महतैन, सतना (मध्य प्रदेश)। बचपन में आपने भी अपनी छोटी, छोटी कल्पनाओं को माटी में सजाया-संवारा होगा। उसे कोई न कोई आकार दिया होगा। अमल माझी भी उन्हीं में से एक हैं। उनका माटी प्रेम बचपन के हाथी, घोड़ा बनाने से ही शुरू हुआ था। जो आज बड़े कारोबार का रूप ले चुका है। अब उनके हाथों का हुनर देश के कोने-कोने तक पहुंच रहा है।
“स्कूल के समय से ही मिट्टी का कुछ न कुछ बनाता रहता था। कक्षा में रहता तो कॉपी में पेन से कुछ उकेरता। इस पर कई बार माता-पिता और मास्टर जी की मार भी खाई। इसके बाद भी माटी का मोह नहीं छूट पाया। आज भी इसी में लगा हूं, “अमल माझी गाँव कनेक्शन से बताते हैं।
48 वर्षीय अमल मध्यप्रदेश के सतना जिले के गांव महतैन रहने वाले हैं। महतैन सतना जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर नागौद से कालिंजर मार्ग पर बसा हुआ है। जहां वह अपनी कल्पनाओं को माटी के सहारे साकार कर रहा है।
दिल्ली में निखारी माटी की कला, कोलकाता और हरियाणा भी गए
बचपन का शौक हुनर बन गया और धीरे-धीरे हुनर ही आजीविका। आजीविका चलाने के लिए अमल ने दिल्ली की राह पकड़ ली और अपने हुनर को मौजूदा दौर के हिसाब से निखारने लगे। कुछ दिनों में वहां कारोबार भी शुरू कर दिया।
“वर्ष 1996 में कक्षा दसवीं पास करने के बाद दिल्ली निकल गया। यहां पर माटी में कलाकृति बनाना जैसे फेस, कान, कुंडल आदि। इसके अलावा इजिप्ट आर्ट, मुगल आर्ट और इंडियन कल्चर आर्ट भी सीखा। इससे पहले फिल्मों के पोस्टर बनाना भी, “अमल ने बताया।
अमल आगे कहते हैं, “आधार तो गांव की ही कला थी लेकिन आज के हिसाब से और गृहस्थी चलाने के लिए काम सीखना जरूरी था। इस लिए दिल्ली के अलावा कोलकाता, हरियाणा और राजस्थान में गया।”
देश के कई राज्यों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका तक भी गया सामान
अमल के हाथों का हुनर न केवल देश के अन्य प्रदेशों तक पहुंच बल्कि विदेशों में भी गया। अमल बताते हैं, “कोलकाता, हरियाणा, राजस्थान में अपनी कला को निखारने के बाद दिल्ली में आर्ट के कारोबार जमाया। वहां से देश में कई राज्यों में सामान भेजा और ऑस्ट्रेलिया, दुबई और अमेरिका तक सामान गया।”
आठ साल पहले लौटे अपने गांव
दिल्ली में आर्ट काम ठीक तरह से चल रहा था लेकिन माता पिता की उम्र का बढ़ना, गांव की माटी से बचपन वाला प्यार उन्हें गाँव ले आया। वह 8 साल पहले दिल्ली का आर्ट कारोबार छोड़ कर गांव चले आये।
अमल बताते हैं, “गाँव से शुरू हुई माटी बाकी कला को गाँव को लौटाने का मन बना चुका था। माता-पिता जी की उम्र भी बढ़ रही थी। थोड़ी बहुत खेती है उसे भी देखना था तो छोटे भाई को दिल्ली का काम सौंप कर वर्ष 2013 में महतैन लौट आये। यहां नए सिरे से काम जमा लिया।”
सीजन के हिसाब से कमाई पर साल का 3 से 4 लाख की आमदनी
अपने माता पिता की चार संतानों में दूसरे नंबर के हैं अमल। इनके माटी के कला की कमाई सीजन के हिसाब से होती है, हालांकि सालाना 3 से 4 लाख रुपए तक कमा लेते हैं।
अमल बताते हैं, “माटी की कला के अपने प्रशंसक हैं। इसलिए कमाई का कोई फिक्स नहीं है। सीजन में पैसा आ जाता है। अभी दीपावली है। तो दीया बना रहे है इससे करीब-करीब 60-70 हज़ार रुपये आ सकते हैं। वैसे सालाना कमाई यही कोई 3 से 4 लाख के करीब हो जाती है।”
इलाके के गांवों से इकट्ठा करते हैं मिट्टी
इन दिनों दीपावली के लिए अमल दीया बना रहे हैं। इसके लिए जो मिट्टी उपयोग ला रहे हैं वह आसपास के गाँवों की है। इसके अलावा फ्लावर पॉट, गमले आदि भी इसी मिट्टी से बनाते हैं।
माटी के कलाकार अमल माझी बताते हैं, “आसपास के गाँव मसनहा, पहाड़िया, सिंहपुर, महतैन आदि में अलग अलग प्रकार की मिट्टी है। यहीं से मिट्टी लाते हैं। उसे हौज में डालते हैं। हौज में 120 कुंतल मिट्टी एक बार में आ जाती है। इस मिट्टी में करीब 1500 लीटर पानी डालते हैं। इस मिट्टी को पानी में तब तक मशीन से मथते हैं जब तक मिट्टी एकदम पानी में घुल न जाये। इसके बाद छन्ने से कंकड़ और छोटी जड़ों को निकाल लेते हैं। यह मिट्टी को एक चरही में ले जाते हैं जो पानी को सोख लेती है। और शुद्ध मिट्टी ऊपर रह जाती है। इस तरह से मिट्टी में मौजूद गंदगी दूर हो जाती है। इसी मिट्टी से दीया सहित अन्य उत्पाद बनाते हैं।”
600 का फ्लावर पॉट, 2 रुपये से 5 रुपये तक का एक दीया
माटी के कलाकार अमल की कला केंद्र में तरह तरह के फ्लावर पॉट, मूर्तियां और भी कई कलाकृतियां हैं।
अमल बताते हैं, “माटी कला केंद्र में 600 रुपए तक के फ्लावर पॉट और हाल में बन रहे दीया की कीमत 2 से 5 रुपये तक है। इसमें साधारण दीया 2 में और डिजाइनर 5 रुपये में एक बिकता है। जबकि बाजार में 900 से 1000 रुपये तक हो सकती है।”