करनाल (हरियाणा)। दूध और दूध से बनने वाले उत्पादों की मांग देश में लगातार बढ़ रही है। कई युवा और किसान भी इस व्यवसाय को अपना रहे हैं लेकिन तकनीकी ज्ञान और जानकारी का अभाव होने से दूध उत्पादकों को इस व्यवसाय से काफी नुकसान उठाना पड़ता है। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक कुछ टिप्स दे रहे हैं जो बिना किसी अतिरिक्त लागत के दूध का उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
“डेयरी में पशुओं के प्रबंधन से लेकर, दूध प्रसंस्करण और मार्केटिंग के साथ-साथ और भी कई चीजे हैं, जिनका दूध उत्पादक ध्यान नहीं रखते हैं और उनको आगे चलकर घाटा होता है, इसलिए डेयरी खोलने के पहले सही नस्लों का चयन बहुत जरुरी है। तभी किसान को मुनाफा होगा, “करनाल जिले में स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार मिश्रा ने बताया।
डॉ मिश्रा आगे बताते हैं, “अगर आपके पास हरे चारे का उत्पादन करने के लिए जमीन और सिंचाई की व्यवस्था हो तो संकर नस्ल के पशुओं को पाल सकते हैं और अगर आपके पास यह साधन उपलब्ध नहीं है तो भैंस पालन की तरफ भी जा सकते हैं।”
डेयरी व्यवसाय छोटे व बड़े स्तर पर सबसे ज्यादा विस्तार में फैला हुआ है। इस व्यवसाय से करीब सात करोड़ से भी ज्यादा परिवार जुड़े हुए हैं। डेयरी में कृत्रिम और प्राकृतिक गर्भाधान की महत्वता के बारे में प्रधान वैज्ञानिक डॉ अरुण बताते हैं, “यह डेयरी किसान पर निर्भर करता है कि वह किस तरह का गर्भाधान कराना चाहते हैं। कई बार किसान कंजूसी कर देते है और सस्ता सीमन ले लेते हैं और जो आने वाली संतान है उसकी दूध उत्पादन क्षमता काफी कम हो जाती है।”
सीमन खरीदने से पहले किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए इसके बारे में डॉ मिश्रा बताते हैं, “सीमन खरीदने से पहले से उसकी मां की दूध उत्पादन क्षमता कितनी थी पूरी जानकारी लेनी चाहिए, इसके साथ प्राइवेट की बजाय सरकारी संस्थान से ही सीमन लें। इन संस्थानों में पूरी जानकारी रहती है।”
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दुधारू पशुओं को पोषक तत्वों की सबसे ज्यादा जरुरत होती है, लेकिन ज्यादातर पशुपालक पशुओं को संतुलित आहार नहीं दे पाते हैं, जिससे पशुओं के उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है। पशु को 24 घंटे में खिलाया जाने वाला आहार (दाना व चारा) जिसमें उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भोज्य तत्व मौजूद हों, पशु आहार कहते हैं। जिस आहार में पशु के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित अनुपात तथा मात्रा में उपलब्ध हो, उसे संतुलित आहार कहते हैं।
“डेयरी में 65-70 प्रतिशत खर्चा पशुओं के खान पान पर आता है। इसलिए पशुपालक को दो बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहला उत्पादन को बढ़ाना और दूसरा सालभर पशु को हरा चारा उपलब्ध कराना। जैसे नेपियर और गिनी घास इनको एक बार बोकर इनकी कई बार कटाई की जा सकती है।” डॉ मिश्रा ने बताया, “इसके साथ किसान को दलहनी चारे की खेती करनी चाहिए, जिससे उनको भरपूर मात्रा में संतुलित आहार मिलेगा।”
पशुओं को इस मात्रा में दे आहार-
