मधुमक्खियों से आई प्रवीण रघुवंशी के जीवन में मिठास, किसानों को सलाह- रबी सीजन में पालें इस प्रजाति की मधुमक्खियां

बदलता इंडिया में आज पढ़िए मध्य प्रदेश में बैतूल जिले के प्रवीण रघुवंशी की कहानी। प्रवीण के पास मधुमक्खियों के करीब 100 बॉक्स हैं, जिससे उन्हें सलाना औसतन 6-7 लाख की कमाई होती है। वो किसानों को सलाह देते हैं कि रबी सीजन से मधुमक्खी पालन की शुरुआत करें और पहली बार सिर्फ 5 बॉक्स रखें।
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बैतूल (मध्य प्रदेश)। देश में बीते कुछ सालों से युवा किसानों में मधुमक्खी पालन को लेकर खास रुझान देखा गया है। मधुमक्खी पालन के लिए रबी सीजन सबसे अनुकूल माना जाता है। क्योंकि इस मौसम में सरसों, सूरजमुखी, धनिया समेत कई ऐसी फसलें लगाई जाती हैं, जिनके फूलों से शहद का अच्छा उत्पादन होता है। मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए देश में हनी मिशन भी चलाया जा रहा है।

घरेलू बाजार में शहद की मांग तो है ही विदेशी बाजारों में भी भारत के शहद की काफी मांग रहती है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण यानी (एपीडा) के मुताबिक साल 2020-21 में भारत ने विदेशों से भेजे गए शहद से 716.13 करोड़ रुपए मिले थे। मधु मक्खी पालन से देश में कई किसानों, युवाओं में महिलाओं ने अपना अलग ही स्थान बना लिया है। उनके लिए वो फुल टाइम काम और अच्छी कमाई का जरिया है। वो मधु मक्खी पालन कर शहद बेचने के अतिरिक्त बाई प्रोडक्ट और या उत्पाद बनाकर बेचते हैं। ऐसे ही एक युवा उद्ममी और ट्रेनर हैं प्रवीण रघुवंशी। वो न सिर्फ मधु मक्खी पालन करते हैं बल्कि कई जिलों के किसान उनसे ये काम सीखने भी आते हैं। इसके अलावा वो मधुमक्खियों की कॉलोनियों और बॉक्स भी सप्लाई करते हैं।

मध्य प्रदेश में बैतूल जिले के मुलताई तहसील के अंतर्गत आनेवाले गांव सांवरी के प्रवीण की जिंदगी मधुमक्खी पालन से ही संवरी है। मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ प्रवीण रघुवंशी के मुताबिक किसानों के लिए मधुमक्खी पालन अतिरिक्त आय अर्जित करने का एक अच्छा माध्यम है। जो किसान पहली बार मधुमक्खी पालन करना चाहते हैं वे उन्हें 5 बॉक्स से शुरूआत की सलाह देते हैं।

मधुमक्खी पालन के बारे में लोगों को जानकारी देते प्रवीण रघुवंशी। फोटो अरेंजमेंट

100 से अधिक बॉक्स लगा रखे हैं

प्रवीण के पास इस वक्त करीब 100 बॉक्स हैं। औसतन वो एक बॉक्स से 30 किलो तक शहद उत्पादन करते हैं। प्रवीण बताते हैं, “मेरे पास 100 बॉक्स हैं जो इस वक्त राजस्थान के सवाई माधोपुर क्षेत्र में रखे हैं क्योंकि वहां इस वक्त बाजरे की फसल अच्छी होती है। बाजरे की न्यूट्रिएंड वैल्यू काफी अच्छी होती है। रबी के सीजन में हम बॉक्सों को बैतूल ले आते हैं क्योंकि यहां सरसों का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है।”

ज्यादातर उत्पादन और मधुमक्खियों की कॉलोनियों (संख्या या परिवार) की अधिक संख्या के लिए वो बॉक्सों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की सलाह देते हैं। प्रवीण बताते हैं, “मैं साल में तीन बार शहद का उत्पादन लेता हूं। औसतन एक बॉक्से से 30 किलो तक शहद मिल जाता है। बॉक्सों की शिफ्टिंग रात में ही करना चाहिए ताकि कोई मधुमक्खी छूटे नहीं है।”

