नमी व जलभराव वाले क्षेत्रों में भी कर सकते हैं इसकी बुवाई, पशुओं को मिलेगा पौष्टिक हरा चारा

मार्च से लेकर अगस्त तक इस घास को बोया जा सकता है। इस घास को नदी, नालों, तालाबों व गड्ढ़ों के किनारे की नम जमीन और निचली जमीन में जहां पानी भरा रहता है वहां आसानी से उगाया जाता है।
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लखनऊ। अक्सर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पशुपालकों को हरे चारे की समस्या का सामना करना पड़ता है ऐसे में पशुपालक पैरा घास खिलाकर अपने पशुओं को भरपूर मात्रा में हरा चारा खिला सकते है। इस घास को लगाने में ज्यादा लगात भी नहीं आती है।

पैरा घास या अंगोला (ब्रैकिएरिया म्यूटिका) एक बहुवर्षीय चारा है। पैरा घास को अंगोला घास के अलावा कई नामों से जाना जाता है। यह घास नमी वाली जगहों पर अच्छी तरह उगती है। “इस घास को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र और नमी वाली जगह पर उगाया जा सकता है। यह घास बहुत तेजी से बढ़ती है। जहां पर कुछ भी नहीं उगाया जा सकता है वहां पर इस घास को लगाया जा सकता है।” भारतीय चारागाह और चारा अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॅा प्रोबीर कुमार घोष ने बताया, ”

हरे चारे के रुप में पशुपालक इसे इस्तेमाल भी कर रहे है। इस घास में 6 से 7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसके अलावा ऐसी कई घासें पाई जाती है जिसमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। जब कुछ भी नहीं मिलता तो किसान इसका प्रयोग कर सकते है। इस घास को किसान हमारे संस्थान से ले सकता है।”

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पैरा घास के तने की लंबाई 1 से 2 मीटर होती है, और पत्तियां 20 से 30 सेंटीमीटर लंबी और 16 से 20 मिलीमीटर चौड़ी होती है। इस के तने की हर गांठ पर सैकड़ों की संख्या में जड़े पाई जाती है, जिनसे इसकी बढ़वार में अच्छी होती है। इसका तना मुलायम और चिकना होता है। यह घास एक सीजन में करीब 5 मीटर की लंबाई तक बढ़ सकती है। इस चारे में 7 फीसदी प्रोटीन, 0.76 फीसदी कैल्शियम, 0.49 फीसदी फास्फोरस और 33.3 फीसदी रेशा होता है।

“मार्च से लेकर अगस्त तक इस घास को बोया जा सकता है। इस घास को नदी, नालों, तालाबों व गड्ढ़ों के किनारे की नम जमीन और निचली जमीन में जहां पानी भरा रहता है वहां आसानी से उगाया जाता है।” डॅा प्रोबीर कुमार घोष ने बताया। 


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खेत की तैयारी

ज्यादा उपज के लिए खेत की तैयारी अच्छी तरह से करनी चाहिए। खेत से खरपतवार हटा देना चाहिए। नदी और तालाबों के किनारे जहां जुताई गुड़ाई संभव न हो वहां पर खरपतवार और झाड़ियों को जड़ सहित निकाल कर इस घास को लगाना चाहिए।

रोपाई

उत्तर भारत क्षेत्रों में रोपाई का सही समय मार्च से अगस्त है। भारत के दक्षिणी, पूर्वी और दक्षिणी पश्चिम प्रदेशों में दिसंबर जनवरी को छोड़ कर पूरे साल इसकी रोपाई की जा सकती है। इसके बीज की पैदावार बहुत होने से ज्यादातर इससे कल्लों या तने के टुकड़ों द्ववारा लगाया जाता है।

सिंचाई

घास की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई की जरुरत होती है। गर्मी व सर्दी के मौसम में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है यह ऐसे क्षेत्रों में ज्यादा उपज देती है जहां पर ज्यादातर पानी भरा रहता है। सूखे क्षेत्रों में इसकी पैदावार काफी कम हो जाती है।

निराई-गुड़ाई

पौष्टिक चारा प्राप्त करने के लिए खेत को हमेशा खरपतवार रहित रखना चाहिए। घास लगाने के 2 महीने तक कतारों के बीच निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को हटा देना चाहिए। दूसरे साल से हर साल बारिश के बाद घास की कतारों के बीच खेत की गुडाई कर देनी चाहिए। इससे जमीन में हवा का संचार अच्छी तरह होता है और चारे की पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है।

कटाई व उपज

इस घास की पहली कटाई बोआई के करीब 70-75 दिनों के बाद करनी चाहिए। इसके बाद बरसात के मौसम में 30-35 दिनों और गर्मी में 40-45 दिनों कें अंतर पर कटाई करनी चाहिए। पैरा घास पत्तेदार और रसीली होने की वजह से इसका साइलेज भी बनाया जा सकता है। 20 सेंटीमीटर से नीचे इसकी कटाई नहीं की जा सकती है वरना इसके कल्ले भी कट जाते है और दुबारा से इसकी हरा चारा नहीं मिल पाता है।

इस घास को लगाने के लिए भारतीय चारागाह और चारा अनुसंधान संस्थान से संपर्क कर सकते है

डॉ. प्रोबीर कुमार घोष

निदेशक

फोन नंबर– 0510-2730666, 2730158, 2730385

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