गांव कनेक्शन विशेष : इन 6 भिखारियों की आप बीती सुनकर आप की सोच बदल जाएगी

लखनऊ

भिखारियों के साथ आम तौर पर हम आप कैसा व्यवहार करते हैं, चल भाग, दूर हट। कभी बहुत दया आ गई तो दूर से पैसे दे दिए, या खाना खिला दिया। लेकिन लंबे बाल, फटे और मैले कुचैले कपड़ों के पीछे जो आदमी होता है वो हमारे आप जैसा ही होता। वो भिखारी क्यों बनें, ये सवाल कुछ से पूछ लेंगे तो आप की सोच बदल जाएगी, गांव कनेक्शन की विशेष सीरीज में पढ़िए-  

लखनऊ। कोई अपनी दिल की मरीज बेटी का इलाज कराते-कराते सब कुछ गंवा दिया, बेटी नहीं बची और जमीन भी बिक गई, मजबूरी में वो भिखारी बन गया। रेलवे स्टेशन के बाहर मैले-कुचेले कपड़े पहने बैठा था, उसे कुष्ट रोग हो गया था, परिवार वालों ने घर से निकाल दिया। इन सब में एक वो भी था जो नौकरी करने शहर आया था, ताकि परिवार को अच्छी जिंदगी दे सके, यहां हालात ने हाथ में कटोरा पकड़ा दिया।

लखनऊ के सैकड़ों भिखारियों की जिंदगी बदलने में जुटे एक शख्स की मेहनत की बदौलत बहुत से भिखारी अब हाथ नहीं फैलाते वो अपने हाथों से काम कर पेट भरते हैं। गांव कनेक्शन ऐसे 6 भिखारी रहे लोगों की जिंदगी से आपको रुबरु करा रहा है।

35 साल मांगी भीख मांगने वाले हाथ अब रिक्शा चलाते हैं..

उन्नाव जिले के विजय बहादुर जब सात साल के थे तो उनके पिता उन्हें लेकर बैलगाड़ी से भूसा बेचने लखनऊ आये। जब इनके पिता भूसे के पैसों का लेनदेन कर रहे थे तब खेलने के चक्कर में ये यहीं खो गये। विजय बहादुर (42 वर्ष) बताते हैं, “मुझे नहीं पता घरवालों ने मुझे ढूंढा या नहीं, छोटा था पेट भरना था इसलिए हनुमान मन्दिर पर खाना बंट रहा था वहीं खाने लगा। फिर तो हर रोज यहीं भीख मांगकर खाने की आदत बन गयी, कभी-कभी लोग फेककर पैसे दे देते थे तो उससे नशा करने लगे। कभी अच्छी संगत नहीं मिली, किसी ने रोका-टोका नहीं तो नशे का लती बन गया।”

अपना रिक्शा दिखाते हुए वो आगे कहते हैं, “दिनभर मेहनत करके डेढ़ दो सौ रुपए कमा लेता हूँ, अपनी मेहनत की कमाई से जो खाता हूँ उसमे सुकून मिलता है, पहले खाने के लिए घंटों लाइन में खड़े होकर धक्के खाना पड़ता था। भीख माँगना छोड़ना तो चाहते थे पर कभी किसी ने रास्ता नहीं दिखाया, पिछले एक साल से इन भैया की सलाह से रिक्शा चला रहे हैं अब अपनी कमाई का खाते हैं मन को बहुत संतोष मिलता है।” विजय बहादुर की तरह ऐसे कई भिक्षुकों का यही कहना है कि वो भीख माँगना तो छोड़ना चाहते हैं पर दो वक़्त मजदूरी करके उनका पेट भर जाएगा ये कौन जिम्मेदारी लेगा।

गाजीपुर जिले के नरेन्द्र देव यादव कुष्ठ रोग की वजह से बन गये भिखारी 

कुष्ठ रोग तो घरवालों ने भगा दिया, भीख मांगना नरेंद्र की मजबूरी बन गई थी

लम्बी दाढ़ी, मैले कुचैले कपड़े पहने नरेन्द्र देव यादव (56 वर्ष) मूल रूप से गाजीपुर जिले के रहने वाले हैं। जब इन्हें कुष्ठ रोग की बीमारी हो गयी तो इनके परिवार वालों ने इन्हें घर से निकाल दिया। रोजी-रोटी के लिए ये कुछ काम करना चाहते थे लेकिन इनका शरीर साथ नहीं दे रहा था, इसलिए भीख माँगना इनके लिए मजबूरी बन गया।

नरेंद्र देव यादव काफी देर तक अपने चेहरे को दोनों घुटनों में छुपाए रखते हैं फिर काफी कुरेदने पर मायूसी के साथ बताते हैं, “मुझे अपनी इस जिन्दगी से घुटन होती है पर मजबूरी में पेट भरने के लिए सर नीचे झुकाकर हाथ फैलाना पड़ता है।”

