गिर, साहिवाल जैसी देशी नस्ल की गायों को पालने से पहले आपको सोचना नहीं पड़ेगा कि गाय की शुद्ध है या कहीं संकर तो नहीं है। वैज्ञानिकों ने देसी गायों के संरक्षण के लिए एकल पॉलीमॉर्फिज्म (एसएनपी) आधारित ‘इंडिगऊ’ चिप विकसित है, जिसकी मदद से देसी गायों की पहचान करना आसान हो जाएगा।
पिछले कुछ सालों में एक बार फिर लोगों का रुझान देसी गायों की तरफ बढ़ा है, लेकिन इतने सालों में देसी और विदेशी गायों के संकर से नस्लें खराब भी हुई हैं। इससे परेशानी का हल निकालने के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग के राष्ट्रीय पशु जैव प्रोद्योगिकी संस्थान (एनएआईबी), हैदराबाद के वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से यह स्वदेशी चिप विकसित की गई है। केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने 13 अगस्त को गिर, कंकरेज, साहीवाल, अंगोल आदि देशी पशुओं की नस्लों के शुद्ध किस्मों को संरक्षण प्रदान करने के लिए भारत की पहली एकल पॉलीमॉर्फिज्म (एसएनपी) आधारित चिप ‘इंडिगऊ’ का शुभारंभ किया।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. सुबीर मजूमदार ‘इंडिगऊ’ चिप के बारे में समझाते हुए कहते हैं, “भारत में गाय की बहुत सारी देसी नस्लें हैं, जिनमें गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता होती है, जबकि विदेशी गायों के साथ ऐसा नहीं होता है, जरा सा तापमान बढ़ा की गाय बीमार हो जाती हैं। जिस तरह ग्लोबल वार्मिंग है, दूसरे देश के लोग भी यही कहते हैं कि आपके यहां कि गाय कैसे गर्मी बर्दाश्त कर लेती हैं। भारत में इतनी सारी देसी किस्में हैं, सब की कुछ न कुछ खासियतें हैं, कुछ अकाल यानी सूखे में भी रह लेती हैं, कुछ गर्मी में भी रह लेती हैं। गाय की जो भी खासियतें हैं वो उनके जीन में ही होती हैं।”
“लेकिन इन देसी नस्लों को हम खो रहे हैं, क्योंकि कृत्रिम गर्भाधान से किसी दूसरी नस्ल का स्पर्म किसी दूसरी गाय में डाल दिया जाता है। विदेशी गायों के नस्ल के स्पर्म से भी गायों का कृत्रिम गर्भाधान किया गया, इसे क्या हुआ कि संकर किस्म पैदा हो गईं। लेकिन उनमें ढेर सारी खामियां हैं, जैसे कि वो गर्मी नहीं बर्दाश्त कर पाती हैं, जल्दी बीमार भी हो जाती हैं। ये खराब नस्लें किसानों के लिए बोझ भी बन जाती हैं, क्योंकि धीरे-धीरे गायों की नस्लें खराब होती जा रही हैं, “डॉ मजूमदार आगे बताते हैं।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के वैज्ञानिकों ने देसी और संकर गायों पर कई वर्षों तक शोध करने के बाद पता लगाया था कि देसी नस्ल की गायें खुद को आसानी से हर तरह के मौसम के अनूकूल कर लेती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी में देशी नस्ल की गाय (गिर, साहीवाल और थारपारकर) संकर नस्ल की गायों अपेक्षा तापमान को झेल पाएंगी।
देश में साहीवाल (पंजाब), हरियाणा (हरियाणा), गिर (गुजरात), लाल सिंधी (उत्तराखंड), मालवी (मालवा, मध्यप्रदेश), देवनी (मराठवाड़ा महाराष्ट्र), लाल कंधारी (बीड़, महाराष्ट्र) राठी (राजस्थान), नागौरी (राजस्थान), खिल्लारी (महाराष्ट्र), वेचुर (केरल), थारपरकर (राजस्थान), अंगोल (आन्ध्र प्रदेश), कांकरेज (गुजरात) जैसी 43 से अधिक देसी गाय की किस्में हैं।
गायों का जर्म प्लाज्म न कहीं खो जाए, इसलिए यह चिप विकसित की है। डॉ मजूमदार कहते हैं, “हमने विभिन्न तरह की गायों की नस्लों को लेकर यह चिप तैयार की है, इसका नाम सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉर्फिज्म पॉलीमॉर्फिज्म चिप नाम रखा गया है। इसमें ज्यादा से ज्यादा गायों के डीएनए को लेकर हमने सिंगल न्यूक्लियर पॉलीमॉर्फिज्म कहते हैं, अगर एक भी जगह म्यूटेशन होगा तुरंत पता चल जाएगा। इसके बनाने के लिए हमने अमेरिका की भी मदद ली जो पहले से इस पर काम कर रहा था।”
