फिर मंडराया घोड़ों पर लाइलाज बीमारी ग्लैंडर्स का खतरा, जानवरों से इंसानों में भी हो सकता है संक्रमण

हरियाणा के झज्जर में 2 घोड़ों में हुई इस बीमारी की पुष्टि। पशुपालन विभाग ने जिले के 143 घोड़ों के सैंपल को राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार भेजे थे। इसका नहीं कोई इलाज, पशु को मारना आखिरी विकल्प।
#Glanders disease

कोरोना वायरस की दूसरी लहर में अश्व (घोड़ा) पालकों के सामने नई मुसीबत आ गई है। हरियाणा के झज्जर में दो घोड़ों में जानलेवा बीमारी ग्लैंडर्स मिली है। इस बीमारी का कोई इलाज भी नहीं है और पशुओं से इंसानों में भी यह बीमारी फैल सकती है।

पशुपालन विभाग ने जिले के 143 घोड़ों के सैंपल को राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार को भेजा था, जिनमें से दो घोड़ों में ग्लैंडर्स बीमारी की पुष्टि हुई है। पशुपालन विभाग, झज्जर के उप निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “जिले में जितने भी घोड़े, गधे और खच्चर हैं, सभी का रूटीन टेस्ट होता रहता है। जिले के 143 घोड़ों के सैंपल को हिसार भेजा गया था। रिपोर्ट आने के बाद दो घोड़े पॉजिटिव पाए गए हैं।”

वो आगे कहते हैं, “ग्लैंडर्स एक जानलेवा बीमारी होती है, इसका इलाज भी नहीं होता है। कई बार तो घोड़े को मार दिया जाता है, ताकि दूसरे घोड़े उससे संक्रमित न हो जाएं। ये बीमारी जानवरों से इंसानों में भी फैल सकती है। इसलिए भट्ठों पर काम करने वाले घोड़े और गधे पालकों को सावधानी बरतने को कहा गया है।”

फोटो: ब्रुक्स इंडिया

‘ग्लैंडर्स’ एक जुनोटिक बीमारी है। यह ज्यादातर घोड़े, गधों और खच्चरों में होती है। इस बीमारी से पीड़ित पशु को मारना ही पड़ता है। अगर कोई पशुपालक इस बीमारी से ग्रसित पशु के संपर्क में आता है तो यह मनुष्यों में भी फैल जाती है। लाइलाज होने के कारण इस बीमारी से ग्रसित पशु को यूथेनेशिया दिया जाता है, जिसके बाद पशु गहरी नींद में चला जाता है और लगभग दस मिनट में नींद के दौरान ही उसकी दर्द रहित मौत हो जाती है।

ग्लैंडर्स बीमारी से घोड़े, गधे और खच्चरों को बचाने के लिए ब्रुक इंडिया संस्था पिछले कई वर्षों से काम कर रही है। ब्रुक इंडिया संस्था में पशु स्वास्थ्य एवं पशु कल्याण प्रमुख डॉ निदेश भारद्वाज बताते हैं, “ग्लैंडर्स बीमारी घोड़े, गधे और खच्चरों को होती है, जैसे किसी घोड़े को संक्रमण हो गया और वो दूसरे घोड़ों के साथ काम कर रहा है, या फिर साथ में पानी पी रहे, एक साथ चारा खा रहे हैं तो एक जानवर से दूसरे जानवर में यह बीमारी फैल सकती है।”

घट रही है पशुओं की संख्या

पिछले कुछ वर्षों में देश में अश्व प्रजाति के जानवरों की संख्या में काफी कमी आयी है। 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में घोड़े और टट्टुओं की संख्या 0.6 मिलियन और गधों की संख्या 0.3 मिलियन, खच्चर की संख्या 0.2 मिलियन थी। जबकि 20वीं पशुगणना के अनुसार इनकी संख्या घटकर घोड़े और टट्टुओं की संख्या 0.3 मिलियन और खच्चरों की संख्या 0.2 मिलियन और गधों की संख्या घटकर 0.1 मिलियन रह गई है।

फोटो: ब्रुक्स इंडिया

वो आगे कहते हैं, “इसके लक्षण में पशुओं में सांस लेने की दिक्कत होती है। गधे और खच्चर के मुकाबले घोड़े में यह लंबे समय तक चलती है। इसमें घोड़े में लक्षण नहीं दिखते हैं और वो दूसरे जानवरों को संक्रमित करते रहते हैं। जबकि गधे और खच्चर में तेजी से लक्षण दिखते हैं और कुछ ही दिन में जानवर की मौत हो जाती है।”

“इसके लक्षण में नाक से पानी जैसा पदार्थ बहता है और बाद में वो गहरे पीले रंग का हो जाता है। कभी-कभी नाक में ही अल्सर बन जाते हैं। हल्का बुखार आता है, इसके अलावा जानवर धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है। उसकी पसलियां दिखने लगती हैं। सांस लेने में घर्र-घर्र की आवाज आती है। कभी-कभी शरीर पर गांठ बन जाती हैं। धीरे-धीरे ये गांठे फट जाती हैं, जिससे गहरा पीला पदार्थ निकलने लगता है और वहां जख्म बन जाते हैं। ये जख्म भरते नहीं हैं,” डॉ निदेश भारद्वाज ने आगे कहा।

