मथुरा। बकरियों में कई तरह के रोग होते हैं जिनके इलाज से बकरियाँ ठीक हो जाती हैं, लेकिन बकरियों को होने वाली एक ऐसी बीमारी भी है जिसका इलाज ना के बराबर है। इस बीमारी के बाद बकरियों का बचना सम्भव नहीं रहता है। ये बीमारी आवारा कुत्तों से बकरियों में फैलती है। इस बीमारी को गिड कहते है कही कहीं इस बीमारी को ग्रामीण सिर्री रोग भी कहते है।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर बरेली (आईवीआरआई) की फार्मर फर्स्ट परियोजना के तहत मथुरा के बकरी अनुसंधान केन्द्र में किसानों को बकरी पालन और संवर्धन की ट्रेनिंग दी जा रही है।
ट्रेनिंग में आए बरेली के मंझगवा ब्लॉक के निसोई गाँव के भेड़ और बकरी पालक अमर सिंह 41 वर्ष बताते हैं, ”मेरे पास कई बकरी और भेड़ है जिनकी मैं सही से देखभाल करता हूँ। कई दिनों से मेरी दो बकरियाँ अजीब व्यवहार कर रही हैं। जब मैं चराने जाता हूँ तो दोनो बकरियाँ इधर-उधर भागने लगती हैं। गोल-गोल चक्कर काटने लगती हैं। कभी-कभी अचानक गिर जाती है जैसे मर गाई हो। गाँववाले कहते हैं की तुम्हारी बकरियां सिर्री हो गई है। कई जगह से बकरियों की दवा लाकर खिलाया, लेकिन कुछ फ़ायदा नहीं हुआ है।”
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पशुपालक अमर सिंह की समस्या सुनकर केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी) के बकरी स्वास्थ्य विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ़ अशोक कुमार बताते हैं, ”बकरियों और भेड़ों में होने वाली इस तरह की बीमारी को गिड कहते हैं। बकरियों में गिड बीमारी एक परजीवी से होती है। ये परजीवी आवारा कुत्तों में पाया जाता है। बकरियों के बाड़े या भेड़ के बाड़े के पास अगर आवारा कुत्ते हैं तो ये बीमारी बकरियों और भेड़ों में हो जाती है।”
डॉ़ अशोक कुमार आगे बताते हैं, ”जब कुत्तों में पाया जाने वाला परजीवी बकरियों के संपर्क में आता है तो वह कहीं न कहीं से बकरी के दिमाग में घुस जाता है। बकरी के दिमाग में जाकर ये परजीवी गुब्बारे की तरह फूलने लगता है। जैसे-जैसे परजीवी फूलता है वैसे-वैसे बकरी अजीब व्यवहार करने लगती है। बकरी एक ही दिशा में भागने लगती है। गोल-गोल घूमने लगती है। ये बीमारी बड़ी खतरनाक होती है। जिस भी बकरी या भेड़ में यह बीमारी हो गई हो उसे तुरंत हटा देना चाहिए। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन बचाव जरूर है।”
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गिड बीमारी से बचाव
डॉ़ अशोक कुमार बताते हैं, ”गिड बीमारी से बकरियों और भेड़ों के बचाव के लिए सिर्फ सावधानी जरूरी है। ज्यादातर किसान बाड़ों में आवारा कुत्तों को रहने देते हैं जो इस रोग के वाहक हैं। इस रोग से बचने के लिए किसानों को बकरियों के साथ कुत्तों को नहीं रखने देना चाहिए। अगर कुत्तों को रखते भी हैं तो उन्हें कीड़े मारने वाली दवा पिलाएं साथ ही जूं और किलनी मारने वाली दवा से नहलाएं भी। साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।”