यह चिप कैसे काम करती है और इससे गायों का संरक्षण कैसे होगा के बारे में डॉ सुबीर कहते हैं, “इसमें हम गाय का ब्लड लेकर परीक्षण करेंगे लेकिन और आपके सामने 100 गाय हैं, इसमें परीक्षण करने पर पता चल जाएगा की कौन सी शुद्ध नस्ल है और कौन सी संकर नस्ल है।क्योंकि कई बार गाय देखने में नहीं पहचान में आती कि शुद्ध है कि संकर, इसलिए इसकी मदद से हम संकर और शुद्ध नस्ल को पहचान सकते हैं, इसकी मदद से हम स्वदेशी गायों का संरक्षण कर सकते हैं।”
साल 2019 में जारी 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोवंशीय पशुओं की कुल संख्या 192.49 मिलियन है, जबकि मादा गायों की कुल संख्या 145.12 मिलियन है। देश में विदेशी/संकर नस्लों की गोवंशीय पशुओं की संख्या 50.42 मिलियन और स्वदेशी//अवर्गीय की संख्या 142.11 मिलियन है।
संकर किस्मों की वजह से दूध उत्पादन पर भी असर पड़ा है, धीरे-धीरे देसी नस्लें खराब हो गई हैं, जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों में लोग गायों को छुट्टा छोड़ देते हैं, जो किसानों की फसलें बर्बाद करते हैं।
इसके साथ ही यह एक डिक्शनरी तैयार होगी, यह दुनिया सबसे बड़ी डिक्शनरी होगी। इसमें 11,496 मार्कर (एसएनपी) हैं जो कि अमेरिका और ब्रिटेन की नस्लों के लिए रखे गए 777 के इलुमिना चिप की तुलना में बहुत ज्यादा हैं। कई साल के प्रयोग के बाद इसे विकसित किया है, इसमें सारी गायों का डेटा भी उपलब्ध है।
चिप की मदद से अच्छी नस्ल के सांड़ की भी पहचान की जा सकेगी। डॉ मजूमदार कहते हैं, “जिस तरह से देश में अच्छी नस्ल के सांड़ की सबसे ज्यादा कमी है, क्योंकि सारे सांड़ बेहतर नहीं होते हैं, लेकिन अभी तक अच्छे सांड़ की पहचान में ही पांच से सात साल लग जाते हैं। क्योंकि वो पहले बड़ा होगा फिर उसकी गाय के साथ मेटिंग होगी और जो बछिया हुई उसे तैयार होने में कई साल लगे फिर वो गाभिन हुई और जब बच्चा हुआ तब पता चलता है कि कितना दूध दे रही है, जिससे सांड़ की गुणवत्ता का पता चलता है।”
वो बताते हैं, “लेकिन इस चिप की मदद से साड़ छोटा रहेगा तब ही पता चल जाएगा कि सांड़ अच्छा है कि खराब है। इसमें पांच-सात साल नहीं लगेगा। इसके लिए ज्यादा दूध देने वाली गाय से फार्मुला बना लेंगे, जिनसे पैदा होने वाला बुल बड़ा होगा अच्छी नस्ल का होगा। इसके लिए पांच साल नहीं लगेगा। अभी तक लोग क्या करते हैं, अगर उनके पास 100 बछड़े हैं तो 5 रखकर 95 को निकाल देते हैं, क्या पता उसी 95 में ही अच्छी नस्ल रही हो, इससे पता चल जाएगा।”
I am happy to note that that @DBTIndia took this initiative to make genomic tools to conserve the germplasm of indigenous cows. Concerted team efforts by NIAB has developed IndiGau, a Single Nucleotide Polymorphism (SNP) chip.: @DrJitendraSingh @RenuSwarup pic.twitter.com/mzODmUTayP
— BiotechIndia (@DBTIndia) August 13, 2021
भारत की पहली एकल पॉलीमॉर्फिज्म (एसएनपी) आधारित चिप “इंडिगऊ” का शुभारंभ करते हुए केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि इंडिगऊ पूर्ण रूप से स्वदेशी और दुनिया की सबसे बड़ी पशु चिप है। इसमें 11,496 मार्कर (एसएनपी) हैं जो कि अमेरिका और ब्रिटेन की नस्लों के लिए रखे गए 777के इलुमिना चिप की तुलना में बहुत ज्यादा हैं। हमारी अपनी देशी गायों के लिए तैयार किया गया यह चिप आत्मनिर्भर भारत की दिशा के लिए एक शानदार उदाहरण है।
उन्होंने कहा कि यह चिप बेहतर पात्रों के साथ हमारी अपनी नस्लों के संरक्षण के लक्ष्य की प्राप्ति करते हुए 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने में सहयोग प्रदान करने वाले सरकारी योजनाओं में व्यावहारिक रूप से उपयोगी साबित होगा। उन्होंने इस बात पर गर्वान्वित महसूस किया कि डीबीटी और एनआईएबी जैसे विभागों के द्वारा भी किसानों के कल्याण और आय को बढ़ावा देनें में योगदान प्रदान किया जा रहा है।