लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों मथुरा से जिस राष्ट्रीय स्तर के पशु टीकाकरण अभियान की शुरुआत की थी, उत्तर प्रदेश में ये टीकाकरण करने वाले सरकारी कर्मचारियों ने इसके बहिष्कार का ऐलान किया है। अभियान के तहत पशुओं को जानलेवा खुरपका-मुंहपका (foot and mouth disease) और ब्रुसेलोसिस जैसी बीमारियों से पशुओं के लिए टीके लगाए जाने थे।
कर्मचारियों के संगठन का आरोप है उनसे टीकाकरण के लिए अलावा कई दूसरे सरकारी कार्य कराए जा रहे हैं, जिससे वो पशुओं के इलाज के लिए समय नहीं निकाल पाते। ज्यादातर समय पशु सेवा केंद्र बंद रहते हैं। जिसका खामियाजा पशुपालकों को उठाना पड़ता है। मजबूरी में पशुपालक निजी पशु चिकित्सकों या झोलाझाप डॉक्टरों को पैसे देकर टीकाकरण और पशुओं का इलाज कराते हैं।
”आज गांवों में पैरावेट्स और झोलाझाप डॉक्टरों की संख्या बढ़ती जा रही है जिसका मुख्य कारण आधे से ज्यादा समय सारे पशुधन प्रसार अधिकारी टीकाकरण करते हैं और बचे समय में उनकी ड्यूटी अन्य कामों (कोटा सत्यापन, पोलियो) में लगा दी जाती है जाहिर सी बात है जब पशु सेवा केंद्रों में ताले होंगे तो पशुपालक झोलाझाप डॉक्टर को ही बुलाएगा न।” गुस्से में पशुधन प्रसार अधिकारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष नितिन सिंह ने अपनी समस्याओं का पिटारा खोलते हैं।
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नितिन सिंह कहते हैं, “पिछले कई वर्षों से हम लोग इलाज-टीकाकरण के अलावा दूसरे कार्यों से पशुधन प्रसार अधिकारियों को हटाने, वेतन विसंगति, शैक्षिक योग्यता आदि की मांग कर रहे हैं। इस बार की बैठक में हमने यह निर्णय लिया है कि अगर हमारी मांग नहीं पूरी की गई तो 25 वें चरण के खुरपका-मुहंपका टीकाकरण अभियान का बहिष्कार करेंगे।”
नितिन उसी 25 वें चरण के खुरपका-मुंहपका टीकाकरण अभियान के बहिष्कार की बात कह रहे थे जिसके लिए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मथुरा के वेटनरी विश्वविद्यालय में पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत की है, जिसमें देश के 51 करोड़ से अधिक पशुओं के टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा गया है। टीकाकरण अभियान में पशुधन प्रसार अधिकारी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
पशुधन प्रसार अधिकारियों का काम पशुओं का प्राथमिक इलाज, टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान, बधियाकरण और पशुपालन विभाग की योजनाओं का प्रचार प्रसार करना होता है, लेकिन टीकाकरण के अलावा ये कोई काम नहीं कर पाते। पशुपालन विभाग में पशुधन प्रसार अधिकारी पशुचिकित्साधिकारी संवर्ग के बाद दूसरा सबसे बड़ा एकमात्र तकनीकी संवर्ग है। एक पशुचिकित्सालय के अंतर्गत दो या तीन पशु सेवा केंद्र होते है जिसमें केवल पशुधन प्रसार अधिकारी तैनात होते हैं।
यूपी में मिर्जापुर जिले के पशुधन प्रसार अधिकारी सेन सिंह बताते हैं, ” कभी हमारी ड्यूटी गोवंश आश्रय स्थल पर, कभी कोटा में खाद्यान्न बांटने, कभी किसी मेले में ड्यूटी लगा दी जाती है। जिससे हमारे मुख्य काम प्रभावित होते हैं। शायद कोई ऐसा दिन होता होगा जब हम अपने सेंटर पर कार्य कर पाते हों।”
