पशुओं के चारे के लिए किसान ज्वार, बरसीम जैसी फसलों की बुवाई करते हैं, लेकिन इन फसलों से कुछ ही महीनों तक चारा उपलब्ध हो पाता है, ऐसे में किसान गिनी घास की बुवाई कर कई वर्षों तक चारा ले सकते हैं।
भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी पशुपालकों को ऐसा चारा उपलब्ध कराता रहता है, जिससे पशुओं को पौष्टिक चारा मिलता रहे। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पुरुषोत्तम शर्मा कहते हैं, “अगर पशुपालक के पास सिंचाई की व्यवस्था है तो इससे साल भर हरा चारा पाया जा सकता है, जबकि शुष्क अवस्था में बारिश में चारा मिलता है, इस फसल को देश के सभी भागों में उगाया जा सकता है।”
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गिनी घास के लिए सही मिट्टी: उचित जल निकासी वाली सभी प्रकार की मिट्टी में इसे उगाया जा सकता है। दो से तीन जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी कर लेना चाहिए।
उन्नत प्रजातियां: बुंदेल गिनी-1, बुंदेल गिनी-2, बुंदेल गिनी-4, मकौनी, हामिल, पीजीजी-609, गिनी गटन-1, पीजीजी-13, पीजीजी-19, पीजीजी-101, सीओ-1।
बीज दर व बुवाई की सही विधि: गिनी फसल को सीधे खेत में बीज डालकर या नर्सरी बनाकर लगाया जाता है। दोनों विधियों में लगभग 2.5 से 3 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त रहता है। जबकि जड़ों द्वारा बुवाई के लिए 25000 से 66000 जड़े एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होती हैं।
बुवाई का समय: नर्सरी तैयार करने के लिए फरवरी से मार्च में क्यारियां बनाकर बीज डाल देते हैं, इसके लिए एक से डेढ़ मीटर चौड़ी क्यारी बनानी चाहिए। आठ मीटर लंबी करीब 15 क्यारियों की आवश्यकता एक हेक्टेयर के लिए होती है। जबकि सीधे खेत में बुवाई के लिए मानसून से पहले बुवाई कर लेनी चाहिए। गिनी की बुवाई लाइन में करनी चाहिए और लाइन से लाइन की दूरी एक मीटर व पौधों से पौधों की दूरी 50 सेमी. रखनी चाहिए।
खाद व उर्वरक: अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद 25 टन प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। इस खाद को खेत में तैयार करते समय मिट्टी में मिलाना चाहिए। बुवाई के समय 60 किग्रा. नाइट्रोजन, 50 किग्रा. फास्फोरस व 40 किग्रा. पोटाश को पंक्तियों में मिलाना चाहिए। इसके बाद 20 किग्रा. और 10 किग्रा. नाइट्रोजन का प्रयोग कटाई के बाद करना चाहिए। बाद में हर साल 40 किग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण: बारिश के मौसम में बुवाई के लगभग 30 दिन बाद या रोपाई के 20 दिन बाद खाली जगहों को बीज या जड़ों से भर देना चाहिए। जमाव पर जड़ों के हरे होने के बाद एक गुड़ाई करके खरपतवार का नियंत्रण कर देना चाहिए।
सिंचाई: सिंचाई उपलब्ध होने पर गर्मी के दिनों में सिंचाई करनी चाहिए, मार्च से जून तक 20 दिन के बाद सिंचाई करने से पूरे साल चारा उपलब्ध रहता है। बरसात में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है।
कटाई: फसल 60-65 दिन पर कटाई के लिए तैयार हो जाती है, सिंचित दशा में प्रति 50 दिन के बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है और इस तरह 100 से 150 टन प्रति हेक्टेयर हरा चारा उपलब्ध होता है। असिंचित दशा में सिर्फ मानसून पर आधारित खेती से दो या तीन बार कटाई की जाती है। जो अगस्त से लेकर दिसम्बर तक मिलती है।
अधिक जानकारी के लिए यहां कर सकते हैं सम्पर्क:
भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी, उत्तर प्रदेश
फोन नंबर: 0510-2730241