जहां न पहुंचे एंबुलेंस वहां पहुंचते हैं ‘एंबुलेंस दादा’ , अब पर्दे पर दिखेगी जीवनी

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“इंसान की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। बिना इलाज के 1998 में मेरी मां की मृत्यु हो गई थी उस दिन मैंने कसम खाई की बिना इलाज के कोई भी न मरने पाए। मैंने अपनी बाइक को एंबुलेंस बना दिया। मेरे गाँव के आसपास के 20 गाँव के लोग जरूरत पड़ने पर मुझे फोन करते हैं। अब तक 3500 रोगियों को अपनी बाइक से मुफ्त में अस्पताल पहुंचाया है। लोगों को नि:शुल्क सेवा दे रहा हूं। इस मुहिम में कई लोग और संस्थाएं मेरी मदद कर रही हैं। ” यह कहना है पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के चाय के बागानों में मजदूरी करने वाले 53 वर्षीय करीमुल हक का, जो ‘एंबुलेंस दादा’ के नाम से मशहूर हैं।

पश्चिम बंगाल में ‘एंबुलेंस दादा’ का नाम कौन नहीं जानता और सिर्फ बंगाल ही नहीं बल्कि यह नाम अब देशभर में मशहूर हो चुके है। अब इन एंबुलेंस दादा की जिंदगी पर राजश्री प्रोडक्शन एक फिल्म बनने जा रही है।

2017 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करीमुल हक ही एंबुलेंस दादा के नाम से जाने जाते हैं। करीमुल हक की ‘बाइक एम्बुलेंस’ सेवा से उत्तर बंगाल के जिलों में कई लोगों की जान बच गई और उनकी यह प्रेरक कहानी जल्द ही रुपहले पर्दे पर नजर आ सकती है।

कई मीडिया की खबरों के अनुसार फिल्म हम साथ-साथ हैं के असिस्टेंट डाइरेक्टर रहे विनय मुदगिल जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) के एंबुलेंस दादा के नाम से मशहूर करीमुल हक पर ‘एंबुलेंस मैन’ नामक फिल्म बनाएंगे। फिल्म में करीमुल की जिंदगी और उनके द्वारा गरीबों की मदद के लिए किए जा रहे काम को पेश किया जाएगा। फिल्म के लेखक व निर्देशक विनय मुदगिल होंगे। विनय के सहायक आलोक सिंह ने बताया, “एंबुलेंस दादा करीमुल हक के साथ फिल्म संबंधी एग्रीमेंट हो चुका है। फिल्म का 50 फीसद लाभांश करीमुल हक को प्रदान किया जाएगा।”

गाँव कनेक्शन से फोन पर बात करते हुए अपने जीवन पर बनने जा रही फिल्म के बारे में करीमुल हक बताते हैं, “बहुत खुशी हुई की मेरे जीवन पर राजश्री प्रोडक्शन फिल्म बनाने जा रही है। इस बनने वाली फिल्म से लोग गरीबों और असहायों की मदद के लिए प्रेरित होंगे। फिल्म बनने के बाद जो भी पैसा मिलेगा उससे मैं एक अस्पताल, एक स्कूल और एक अनाथालय बनवाऊंगा।”

करीमुल आगे बताते हैं, “मैं अपने लिए कुछ भी नहीं बनवाऊंगा। जिस लकड़ी के घर में मैं रहता हूं उसी में मैं रहूंगा। कोई नया मकान नहीं बनवाऊंगा। अभी मैं शारीरिक और मानसिक रोग से ग्रसित 15 अनाथ बच्चों का इलाज करवाता हूं और भरण पोषण कर रहा हूं। इस ठंड में मजदूरी करने वाले आदिवासी लोगों के लिए शहर से कपड़े और बिस्तर मांग के लाता हूं और उन्हें बांटता हूं। इस नेक काम में मेरी मदद कई लोग और कई संस्थाएं करती हैं। मैं, लोगों व संस्थाओं से जुटा कर नए-पुराने कपड़े, राशन, दवा आदि भी लाता हूं और जरूरतमंद गरीबों को नि:शुल्क प्रदान करता हूं।”