संक्रमित पशुओं का सैंपल राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार भेजा जाता है। वहां से रिपोर्ट की पुष्टि होती है। यह नोटिफाइड डिजीज होती है। इसके लिए पशुपालन विभाग के अधिकारी ही सैंपल भेजते हैं। अगर पशु की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो उन्हें मार दिया जाता है।

पशु को मारने के बाद सरकार की तरफ से मुआवजा भी दिया जाता है। घोड़ों की मौत पर 25 हजार और गधे और खच्चर की मौत पर 16 हजार रुपए दिए जाते हैं।

इस बीमारी से गधे और खच्चरों की एक हफ्ते से 10 दिन के अंदर मौत हो जाती है, लेकिन घोड़े इस बीमारी में कई महीनों तक जिंदा रह सकते हैं। घोड़े की त्वचा में गांठ पड़ जाती है। इन पर जब एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जाता है तो वो जीवाणु अपने लक्षण कम कर देता है, जिससे लगता है कि जानवर ठीक हो गया, लेकिन जैसे ही आप इलाज बंद करेंगे। उसके 15 दिन बाद फिर वो लक्षण दिखाई देने लगते है। ऐसे में इस बीमारी से ग्रसित घोड़े कई महीनों तक जीवित रह लेते है।

फोटो: ब्रुक्स इंडिया

पशुओं में ग्लैंडर्स के लक्षण दिखने पर क्या करें

किसी पशु में ग्लैंडर्स के लक्षण दिखने के बाद उसे दूसरे पशुओं से अलग कर दें।

संक्रमित पशु को समय-समय पर सावधानी पूर्वक चारा और पानी देते रहें।

अगर पशु चारा नहीं खा रहा तो बचे हुए चारे को नष्ट कर दें।

घर के किसी एक ही सदस्य को पशुओं के पास जाना चाहिए।

मृत पशु को गहरा गड्ढा करके उसमें दफनाना चाहिए।

इस दौरान दूसरे पशुओं पर भी नजर रखे कि उनमें तो यह लक्षण नहीं हैं।

जितनी बार संक्रमित पशु को चारा या पानी देने जाए, साबुन और पानी से हाथ जरूर धोएं।

पशु शाला को अच्छी तरह से साफ करें।

अगर किसी के हाथ में चोट या घाव है तो उसे पशुशाला में नहीं जाना चाहिए।

पशुओं में ग्लैंडर्स के लक्षण दिखने पर क्या न करें

एक साथ स्वस्थ और बीमार पशु को न रखें।

एक साथ सभी पशुओं को चारा पानी नहीं देना चाहिए।

जितनी जल्दी हो सके बीमारी पशु को आइसोलेट कर दें।

पशु को छूने के बाद बिना हाथ धोएं कुछ भी न खाएं।

पशु ठीक होने पर भी उसे स्वस्थ पशुओं के साथ न रखें।

पशुओं के नाक या फिर शरीर में बन रहीं गांठ या फिर घाव को न छुएं।

भारत में कब और कहां देखी गई ग्लैंडर्स बीमारी

2006-07: महाराष्ट्र के पुणे, पंजाब के लुधियाना (पंजाब), उत्तर प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, उत्तराखंड के काठगोदाम में मिले थे।

2007-08: आंध्र प्रदेश के महबूब नगर, बालानगर, राजपुर, हरियाणा के करनाल, हिमाचल प्रदेश के नाहन, सिरमौर, उत्तराखंड के हल्द्वानी, काठगोदाम में केस आए।

2009-10: छत्तीसगढ़ के रायपुर में घोड़ों में इसके मामले मिले।

2010-11: हिमाचल प्रदेश के मंडी, उत्तर प्रदेश के बिजनौर, गाजियाबाद।

2011-12: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और कासगंज।

2012-13: उत्तर प्रदेश के औरैया और हरदोई।

2013-14 : चंडीगढ़ के रामनगर, रायपुर, हिमाचल प्रदेश के सोलन और उत्तर प्रदेश के बदायूं और हरदोई। 

2014-15: हिमाचल प्रदेश के मंडी, उत्तर प्रदेश के आगरा, जम्मू-कश्मीर के कटरा।

2015-16: जम्मू-कश्मीर के कटरा, पंजाब के गुरदासपुर, उत्तर प्रदेश के बदायूं, कासगंज, गाजियाबाद, हाथरस, हापुड़, मुजफ्फरनगर, शामली, बरेली, उत्तराखंड के हरिद्वार, ऋषिकेश और उधमसिंह नगर और गुजरात के भावला,  अहमदाबाद, खेड़ा।

2016-17: हरियाणा के यमुनानगर, गोहाना, सोनीपत, पानीपत, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, पंजाब के रूपनगर, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, बदायूं, सहारनपुर, हरदोई, बाराबंकी, लखीमपुर खीरी, सहारनपुर, शामली, हाथरस, फतेहपुर, उत्तराखंड के ऋषिकेश, रुड़की, हरिद्वार, गुजरात के भावनगर, बनासकाठा, जामनगर, अहमदाबाद, जूनागढ़, कच्छ, राजस्थान के उदयपुर और मध्य प्रदेश के ग्वालियर। 

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