अपनी बात को जारी रखते हुए वह आगे कहते हैं, “पशु सेवा केंद्र एकल संस्था है जहां सिर्फ पशुधन प्रसार अधिकारी काम करते हैं अन्य कोई स्टाफ नहीं दिया जाता है। तो जब हम अन्य कामों के लिए बाहर रहते हैं तो केंद्रों पर ताला लटका रहता है। इसलिए पशुपालकों ने हमसे दूर भागना शुरू कर दिया है और अप्रशिक्षित पैरावट्स और झोलाझाप मोटी रकम लेकर इलाज कर रहे हैं।”
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भारतीय पशुचिकित्सा परिषद् एक्ट 1984 में यह लिखा हुआ है कि पैरावेट्स केवल प्रारम्भिक चिकित्सा कर सकते हैं लेकिन आजकल पैरावेट्स पैसा कमाने के चक्कर में योजनाओं की जानकारी छोड़कर चिकित्सा की ओर भाग रहे हैं और एक्ट के खिलाफ काम कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद् के आंकड़ों के मुताबिक करीब आठ हजार पैरावेट्स हैं, जिसमें से छह हजार पैरावट्स अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं। विभागीय योजनाओं की जानकारी और टीकाकरण में सहयोग के लिए 1800 पशुओं पर एक पैरावेट्स रखा जाता है।
सेन सिंह कहते हैं, “कई बार पैरावट्स पशुओं का गलत इलाज करते हैं और प्राशासनिक कार्यवाही हम लोगों के ऊपर होती है। हमारी सरकारी से यही मांग है कि हमारे जो कार्य है वो हमको करने दिए जाए और वो तभी संभव है जब हमारे ऊपर से अन्य कामों को हटाया जाए।”
पशुपालन विभाग आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 3000 पशु सेवा केंद्र बने हुए हैं जिनमें 2600 पद भरे है बाकी के खाली पड़े हैं। पशुचिकित्सा में सिर्फ पशुधन प्रसार अधिकारी नहीं बल्कि पशुचिकित्सों की भी कमी है। राष्टीय कृषि आयोग के अनुसार देश में 5000 पशुओं पर एक पशुचिकित्सालय स्थापित होना चाहिए लेकिन भारत में पशुओं की सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जहां पर 21 हजार पशुओं पर एक ही पशु चिकित्सालय उपलब्ध है। ऐसे में पशुपालक को परेशानी के साथ आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है।
19वीं पशुगणना के अनुसार के उत्तर प्रदेश में 205.66 लाख गोवंशीय, 306.25 लाख महिषवंशीय, 13.54 लाख भेड़, 155.86 लाख बकरी, 13.34 लाख सूकर और 186.68 लाख (कुक्कुट) है। प्रदेश के 70 प्रतिशत लघु, सीमांत और भूमिहीन किसानों द्वारा पशुपालन व्यवसाय किया जा रहा है।
पशुधन प्रसार अधिकारियों की इन समस्याओं को लेकर गाँव कनेक्शन की संवाददाता ने जब पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश के प्रशासन एवं विकास निदेशक डॉ. यू.पी सिंह से बात की तो उन्होंने बताया, “बैठक में निर्णय लिया गया है कि खुरपका-मुंहपका टीकाकरण अभियान का बहिष्कार नहीं होगा।” जब पशुधन प्रसार अधिकारी की मांगों की बात पूछी तो डॉ.सिंह ने कहा, यह काम शासन का है, ये शासन (सरकार) को ही तय करना है।”
अन्य कामों से ड्यूटी हटाने के अलावा पशुधन प्रसार अधिकारी पद की शैक्षिक योग्यता और वेतन विसंगति को लेकर भी लड़ रहे हैं। सेन सिंह बताते हैं, “पद की शैक्षिक योग्यता बढ़ाने के लिए भी हमने प्रत्यावेदन दे रखे है इसके अलावा पशुचिकित्सा अधिकारी के बाद का पद हमारा है तो हमारा ग्रेड पे भी द्वितीय मानक पद पर 4600-4800 होना चाहिए।”