सबसे अधिक शहद सरसों की फसल के आसपास होता है लेकिन जामुन के पेड़, जंगलों में नीम के पेड़, आम, लीची, सूरजमुखी, रामतिल, धनिया और मोरिंगा के फूलों से शहद का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।

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मधु मक्खी के बक्शों के साथ प्रवीण रघुवंशी (चेक शर्ट)

सालाना 7 लाख रुपये की कमाई- प्रवीण

ग्रामीण भारत में कृषि आधारित उद्मिता से जुड़े तमाम दूसरे कामों की तरह मधु मक्खी पालन से कमाई भी बॉक्सों की संख्या, आसपास फसल, काम करने के तरीके, मार्केटिंग आदि पर निर्भर करती है। प्रवीण के मुताबिक बाजार में अच्छी क्वालिटी के शहद की बहुत मांग है। बस आपको क्वालिटी से समझौता नहीं करते हुए मार्केटिंग पर ध्यान देना है।

प्रवीण कहते हैं, “100 बॉक्स से औसतन 3 हजार किलो का उत्पादन होता है। इससे 10 लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है। जिसमें सालाना 3 से 4 लाख रुपये की लागत आती है। इस तरह खर्च काटकर 6-7 लाख रुपये का सालाना मुनाफा हो जाता है।”

प्रवीण विस्तार से बताते हैं कमाई कहां से होती है वो क्या कैसे बेचते हैं। वो कहते हैं, “कोम्ब हनी (छत्ता शहद) बाजार में 2000 तक में बिकता है। कोम्ब हनी को मधुमक्खियां ही स्टोरेज करती है, जिसका शहद शुद्ध और बेहतर क्वालिटी का होता है। वहीं सामान्य शहद बाजार में 500 से 1000 रुपये प्रति किलो बिक जाता है।”

मधु मक्खी पालन में महिलाओं की भागीदारी अहम

शहद उत्पादन के लिए कौन सी फसलें उपयोगी हैं

प्रवीण के मुताबिक मधुमक्की पालन के दौरान सबसे जरुरी है कि इसका इंतजाम रहे कि मधुमक्खियों को सही तरीके से पोषण (खाना) मिलता रहे।

वो कहते हैं, “गर्मी के दिनों में जब फूलों की कमी हो जाती है तब मधुमक्खियों के बॉक्स के पास शक्कर का घोल रखा जाना चाहिए, ताकि वो जिंदा रहे। मधुमक्खी की अच्छी सेहत के लिए बारिश के समय परागकण खिलाया जाता है। परागकण आजकल ऑनलाईन भी मिल जाते हैं या फिर खुद भी तैयार कर सकते हैं।”

मधु मक्खियां सिर्फ शहद नहीं देतीं बल्कि वो प्रकृति की खाद्य श्रृंखला की अहम कड़ी हैं। कृषि और खाद्य जानकारों के मुताबिक 70 फीसदी फसलें मधुमक्खियों द्वारा परागण करने से होती है। ऐसे में मधुमक्खी फसलों के अच्छे उत्पादन में भी लाभदायक है।

प्रवीण कहते हैं, “मधुमक्खियों के परागण करने से फसलों के दाने स्वस्थ और मोटे होते हैं। फसलों के फूलों से मिठास निकालने के कारण इसमें कीड़े पड़ने की संभावना बेहद कम हो जाती है। जिससे उत्पादन अधिक मिलता है। मधुमक्खियां शहद के साथ पोलन का उत्पादन करती है। पोलीनेशन से फसल का उत्पादन अधिक होता है।”

कॉम्बो हनी

छत्ते में तीन प्रकार सदस्य होते हैं, एक रानी मक्खी, 90 फीसदी श्रमिक

प्रवीण के मुताबिक सामान्यता शहद के एक छत्ते में तीन प्रकार के सदस्य होते हैं। इनमें एक छत्ते में एक रानी मक्खी होती है, जो अंडे देने का काम करती है। वहीं लगभग 10 प्रतिशत नर होते हैं, जो रानी मक्खी को क्रॉस करते हैं। जबकि 90 फीसदी श्रमिक मक्खियां होती है। जो पराग कण लाने, छत्ते की रक्षा करने, पानी लाने, शहद उत्पादन करने समेत प्रमुख काम करती है।

5 प्रकार की होती हैं मधुमक्खियां

एमएससी (master of science in horticulture) तक पढ़ाई करने वाले प्रवीण गांव कनेक्शन को बताते हैं कि मधुमक्खियों की पांच तरह की प्रजातियां होती है। इनमें कुछ देशी प्रजाति है तो कुछ विदेशी।

