भारत में अमेरिका से चिकन लेग पीस आने से भारतीय पोल्ट्री व्यापारियों को होगा नुकसान

मुर्गी पालन

बर्ड फ्लू की आंशका के कारण वर्ष 2007 में अमेरिका से भारत में आयात होने वाले पोल्ट्री उत्पादों पर पूरी तरीके से रोक लगा दी गई थी, लेकिन आने वाले दिनों में अमेरिका से पोल्ट्री उत्पादों का आयात फिर से शुरू हो सकता है। इससे भारतीय पोल्ट्री करोबारियों को काफी नुकसान होगा।

“अमेरिका से भारत में चिकन लेग पीस को लाने से रोकने के लिए काफी समय से केस चल रहा था, जिसमें भारत हार गया तो अब वो चाहते है कि अमेरिका से लेग पीस फिर से आयात हो। इसके लिए अमेरिका ने भारत कई कंपनियों को कनसेलटेन्सी दे रखी है। अगर भारत में चिकन लेग पीस आता है तो भारतीय पोल्ट्री व्यापारियों को तो नुकसान होगा। “ऐसा बताते हैं, पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इडिया के कार्यकारी सदस्य शब्बीर अहमद खान।

खान आगे बताते हैं, “लेग पीस आयात होने से भारतीय लोगों के सेहत के साथ भी खिलवाड़ होगा। क्योंकि अमेरिकी लोग चिकन लेग पीस इसलिए नहीं खाते है क्योंकि उसमें कोलेस्ट्रोल की मात्रा ज्यादा होती है। विदेशों में चिकन को जल्दी विकसित करने के लिए जल्दी बढ़वार के सुअर और गाय की चर्बी खिलाई जाती है।”

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अमेरिका ने आयात होने वाले सभी पोल्ट्री उत्पादों पर प्रतिबंध के खिलाफ वर्ष मार्च 2012 में डब्ल्यूटीओ में शिकायत दर्ज की थी। अमेरिका की इस शिकायत पर सुनवाई करते हुए डब्ल्यूटीओ की डिस्प्यूट सेटलमेंट कमेटी ने अक्टूबर 2014 में भारत के खिलाफ फैसला सुनाया था। डब्ल्यूटीओ की डिस्प्यूट सेटलमेंट कमेटी के निर्णय के खिलाफ भारत ने डब्ल्यूटीओ की अपीलेंट अथॉरिटी के समक्ष जनवरी 2015 में अपील की थी। इस अपील पर सुनवाई करते हुए डब्ल्यूटीओ की अपीलेंट अथॉरिटी ने डिस्प्यूट सेटलमेंट कमेटी के फैसले को सही ठहराया था।

कमेटी ने साफ कर दिया कि भारत द्वारा अमेरिकी पोल्ट्री प्रोडक्ट पर लगाया गया प्रतिबंध पूर्णत: अंतरर्राष्ट्रीय नियमों के खिलाफ है। उसने निर्णय में बताया कि भारत का आयात पर प्रतिबंध जारी रखने का निर्णय बर्ड फ्लू के जोखिम के आंकलन की बजाय व्यापार प्रतिबंधात्मक ज्यादा है।

पोल्ट्री व्यापारियों को होने वाले नुकसान की गणित बताते हुए अहमद खान कहते हैं, “अमेरिका के बाजारों में लेग पीस की मांग न होने के कारण सस्ते दामों पर उपलब्ध है जबकि भारत में उत्पादन लागत अधिक होने के कारण एक किलो चिकन की कीमत 150 से लेकर 200 रुपए के बीच है। अगर अमेरिका से लेग पीस भारत आता है तो यह यहां सस्ती दरों पर लोगों को मिलेगा।”

वे आगे बताते हैं, “भारतीय लोग चिकन लेग ज्यादा पंसद करते हैं तो उन्हें अगर सस्ते दामों पर मिल रहा है तो वो महंगा क्यों खरीदेंगे और जो भारतीय पोल्ट्री कारोबारी है वो अपनी लागत तक नहीं निकाल पाएगा।”

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पूरे भारत में पोल्ट्री का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। विश्व में चिकन उत्पादन के क्षेत्र में अमेरिका, चाइना, और ब्राजील के बाद भारत का चौथा स्थान है। वर्ष 2004 से 2011 के बीच ग्रामीण भारत में चिकन की खपत में दोगुनी हुई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के मुताबिक खपत प्रति व्यक्ति 0.13 किलोग्राम से बढ़़कर 0.27 किलोग्राम तक पहुंच गई है, शहरी भारत में इसी अवधि में 0.22 किलोग्राम से लेकर 0.39 किलोग्राम तक बढ़ोत्तरी हुई है।

महाराष्ट्र के अमन नगर के नेवासा में रहने वाले शेखर अरगाडे बताते हैं, “अभी बाजार में 150 से 170 से बीच चिकन बिक रहा है। अभी हम बाजारों में व्यापरियों को बेचते हैं। अगर बाजार में सस्ता बिकेगा तो नुकसान ही होगा। क्योंकि चिकन को बड़ा करने में लागत बहुत ज्यादा आती है।” शेखर पिछले दो वर्षों से मुर्गी पालन व्यवसाय कर रहे हैं और उनके पास करीब एक हजार पक्षी हैं।

देश में पोल्ट्री उद्योग का कुल कारोबार 90 हजार करोड़ का है, जिसमें 65 प्रतिशत हिस्सा चिकन मीट का और 35 फीसदी हिस्सा अंडे का है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में रहने वाले रमाकांत तिवारी पिछले तीन वर्षों से पोल्ट्री व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। रमाकांत बताते हैं, “अभी हमारी लागत 121 रुपए आती है और बाजार में 150 रुपए तक बिक जाता है। अगर अमेरिका का चिकन लेग भारत में आता है तो काफी नुकसान होगा। और ये एक वेस्ट के रूप में भारत आता है।”

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