की खेलने गई, उसके बाद तो सिलसिला चल पड़ा।”
जयपुर से करीब 400 किलोमीटर दूर हनुमानगाढ़ जिले में बरमसर गांव है। ये इलाका हरियाणा और पंजाब के सीमावर्ती इलाके में है। लेकिन कुछ साल पहले तक यहां लड़कियों के खेलकूद में शामिल होने के मामले में वैसी आजादी नहीं थी, वो माहौल नहीं था।
इसी साल 20 से 23 अक्टूबर को हुई 26 वीं जिलास्तरीय फुटबाल प्रतियोगिता में बरमसर के सरकारी स्कूल की छात्राओं की टीम ने उम्दा प्रदर्शन कर जिले में प्रथम स्थान किया और विद्यालय की छ: लड़कियों को राज्यस्तर पर जिले का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। स्टेटलेवल पर खेलने वाली लड़कियों में रितु, निशा, अनुसूईया, पूनम, कविता और रूकमणी का नाम शामिल था। वहीं इसी प्रतियोगिता में एथलेटिक्स में राज्यस्तर के लिए चार लड़कियों रीतु, निशा, अनुसूईया और नसरीना ने जिले का प्रतिनिधित्व किया। जब यह ख़बर गांव में पहुंची तक गांव जश्न में डूब गया। इन छात्राओं के स्वागत के लिए गांव के लोग बस अड्डे पर जा पहुंचे और डीजे और गुलाल के साथ उनका बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया गया।
यह बात अनूठी क्यों हैं?
यह राजस्थान का एक ऐसा ग्रामीण इलाक़ा जहां लड़कियों के लिए खेलकूद और उच्चशिक्षा के सपने देखना वर्जित समझा जाता है, हालांकि विगत सालों में इस सोच में फर्क़ आया है लेकिन लगभग 5-6 वर्ष पहले लड़कियों के लिए खेल के नाम पर घर के दालान में अपने भाई-बहनों के संग कुछ खेलने तक ही पर्याप्त था। गांव बरमसर में आलम यह था कि गांव के कुछ लड़के भले ही ग्रामीण क्रिकेट प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने बाहर चले जाएं मगर लड़कियों के लिए तमाम दरवाज़े बंद थे। लड़कियां सिर्फ़ औपचारिक रूप से स्कूल जातीं और घर का काम करतीं। वो घर के फूस-बुहारी तक ही सीमित थीं। हालांकि बेटों को भी कोई ख़ासा कहीं से सहयोग नहीं मिल पा रहा था। लेकिन जिद करके ही सही वो बाहर जा सकते थे। लेकिन सलवार-सूट पहनने वाली लड़कियां स्पोटर्स-जर्सी पहनें और वो बाहर खेलने जाएं? ये लगभग अस्वीकार जैसा था। लेकिन खेलकूद एवं शारीरिक शिक्षक चंद्रपाल बेनीवाल की बदौलत अब गांव का पूरा माहौल ही बदल गया है।
चंद्रपाल बताते हैं, “पहले साल जब अंडर 17 में एक लड़की का चयन हुआ था तो घर ले जाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी। आयोजक खुद चाहते थे लेकिन वो लड़की आए लेकिन परिजन राजी नहीं थे। फिर जब उन्हें हमारी गांव में रिस्तेदारी के बारे में पता चला फिर राजी हुए। लेकिन उसके बाद काफी कुछ बदल गया। यहां स्कूल में अपना ग्राउंड नहीं है। तो एक गांव के ही एक सज्जन ने निर्माण होने नहीं होने तक अपना खाली प्लाट दिया है। जो खेलने कूदने का सामान है उसमें कुछ सरकारी और बाकी सब ग्रामीणों ने खुद इंतजाम किया है।”
चंद्रपाल गर्व से साथ आगे कहते हैं, “प्रतियोगतिओं के लिए जब वो 4-5 महीने पहले तैयारियां शुरु कराते हैं तो 100 तक बच्चे होते हैं जिसमें 60 से ज्यादा लड़कियां होती हैं।”
कई प्रतियोगतियों में भाग ले चुकी रीतू गांव कनेक्शन को बताती हैं, “खेल में जो कुछ हुआ वो चंद्रपाल सर के मार्गदर्शन में ही हुआ, और बाहर जाकर खेलने का साहस बंधा।” रीतू ने इस वर्ष राज्यस्तर प्रतियोगिता में भाग लेने के अलावा
सत्र 2017-18 में हुई 23वीं जिला-स्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। जिसके उन्हें तीसरा स्थान मिला था इसके बाद 62 वीं राज्य-स्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 200 मीटर दौड़ में उसने भाग लिया था।
कुछ इस तरह से रहा सफ़र
