स्वयं डेस्क
लखनऊ। चाहे सूखा पड़े या बाढ़ जैसी विभिषिका, संजय नायक की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। हो भी क्यों न वह खेती छोड़ कारोबारी जो बन गए हैं।
डेढ़ साल पहले ही उन्होंने आधा एकड़ खेत किराए पर लेकर फूलों की खेती शुरू की और अब उनकी सालाना आय एक लाख 80 हजार रुपए पर पहुंच गई है। इस कमाई के साथ ही उन्होंने दो मजदूरों व उनके परिवारों का पेट पाला। ओडिशा के सुंदगढ़ जिले के निवासी संजय नायक की मानें तो जब उनके यहां सूखा पड़ा तो कुछ भी नहीं सूझ रहा था। उस पर किसानों के आत्महत्या करने की खबरों ने मनोबल और गिरा दिया था। लेकन नायक ने इस मुश्किल घड़ी में भी दूरंदेशी का फैसला किया और फूलों की खेती करने का निर्णय लिया। इसमें उनकी कृषि विज्ञान केंद्र से स्नातक की पढ़ाई काम आई। वहां उन्होंने फूलों की उच्च गुणवत्ता और कीटों से बचाव के बारे में पढ़ाई की थी।
कृषि विकास केंद्र कृषि विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष जयंत पाती के मुताबिक नायक के खेत में अब फूलों के अलावा मेवे का बाग और सब्जियां उगाई जाती हैं। नायक ने इसमें विश्वविद्यालय से तकनीकी सहायता ली। उन्हें जब यह तसल्ली हो गई कि वह फूलों के कारोबार से अपनी आजीविका चला पाएंगे तो उन्होंने इसे पेशा बना लिया। इस वक्त उनके पास साढ़े 10 लाख रुपए की कृषि संपत्ति है। उनका सालाना टर्नओवर तीन लाख रुपए का है। यह वह फूल, फल और सब्जियां बेचकर कमाते हैं।
केंचुआ खाद से लाखों कम रहे उदय चंद्र
नायक की तरह ही उदय चंद्र पात्रा की कहानी है। हैं तो वह 67 साल के लेकिन खेती के प्रति जुनून और उत्साह किसी नौजवान से कम नहीं। पात्रा भी सुंदरगढ़ जिले से आते हैं। उन्होंने जैविक ख्राद में नाम रोशन किया है। हालांकि वह ऑटोमोबाइल इंजीनियर हैं लेकिन जैविक खाद में उनका कोई सानी नहीं है। वह अपना मूल पेशा छोड़कर खेती-किसानी में उतरे। जैविक खाद तैयार करने में पैर जमाने के बाद उन्होंने केंचुआ खाद पर काम शुरू किया। वह केंचुआ खाद को फसलों के लिए और लाभकारी बनाते हैं। इसके लिए वह स्वदेशी तकनीक और जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। वह 10 लाख रुपए के केंचुए पैदा करते हैं। इससे वह करीब 40 लाख रुपए की जैविक खाद और 10 लाख रुपए केंचुआ खाद बना लेते हैं।
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