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उत्तराखंड का उदाहरण देते हुए सेन सिंह बताते हैं, “उत्तराखंड में पशुधन प्रसार अधिकारी के कार्य को देखते हुए शैक्षिक योग्यता बीएसी (बायो) कर दी है और उनके ग्रेड पे को भी बढ़ा दिया गया है। उत्तराखंड की तरह हमारे यहां भी सरकार को ऐसा करना चाहिए।”
मवेशियों को खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) जैसी गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए सरकार द्वारा साल में दो बार टीकाकरण अभियान चलाया जाता है। भारत सरकार द्वारा एफएमडी सीपी मैनुअल ऑफ इंडिया जारी किया गया है जिसमें स्पष्ट रुप से दिशा-निर्देश जारी किए गए है कि प्रत्येक प्रदेश एक टीम बनाकर टीकाकरण करने का काम करेगा, जिसमें एक पशुचिकित्साधिकारी होगा उसके अधीन में दो पशुधन प्रसार अधिकारी होंगे और दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होंगे।
25वें चरण के खुरपका-मुंहपका टीकाकरण अभियान के बहिष्कार करने का कारण बताते हएु पशुधन प्रसार अधिकारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष नितिन सिंह कहते हैं, “भारत सरकार द्वारा एफएमडी सीपी मैनुअल ऑफ इंडिया में टीकाकरण अभियान में आदेश दिया है कि अगर मैनपावर की कमी पड़ती है तो मैनपावर की व्यवस्था वो दूसरे विभाग से कर सकते हैं या किसी प्राइवेट एजेंसी से कर सकते हैं लेकिन हमारे विभाग में जिन जनपदों में हमारे कर्मचारियों की या चतुर्थ कर्मचारियों की संख्या कम है उनकी व्यवस्था किए जाने के बजाए हमारे पशुधन प्रसार अधिकारी पर दवाब बनाया जाता है।”
बात को जारी रखते हुए वह आगे कहते हैं, “जिस जिले में 25 पशुधन अधिकारी हैं वहां भी आठ लाख जानवरों को टीका लगवाया जाता है और जिस जिले में 100 पशुधन अधिकारी है वहां भी आठ टीका लगवाया जा रहा है। तो उन 25 पशुधन अधिकारी को सुबह के 8 बजे से रात के 9 बजे तक काम करना पड़ता है। ऐसे में हम टीकाकरण का बाहिष्कार करेंगे। शासन के द्वारा जो कार्य निर्धारित किए गए हैं हमसे वहीं काम लिए जाए अन्य कार्य हमसे न लिये जाए।”
टीकाकरण अभियान के तीन चरणों का नहीं हुआ भुगतान
बुलंदशहर जिले में पशुधन प्रसार संघ में जिला अध्यक्ष हरिओम शर्मा कहते हैं, “एफएमडी टीकाकरण अभियान में हमारा महत्वपूर्ण योगदान रहता है उसके बाजवूद भी इतने महत्वपूर्ण कार्यक्रम जिसमें बहुत बड़ा बजट है उसमें भी हमारे तीन चार चरणों के बिल हैं वो हमें भुगतान नहीं हो पा रहे हैं उसका कारण जब हम पता करते हैं तो कह देते हैं बजट की कमी है। इसलिए बकाया राशि बढ़ती चली जा रही है। ऐसे में टीकाकरण अभियान चलाने में दिक्कत आती है।”
वेटनरी फार्मासिस्ट के भी दिए जाते हैं चार्ज
संभल जिले में पशुधन प्रसार संघ के जिला महामंत्री शिवम बताते हैं, “जिले में वेटनरी फार्मासिस्ट का कोई भी पद रिक्त होता है उसका चार्ज भी पशुधन प्रसार अधिकारी पर थोप दिया जाता है। जबकि हमारे निदेशालय से निर्देश है कि वेटनरी फार्मासिस्ट का चार्ज किसी को नहीं दिया जाए।”
वह आगे कहते हैं, “वेतन विसंगति जो हमारा बहुत पुराना मुद्दा है सरकार से हमारी प्रमुख मांग है। जैसे वेटनरी फार्मासिस्ट का भी प्रमोशन होता था तो वह पशुधन प्रसार अधिकारी के लिए होता था लेकिन अब उनका भी प्रमोशन बंद हो गया है। हमारा न तो कोई प्रमोशन है और वेतन विसंगति हमे फार्मासिस्ट से कम वेतनमान मिल रहा है।”