सत्र 2016-17 में 22 वीं जिला-स्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता 14 वर्ष आयु वर्ग में पहली बार गांव बरमसर के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया और पहली ही प्रतियोगिता में विद्यालय की कक्षा 7वीं की छात्रा माया गोदारा ने लंबी कूद में जिला स्तर पर पहला स्थान प्राप्त किया था, माया का घर से निकलकर पदक जीतना गांव के टर्निंग प्वाइंट रहा।उसके बाद गांव में खेल के प्रति लहर दौड़ गई और विद्यालय की ओर अलग-अलग खेलों की अनेक टीमें तैयार हो गईं।
सत्र 2018-19 में 24 वीं जिला-स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता में पहली बार 14 वर्ष आयु वर्ग की छात्राओं की टीम ने कबड्डी में भाग लिया था, जिसमें कक्षा 8 वीं की छात्रा नसरीना ने अपने अव्वल दर्जे़ के खेल की बदौलत राज्य-स्तर पर अपने जिले का प्रतिनिधित्व करने का अवसर अर्जित किया। 63 वीं राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया। जो गांव और जिले के लिए गौरव का क्षण था। वहीं एथलिटिक्स में ऊंची कूद में भी नसरीना ने जिले में प्रथम हासिल कर राज्य-स्तर पर खेलने का अवसर हासिल किया। और गांव बरसमर के लिए खेल में लड़कियों के लिए संभावनाओं के द्वार खोलने वाली छात्रा माया भी इस प्रतियोगिता में लंबी कूद में द्वितीय स्थान हासिल कर जिले का प्रतिनिधित्व किया। सत्र 2019-20 में एक बार फिर रीतु ने राज्यस्तर के लिए टिकट कटाया और नागौर में राज्य-स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लिया।
गांव बरमसर की लड़कियों ने सत्र 2021-22 में हुई 26 वीं जिलास्तरीय प्रतियोगिताओं में इतिहास रच दिया और जैसे दमदार तरीके से इस बात को साबित किया हो- ”म्हारी छोरियां छोरां सै कम है कै?” इस साल गांव की छ: लड़कियों ने राज्यस्तर पर अपनी प्रतिभा और खेल प्रदर्शन किया। जो इस गांव ही नहीं बल्कि क्षेत्रभर में पहली बार हुआ।
घर से निकलने के लिए किए कई जतन
अंडर 17में खेल चुकी छात्रा निशा के मुताबिक उसके घर से बाहर जाने पर घर वाले सुरक्षा को लेकर चिंतित होते थे। वो कहती हैं, “घर वालों को चिंता तो हर वक्त रहती है लेकिन बाहर जाने की अनुमति मिल जाती है।” वहीं इसी स्कूल की कविता के मुताबिक बाहर खेलने जाने के लिए वो अपनी दादी से सिफारिश लगवाती थी।
लड़कियां घर से बाहर निकली हैं। सलवार-कमीज की जगह स्पोर्ट की जर्सी भी पहनती हैं, मेडल और पुरस्कार भी जीतती हैं। जिस पर उन्हें सराहना भी मिलती है लेकिन उनकी एक कसक भी है। इन छात्राओं के मुताबिक उन्हें पैक्चिस का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। कई लड़कियों ने बातों बातों में बताया कि जब वो खेलती थीं तो कक्षा में आने के बाद अन्य अध्यापक अधिक प्रोत्साहित नहीं करते थे। पढ़ाई में होने वाली गलतियों का दोष खेल में दिए जाने वाले समय पर मंढ दिया जाता था। लेकिन जब साल-दर-साल प्रतियोगिताओं में अच्छे खेल का प्रदर्शन किया तो परिवेश में काफ़ी परिवर्तन देखा गया।
शिक्षक चंद्रपाल की मांग- गांव को मिले खेल का मैदान
शिक्षक चंद्रपाल बेनीवाल के मुताबिक लड़कियां राज्यस्तर पर अपना नाम कमा ही रही हैं लेकिन वो उन्हें राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करते देखना चाहते हैं। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि गांव में कोई खेल मैदान नहीं है, जिसकी वज़ह से बच्चों को तैयारी करने के लिए प्रर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता है जो कि एक बड़ी परेशानी है। यदि सरकार इस दिशा में कदम उठाती है तो वो अपने हिस्से की मेहनत करने के लिए तैयार हैं।