पशुओं के आहार की मात्रा के बारे में डॉ अरुण मिश्रा बताते हैं, “दुधारु पशुओं को रोजाना 30 से 35 किलो बरसीम उसके साथ-साथ पांच से सात किलो सूखा चारा या भूसा जरुर दें। अगर भूसे की मात्रा कम हो जाएगी तो एसिड प्रोडक्शन ज्यादा होगा फैट भी कम होगा जिससे पशु को गैस बनेगी।”
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डॉ मिश्रा आगे बताते हैं, “कई बार किसान पशुओं के लिए दाना घर पर ही तैयार करते हैं, जिसमें मिनिरल मिक्चर की कमी होती है। बाजार में कई तरह के मिनिरल मिक्चर उपलब्ध है किसान उसको खरीदकर चारे में मिलाकर दे सकते हैं।100 किलो दाने में कम से कम दो से तीन किलो मिनिरल मिक्चर जरुर मिलायें।
पशु के शरीर में न होने दें नमक की कमी-
पशुओं में नमक की कमी होने से भी उनके दूध उत्पादन पर असर पड़ता है, इसलिए दुधारु पशुओं को रोजाना 25 से 30 ग्राम नमक देना चाहिए।
डेयरी में थनैला रोग का रखे विशेष ध्यान-
थनैला रोग एक जीवाणु जनित रोग है। यह रोग ज्यादातर दुधारू पशु गाय, भैंस, बकरी को होता है। इस बीमारी से देश में 60 प्रतिशत गाये, भैंसे और बकरी पीड़ित है। यही नहीं इसके कारण दुग्ध उत्पादकों को कई हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है। डेयरी में साफ-सफाई ही इस बीमारी को रोक सकती है। इस बीमारी के बारे में डॉ मिश्रा बताते हैं, “ज्यादातर लोग जहां पर पशु बांधते हैं वहीं से दूध निकालते हैं। उसकी वजह से कई बार जीवाणु वो थनों के माध्यम से अंदर चले जाते हैं। इसलिए पशुओं को दूसरी साफ-सथुरी जगह बांधकर दूध निकालना चाहिए।”
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इस बीमारी के बचाव के बारे में डॉ मिश्रा कहते हैं, “जब किसान दूध निकालते हैं तो चिकनाई के लिए वह उसी बाल्टी में दूध में हाथ डूबोकर चिकनाई लगा लेते हैं, ऐसा बिल्कुल न करें उससे संक्रमण बढ़ जाता है। इसके अलावा जब किसान गाय-भैंस का दूध निकालते है तो अंगूठे से थनों को दबाते हैं ऐसा बिल्कुल न करें क्योंकि पशु के ऊत्तक काफी मुलायम होते हैं तो जब अंगूठे से दबाते है दूध निकालने में तो आसानी होती है लेकिन इसकी वजह से थनों में गांठ के साथ-साथ जख्म हो जाता है।”
नवजात को खीस जरुर पिलाएं-
नवजात बछड़े-बछियों के पालन पोषण में सबसे महत्वपूर्ण खीस है। खीस न मिलने से एक तरफ जहां बछड़े-बछियों में रोगों से लड़ने की क्षमता का विकास नहीं होता, वहीं खीस न मिलने से लगातार बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है। खीस की महत्वता के बारे में डॉ अरुण बताते हैं, “ज्यादातर किसान पशुओं के जेर न गिरने पर खीस नहीं पिलाते हैं ऐसा बिल्कुल न करे जन्म के दो घंटे के अंदर ही उसको खीस पिला दें। और नाल को एक सेटीमीटर छोड़कर किसी भी साफ धागे से बांधकर कैची से काट और डिटॉल में डिप कर दे। एक हफ्ते बाद वो नाल सूख जाएगी और नीचे गिर जाएगी इससे किसी भी तरह का संक्रमण नहीं होगा।”
इन बातों का रखें ध्यान-
- दूध निकालने के बाद हरा चारा या दाना दें ताकि वो बैठे नहीं।
- जहां दूध निकाला है उस जगह को साफ कर दें।
- पशु का दूध निकालने से पहले और बाद में थनों को अच्छी तरह से साफ कर लें।
- दूध निकालने के बाद पशु को बैठने न दे लगभग 40 से 45 मिनट तक पशु को खड़ा रखें।