इतना बताते-बताते उनका आंखे डबडबा आती हैं, “ अगर मुझे कोई काम करने को मिल जाये तो मै अभी से भीख मांगना छोड़ दूँ, शरीर साथ नहीं देता है कि हर दिन मजदूरी कर पाऊं, भीख मांगकर पैसे इकट्ठा नहीं करता हूँ अब तो सिर्फ पेट भरने के लिए ही मांगता हूँ।” वो आगे बताते हैं। कुष्ठ रोग होने की वजह से नरेन्द्र के हाथ-पैर बहुत ज्यादा नहीं चलते हैं। आसपास के लोगों के मुताबिक नरेंद्र पिछले कई वर्षों से सदमे में रहते हैं।

मनोज कुमार राजधानी आये थे नौकरी करने, काम नहीं मिला तो बन गये भिखारी 

ये पेट जो न कराए वो कम है

सीतापुर जिले से 35 किलोमीटर दूर पिसावां ब्लॉक के बरगांवा गाँव में रहने वाले मनोज कुमार जब सात साल के थे तब इनके माँ-बाप का देहांत हो गया। पांच भाइयों में सबसे छोटे मनोज कुमार (32 वर्ष) जब अपनी आपबीती बता रहे थे तो उनके चेहरे पर एक उदासी थी, “भीख माँगने का किसी को शौक नहीं है पर ये पेट जो न कराए वो कम है, दस साल की उमर से परदेश और फुटपाथ जिन्दगी बन गये हैं, गरीबी की वजह से इस दुनिया में कोई अपना साथी नहीं है। पिछले साल मजदूरी करते समय जब बीमार पड़ गये तो किसी ने सुध नहीं ली, पैसे नहीं थे जिससे इलाज कराएं।”

मनोज की आँखों में आंसू थे, “उसी दौरान शरद भैया मिले तबतक मै बहुत कमजोर हो चुका था, ये भैया मुझे अस्पताल ले गये कई जांचे हुई तब पता चला मुझे टीबी है, हर दिन अस्पताल में दवा खानी थी, मजदूरी करने की क्षमता नहीं थी, महीनों भीख मांगकर पेट भरा।” मनोज पहले से अब ठीक हो गये हैं, अब ये मजदूरी करने जाते हैं। मनोज आज ‘भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान’ के सक्रिय सदस्य बन गये हैं। जो दिनभर तो मजदूरी करते हैं पर शाम को भीख मांग रहे लोगों को काम करने के लिए प्रेरित करते हैं।

श्रवण सिंह को दूसरों की मदद करने की है आदत 

दूसरों की मदद करते और पानी का पाउच बेचते हैं श्रवण सिंह

लखनऊ के बांसमंडी में रहने वाले श्रवण सिंह (34 वर्ष) ने दोनों हाथ जोड़कर हंसते हुए कहा, “मुझे बस समाज सेवा करने की बीमारी है, मुझसे जितना हो सकता है मै दूसरों की मदद करता हूँ, अगर किसी प्यासे को पानी पिला पाऊं, बीमार को अस्पताल ले जा पाऊं इससे ज्यादा मेरे लिए खुशी की बात कोई और नहीं हो सकती है।”

श्रवण के माता-पिता का देहांत 11 साल की उम्र में हो गया था। ये तीन बहने और दो भाई हैं, बहन की ससुराल में इन्हें काम बहुत करना पड़ता था इसलिए 13 साल की उम्र में वहां से भागकर लखनऊ आ गये। श्रवण कहते हैं, “आज से 15-20 साल पहले जब मजदूरी करते थे तो मालिक सम्मान देते थे। अब तो अगर होटलों पर काम करने जाओ तो बहुत बुरा हाल है।”

श्रवण होटल पर काम करने को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “होटल पर दिन भर काम करता था तब पेटभर खाना खा पाता था। कई बार वो गाली देकर बात करते थे, कभी-कभी मालिकों का हाथ भी उठ जाता था, मै इन सबसे परेशान हो गया था, मेरे कुछ दोस्तों ने सलाह दी इससे अच्छा भीख मांगने लगो, तभी से मै भीख मांगने लगा।”

श्रवण का मानना है जब कोई एक बार भीख मांगने लगता है तो ये आदत में शामिल हो जाता है। श्रवण बात करते हुए एक बात बार-बार दोहरा रहे थे, “मुझे दूसरों की मदद करना बहुत अच्छा लगता है, शरद भैया को देखकर मुझे अपने अच्छे काम करने में मदद मिली है, भैया ने मुझे 500 रुपए देकर पानी के पाउच बेचने की सलाह दी, अब मै भीख नहीं मांगता हूँ, पाउच गर्मियों में ही बेच पाता हूँ बाकी के समय मजदूरी करता हूँ। अभी भी कई बार ऐसा होता है जब काम नहीं मिलता है तो मजबूरी में मन्दिर में जाकर मांगकर खाना खाना पड़ता है, भीख में पैसे तो नहीं मांगते हैं।”