1.एपिस सेरेना इंडिका-आमतौर पर इसे देशी मधुमक्खी के नाम से जाना जाता है। इस प्रजाति का पालन आसानी से किया जा सकता है। एक साल में इसके एक बॉक्स से 10 से 15 किलोग्राम शहद का उत्पादन लिया जा सकता है। इस प्रजाति की मधुमक्खियां इंसान पर झुंड में अटैक नहीं करती है।

2.एपिस मेलीफेरा-मधुमक्खी की यह यूरोपीय प्रजाति है। इस प्रजाति की मधुमक्खियां भी इंसानों पर झुंड में हमला नहीं करती है। इसलिए इसका पालन आसानी से किया जा सकता है। इस प्रजाति के एक बॉक्स से सालाना 30-60 किलो शहद का उत्पादन लिया जा सकता है। हालांकि भारत में सालाना उत्पादन 30 किलोग्राम होता है।

3.डाइगोना बी-इसे आमतौर पर डंकरहित मधुमक्खी कहा जाता है, जो इंसानों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती है। इसका पालन किया जा सकता है लेकिन उत्पादन बेहद कम होता है। इसका शहद औषधीय गुणों से भरपूर और खाने में कड़वा होता है। इसलिए इसका प्रयोग केवल विभिन्न प्रकार की दवाईयां बनाने में ही किया जाता है। इस प्रजाति की मधुमक्खियां खुद मोम का उत्पादन नहीं करती है। यह विभिन्न पेड़ पौधों से गोंद इकट्ठा करके छत्ता बनाकर शहद को सहेजती है।

4. एपिस फ्लोरिया-यह आकार में छोटी और जंगल में रहने वाली होती हैं। जो भारत में खेतों किनारे या जंगलों में विभिन्न पेड़ पौधों में पाई जाती है। इस प्रजाति की मधुमक्खी एक जगह नहीं रूकती है। इस वजह से इसका पालन संभव नहीं है।

5.एपिस डॉर्सेटा– एपिस फ्लोरिया की तुलना में इसका आकार काफी बढ़ा होता है। यह भी जंगलों में पाई जाती है। यह इंसानों पर झुंड में अटैक करती है। इसलिए इसका पालन संभव नहीं है।

भारत में प्राकृतिक शहद उत्पादन

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण यानी एपीडा के मुताबिक, भारत ने 2020-21 में भारत ने दुनियाभर में 59,999.24 मीटिक टन प्राकृतिक शहद का निर्यात किया। जिससे भारत को 716.13 करोड़ रूपए या 96.77 मिलियन अमेरिकी डॉलर मिले थे। भारत यूएसए, कनाड़ा, सउदी अरब, सउदी अरब अमीरात और बांग्लादेश को शहद निर्यात करता है।

प्राकृतिक शहद की प्रमुख किस्मों में सरसों का शहद, लीची शहद, सूरजमुखी शहद, नीलगिरी शहद, करंज या पोंगमिआ शहद, बबूल शहद, हिमालयी मल्टी फलोरा शहद तथा वनस्पति और जंगली शहद प्रमुख है। एपीडा के मुताबिक भारत के जंगलों में 500 प्रजाति के जंगली फूल पौधे पाए जाते हैं, जिसके पराग और मकरंद से मधुमक्खियां शहद तैयार करती है।

छत्ते से शहद अलग करने का देसी उपकरण।

हनी मिशन या स्वीट क्रांति के तहत सरकार कैसे मदद करती है

देश में हनी मिशन या स्वीट क्रांति की शुरुआत 2017 में हुई थी, जिसका उद्देश्य देश में हनी और वैक्स आदि के जरिये किसानों और ग्रामीणों को आजीविका के नए अवसर देना और आमदनी बढ़ाना है।

देश में मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित करने के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग राज्य/मंडलीय कार्यालय/खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड,सीबीआरटीआई, मधुमक्खीपालन एनजीओ, राज्य मधुमक्खीपालन विस्तार केंद्र और मधुमक्खीपालन सहायक या मास्टर ट्रेनर आदि के माध्यम से जागरुकता, ट्रेनिंग, मार्केटिंग और लोन आदि के संबंध में जानकारी और सुविधाएं दी जाती हैं।

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