बाराबंकी। घोड़े की नाल के बारे मे आपने कई बार सुना होगा लेकिन यह नाल घोड़ों, गधों और खच्चरों में क्यों और कैसे लगाई जाती है इसके बारे में शायद ही आपको जानकारी होगी।
पशु के पैरों के तलवे में लोहे का एक यू आकार का सोल लगाया जाता है, जिससे घोड़े को चलने और दौड़ने में दिक्कत नहीं होती है। अंग्रेजी के यू के आकर के इस सोल में जहां-जहां कील ठोकी जाती है, वहां-वहां छेद होते हैं। लोहे के इस सोल को नाल कहते हैं। आमतौर पर घोड़े की एक नाल हफ़्ता-10 दिन तक चलती है और इस दौरान घोड़ा सौ से 200 किलोमीटर तक चल लेता है।
पशु को नाल को लगाना क्यों जरुरी है इसके बारे में पशुचिकित्सक डॉ जिलानी बताते हैं, “जो जानवर सख्त जगह पर काम करते है उनके लिए नालबंदी बहुत जरुरी होती है। घोड़ों, गधों और खच्चरों में अगर नाल बंदी न हो तो उनको सुम की बीमारी हो जाती है। इस बीमारी में पैर में सड़न पैदा होती है और खुर फटने लगते है।”
नालबंदी के फायदे के बारे में डॉ जिलानी बताते हैं, “अगर पैर का आकार बिगड़ गया है तो नालबंदी से इसको ठीक किया जा सकता है। इससे पशु को चलने और दौड़ने में कोई दिक्कत नहीं होती है। ज्यादातर पशु मालिक नाल उतरने में एक पैर की ही नाल बदलवाते ऐसा बिल्कुल न करें। दोनों पैरों की नाल बदलवा ले।”
पशु की नाल उतरने पर दोनों पैरों की नाल बदलना इसलिए जरुरी है क्योंकि इसमें साइज का अंतर होता है। अगर पशु के दोनों पैर की नाल बदलती है तो साइज बराबर रहता है। अगर ऐसा न हुआ तो पशु के जोड़ों पर असर पड़ता है जिससे पैरों पानी उतरने लगता है और बढ़ते-बढ़ते बैल हड्डा हो रुप ले लेता है। इसमें पशु चलने में असक्षम रहता है।
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किस तरह कराएं नालबंदी
डॉ जिलानी बताते हैं, “जल्दबाजी में नालबंदी न कराएं अगर नालबंदी ठीक नहीं होगी तो पशुमालिक को उसके इलाज के लिए दाेगुना खर्च उठाना पड़ेगा। नाल लगवाने से पहले यह ध्यान रखें कि अपने जानवर का पैर 10 से 15 मिनट तक उसके पैर के अंदर या फिर गीली मिट्टी के अंदर रखे। इससे पशु के पैर मुलायम हो जाऐंगे। इस तरीके से नालबंदी करते समय पशु के पैर आसानी से साफ हो जाते हैं क्योंकि पैर सख्त होता है तो पशु की नाल ठीक तरीके से नहीं लग पाती है।”
पैर के हिसाब से कराएं नालबंदी
जब भी नालबंदी कराने जाए तो पैर के हिसाब से ही नालबंदी कराएं अगर पैर बड़ा है और नाल छोटी है तो उसके पूरे साइज का लगवाए इससे जानवर के लगड़ापन नहीं होता है।
क्या होती है सुम की बीमारी
यह बीमारी घोड़ों के लंगड़ेपन का कारण बनती है।
कारण
- सुम गंदगी से सना रहना।
- सुम ज्यादा लंबा या छोटा होना।
- ज्यादा घिसी हुई सुम की दीवार।
- समय पर ठीक नालबंदी न कराना।
- बिना नाल के पक्की सड़क पर पशु को चलाना।
- पुतली को पूरा काट देना।
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लक्षण
- सुम में कीड़े पड़ना।
- सुम का सड़ना, जिसके कारण गंदगी और बदबू होना।
- सुम का बुखार होना।
- सुम की दीवार पर दरार पड़ना।
- कंकर, पत्थर, या कील का फंसकर चुभना।
बचाव
- सुम की काम के पहले और बाद में सफाई और जांच बहुत जरूरी है।
- सुम की सफाई और छटाई समय-समय पर सही तरीके से अवश्य करें।
- राख और चूने (बुझा हुआ) की पोटली का इस्तेमाल करें।
- ज्यादा घिसी हुई या टूटी हुई नाल वाले जानवर से काम न लें।
- सुम पर कोई नुकीली कींल चुभने पर तुंरत टिटनेस का टीका लगवाएं।
- सुम की किसी भी बीमारी का शुरूआत में ही इलाज कराएं।