सीतापुर। पिछले ढ़ेड सालों से कमल कुमार (30 वर्ष) अजोला का उत्पादन करके अच्छी कमाई कर रहे है। अजोला पशुओं के हरे चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन की क्षमता तो बढ़ती है साथ ही पशुओं की प्रजनन क्षमता को भी बढ़ाता है।
सीतापुर जिले से करीब 30 किमी दूर एलिया ब्लॉक के सहसापुर गाँव में रहने वाले कमल 80 पांड से अजोला का उत्पादन कर रहे हैं। “शुरू में एक दो ही पांड थे लेकिन अब 80 पांड है, जिनसे अजोला होता है। एक पांड से 30 किलों अजोला निकलता है और इसको एक किलो में 10 रूपए का बेचते है। एक पांड पर लागत करीब 2 रूपए तक आती है।” कमल ने बताया, ” गर्मियों में इसका उत्पादन कम हो जाता है लेकिन अगर कोई इसको लगाना चाहता है तो जुलाई में इसकी शुरूआत कर सकता है। इसकी मांग भी काफी ज्यादा है क्योंकि दुधारू पशुओं के लिए यह काफी फायदेमंद है।”
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अजोला एक अति पोषक छोटा जलीय फर्न (पौधा) है, जो स्थिर पानी में ऊपर तैरता हुआ होता है। एजोला को घर में हौदी बनाकर, तालाबों, झीलों, गड्ढों, और धान के खेतों में कही भी उगाया जा सकता है। कई किसान इसको टबों और ड्रमों में भी उगा रहे है। यह पौधा पानी में विकसित होकर मोटी हरी चटाई की तरह दिखने लगती है। सभी प्रकार के पशुओं के साथ-साथ अजोला मछलियों के पोषण के लिए भी बहुत उपयोगी होता है।
अजोला से मिलने वाले पोषण की जानकारी देते हुए सीतापुर केवीके के डॉ आनंद सिंह बताते हैं, “अजोला में सभी प्रकार के मिनिरल जैसे कैल्शियम, आयरन फास्फोरस, जिंक, कोबाल्ट, मैग्नीजियम इसके अलावा पर्याप्त मात्रा में विटामिन, प्रोटीन, अमीनों एसिड्स और खनिज होते है। इसको उगाने में किसानों का कोई खर्चा भी नहीं आता है और उसका लाभ भी पशुपालकों को मिलता है। इसकों पशुओं को खिलाने से दूध उत्पादन में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि होती है। साथ ही वसा की मात्रा भी 15 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।”
डॉ सिंह बताते हैं, “उत्तर प्रदेश में प्रति गाय दुग्ध उत्पादन ढ़ाई लीटर और प्रति भैंस दुग्ध उत्पादन साढ़े चार लीटर है। ऐसे में पशुओं के दूध उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने के लिए यह काफी कारगार है। यह गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी, मछली, खरगोश, बत्तख को आहार के रूप में दिया जा सकता है। शुरूआत में पशु को ज्यादा मात्रा में नहीं देना चाहिए ।धीरे-धीरे उसके आहार में अजोला की मात्रा को बढ़ाना चाहिए।
अजोला पशुओं के लिए लाभकारी चारा तो है ही, साथ ही साथ यह धान की खेती में जैव उर्वरक की तरह भी काम करता है। धान को नाईट्रोजन की जरुरत होती है जो किसान यूरिया के रुप में धान के रूप में डालते हैं। जब हम अजोला को धान के खेत में डालते हैं तो वो वायुमंडल से नाईट्रोजन का खींच के मिट्टी में संग्रहित करता है।
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सावाधानी के बारे में डॉ सिंह बताते हैं, “जब आप किसी पशु को अजोला दे तो उसको पानी से निकालने के बाद साफ पानी में साफ कर लें। और जब उसका पानी निकल जाए और वो सूख जाए तब उस अजोला को पशुओं को खाने के लिए दें। इसका उत्पादन करने के लिए अक्टूबर महीने से लेकर मार्च के महीने तक इसको शुरू किया जा सकता है। अप्रैल मई जून के महीने में अजोला उत्पादन काफी कम हो जाता है। लेकिन अगर छाया का इंतजाम किया जाए यानी अगर मोटी नेट उसके ऊपर लगा दे तो अजोला का उत्पादन किया जा सकता है।”
ऐसे उगाएं अजोला
- अजोला उगाने के लिए पांच मीटर लम्बा एक मीटर चौड़ा और आठ से दस इंच गहरा पक्का सीमेंट का टैंक बनवा लें। टैंक की लम्बाई व चौंड़ाई आवश्यकतानुसार घटा-बढ़ा भी सकते हैं। अगर टैंक नहीं बना सकते, तो ज़मीन को बराबर करके उस पर ईंटों को बिछाकर टैंकनुमा गड्ढा बना लें, गड्ढे में 150 ग्राम मोटी पॉलीथिन को गड्ढे में चारो तरफ लगाकर ईंटों आदि से अच्छी तरह दबा दें। गड्ढा/टैंक किसी छायादार जगह पर ही बनाएं।
- गड्ढे/टैंक में लगभग 40 किलोग्राम खेत की साफ-सुथरी छनी हुई भुरभुरी मिट्टी को डाल दें।
- 20 लीटर पानी में दो दिन पुराने गोबर को चार-पांच किलोग्राम का घोल बनाकर एजोला के बेड पर डाल दें।
- गड्ढे/टैंक में सात से दस सेंटीमीटर पानी भर दें (एजोला के अच्छे उत्पादन के लिए गड्ढे/टैंक में इतना पानी हमेशा रखें)।
- एक से डेढ़ किलोग्राम मदर एजोला कल्चर को पानी में डाल दें। (यह गड्ढे/टैंक में एक बार डालना होता है उसके बाद यह धीरे-धीरे बढऩे लगता है। )
- दस से बारह दिन में एजोला पानी के ऊपर फैलकर मोटी हरी चटाई सा दिखने लगता है।
- बारह दिन के बाद एक किलोग्राम एजोला प्रतिदिन प्लास्टिक की छन्नी से निकाला जा सकता है।
- सप्ताह में एक बार गोबर पानी का घोल बनाकर गड्ढे/टैंक में जरुर डालते रहें।
- पशुओं को खिलाने से पहले एजोला को पानी से निकालने के बाद अच्छी तरह साफ कर लें, जिससे गोबर की गंध न आए।
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प्रतिदिन खिलाएं अजोला
- अजोला को पशुओं के रोज़ के चारे में 1:1 (बराबर मात्रा) में मिलाकर दूध देने वाले पशुओं को प्रतिदिन खिलाएं। पाया गया है कि इससे मिलने वाले पोषण से दूध के उत्पादन में 10-15 प्रतिशत वृद्घि होती है इसके साथ 20 से 25 प्रतिशत रोज के चारे में बचत भी होती है।
- अजोला पोल्ट्री बर्ड्स को भी खिलाया जा सकता है। इससे उनकी वृद्घि जल्दी होती है, अन्य साधारण चारा खाने वाली चिडि़्यों की तुलना में उनका वजन 10 से 12 प्रतिशत ज्यादा होता है।
जानकारी के लिए यहां करें संपर्क
अगर आपको अजोला का बीज चाहिए तो अपने क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र से इसका बीज ले सकते है। इन केंद्रों पर बीज आसानी से उपलब्ध हो जाएेंगे।
बरेली के इज्जतनगर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में भी अजोला के लिए भी संपर्क कर सकते है:
- डॉ बीपी सिंह
- 9719138623
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