रोहित सक्सेना बेटी की इलाज के कर्ज से आ गये थे लखनऊ, रोजगार न मिला तो मन्दिर मांगकर खाना पड़ा खाना 

बेटी की इलाज में बिक गयी जमीन, कर्जदारों से जान बचाने के लिए बन गए भिखारी

रोहित सक्सेना (42 वर्ष) लखीमपुर खीरी के रहने वाले हैं। इनकी बेटी हार्ट की मरीज थी, जिसकी इलाज में बहुत पैसा खर्च हुआ फिर भी उसे बचा नहीं सके। बेटी की इलाज में इनके कपड़े की दुकान बंद हो गयी, आमदनी कुछ बची नहीं, इनके ऊपर बहुत ज्यादा कर्जा हो गया। दो साल पहले काम की उम्मीद से ये लखनऊ आ गये कई दिन भटकने के बाद जब इन्हें काम नहीं मिला तो मजबूरी में पेट भरने के लिए मन्दिर के पास जाकर खड़े होना पड़ा।

जिन्दगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था, पर बेटी की इलाज में आज हम फुठपाथ पर सो रहे हैं, इलाज में सब कुछ गंवा दिया पर उसे बचा नहीं सके। हमेशा मेहनत की है तब खाया है, अब तो फुटपाथ पर जब सोते हैं तो पुलिस की लाठियां खाते हैं

रोहित सक्सेना, (42 वर्ष) और मौसम के हिसाब से मजदूरी करते हैं।

“जिन्दगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था, पर बेटी की इलाज में आज हम फुठपाथ पर सो रहे हैं, इलाज में सब कुछ गंवा दिया पर उसे बचा नहीं सके। हमेशा मेहनत की है तब खाया है, अब तो फुटपाथ पर जब सोते हैं तो पुलिस की लाठियां खाते हैं। जब कई दिनो तक काम नहीं मिला तो मजबूरी में मन्दिर में सर झुकाकर खाना खाकर आ जाते थे, और घंटों एकांत में बैठे रहते थे।” ये बताते हुए रोहित की आवाज़ लड़खड़ा रही थी और आँखों में आंसू थे, “मन्दिर के आस-पास लगी दुकानों से धीरे-धीरे व्यवहार बनाया और एक फूल की दुकान पर काम करने लगे, मन्दिर और दुकान पर आते-जाते लोगों को देखता रहता था उनसे बात करता था जिससे मुझे कहीं अच्छा काम मिल सके।”

रोहित के मिलनसार स्वभाव से एक सज्जन व्यक्ति ने इन्हें पानी के प्याऊ पर काम दे दिया। अब गर्मियों में ये प्याऊ पर काम करते हैं और सर्दियों में रैन बसेरा में काम करते हैं। जब इन्हें काम नहीं मिलता है तो जो पैसे जमा किये होते हैं उसी से खाना खाते हैं अब ये मन्दिर पर जाकर खाना खाने नहीं जाते हैं पर सोना इन्हें आज भी खुले सामने के नीचे सड़क पर ही पड़ता है।

मोहम्मद शरीफ आज भिखारियों के लिए उठा रहे आवाज़ 

पहले मांगी भीख अब भिखारियों के हक़ के लिए उठा रहे आवाज़

अम्बेडकरनगर जिले के रहने वाले मोहम्मद शरीफ (45 वर्ष) दो साल पहले काम की तालाश में राजधानी आये थे। इनके माँ-बाप नहीं हैं, जब कई दिनों तक काम नहीं मिला तो हनुमान सेतु मन्दिर पर मांगकर खाना खाना शुरू कर दिया। इन्हें लखनऊ में अच्छा नहीं लगता है पर वापस अपने शहर भी नहीं जाना चाहते हैं। अपने सभी भिक्षुक साथियों की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं, “अगर यहाँ बीमार पड़ जाते हैं तो ये दोस्त डॉ के यहाँ इलाज के लिए ले जाते हैं, अब इन्ही सबके बीच में अपनी जिन्दगी है, इन्ही के साथ हंस बोल लेते हैं, जबसे शरद भाई से मुलाकात हो गयी है तबसे हमें अपने हक और अधिकार पता चल गये हैं, अब मेरा भी मन करता है इनके लिए मै आवाज़ उठाऊँ और इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ पाऊं।” ‘भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान’ में सक्रिय रूप से लीडरशिप की भावना से मोहम्मद शरीफ की तरह कई भिक्षुक जुड़े हुए हैं जो भीख मांग रहे लोगों को भीख मांगने के लिए मना करते हैं और रोजगार करने के लिए प्रेरित करते हैं ।

स्टोरी का पहला भाग यहां पढ़िए- भिखारियों की जिंदगी में कभी झांककर देखा है ?

भिखारियों के लिए बनाया गया भिक्षुक गृह कर रहा भिखारियों का इंतजार

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