अपने परिवार के साथ करीमुल हक

एंबुलेंस ना मिलने के कारण मां की मृत्यु के बाद खाई कसम

52 साल के करीमुल हक जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) के एक चाय के बागान में काम करते हैं। बदले में उनको हर महीने 5 हजार रुपये मिलते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं। एक छोटी सी नौकरी करने वाले करीमुल की जिंदगी ने तब बड़ा मोड़ लिया जब उनकी मां बीमार हुई और उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए कोई एंबुलेंस नहीं मिली। उनकी मां ने प्राण त्याग दिए लेकिन उस दिन के बाद करिमुल ने कसम खाई कि वो किसी को इस तरह मरने नहीं देंगे। इसके बाद वो अपने गांव और उसके आस-पास के बीमारों को खुद एंबुलेंस बनकर अस्पताल ले जाने लगे।

इलाज के लिए मरीज को ले जाते करीमुल हक

24 घंटे लोगों को देते हैं नि:शुल्क सेवा

चाहे ठंड हो, गर्मी हो या फिर बारिश, करिमुल 24 घंटे लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। शुरू-शुरू में रिक्शा, ठेला, गाड़ी, बस जो मिलता उसी से वह समय पर रोगियों को अस्पताल पहुंचाने का काम करते रहे। बाद में अपनी बाइक से लोगों की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने लगे।

2017 में पद्मश्री सम्मान से किया गया सम्मानित

उनके इसी जज्बे और सेवा के कारण उन्हें सरकार ने 2017 में विराट कोहली, अनुराधा पौडवाल, कैलाश खेर, संजीव कपूर, साक्षी मलिक, दीपा कर्मकार व दीपा मलिक सरीखी हस्तियों के साथ करीमुल हक को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। पद्मश्री सम्मान से अभिभूत करीमुल हक ने कहा था कि उनका हौसला और बढ़ गया है। उनमें और भी ज्यादा उत्साह व ऊर्जा का संचार हुआ है। अब वह और बढ़चढ़ कर समाजसेवा करेंगे।

20 गाँव एंबुलेंस दादा के भरोसे

करीमुल हक चाय बागान में काम करते हैं और जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार के 20 गाँवों के लोग उन्हें ‘एम्बुलेंस सेवा’ के लिए फोन करते हैं। वह गाँवों में ‘एम्बुलेंस मैन’ के रूप में जाने जाते हैं जहां लोग निकटवर्ती सरदार अस्पताल पहुंचने के लिए हक की बाइक का इस्तेमाल करते हैं।

मुश्किल थी राह

हालांकि, बेहद कम तनख्वाह और संसाधनों के अभाव के चलते करिमुल की यह राह बेहद मुश्किल थी। तब वो जिस चाय के बागान में काम करते हैं वहां के मालिक से उन्होने इस बारे में बात की और उनसे उनकी पुरानी बाइक मांगी। इसके बाद एम्बुलेंस दादा ने उस बाइक में कुछ सुधार कर उसे एंबुलेंस का रूप दिया। इसके बाद तो वो दूर-दूर के गाँवों में भी जाकर बीमारों को अस्पताल पहुंचाने लगे।

बाइक कंपनी ने उपहार में दी बाइक

किसी बीमार के फोन करने पर एंबुलेंस पहुंचे या नहीं, एंबुलेंस दादा जरूर वक्त पर पहुंच जाते हैं। करीमुल को जो भी आर्थिक मदद मिलती है वो उस पैसे से अपनी एबुंलेंस में फर्स्ट एड और दवाईयां रखते हैं ताकि जरुरमंद लोगों को शुरुआती इलाज मिल जाए। उनके इसी जज्बे को सलाम करते हुए एक बाइक कंपनी ने उन्हें बाइक एंबुलेंस उपहार में दी है जिसके बाद उनका काम और आसान हो गया है।

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