फीड महंगा होने से पोल्ट्री उद्योग पर संकट, लोग बंद कर रहे मुर्गी फार्म

अंडा और चिकन कारोबार का धंधा कभी मुनाफे वाला माना जाता था। लेकिन कारोबारियों के मुताबिक पिछले एक साल में कारोबार घाटे में जा रहे हैं, छोटे किसान मुर्गी फार्म बंद कर रहे हैं।
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मुर्गियों का दाना महंगा होने से पोल्ट्री इंडस्ट्री मंदी की चपेट में है। अंडा और मुर्गी पालन से जुड़े किसान और कारोबारी दोनों परेशान हैं। हजारों किसानों ने अपना काम बंद कर दिया है।

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में 17 हजार से ज्यादा मुर्गियों की क्षमता वाले दो फार्म चलाने वाले गुलाम मोहम्मद का कहना है कि मुनाफा तो दूर अंडा हो या चिकन उनकी लागत नहीं निकल पा रही है। वो अब मुर्गे से ज्यादा केले की खेती पर जोर दे रहे हैं।

“पिछले एक साल से पोल्ट्री व्यवसाय में बहुत दिक्कत आ रही है। मुर्गियों का फीड महंगा होने से लागत बढ़ रही है और बाजार में अंडा और चिकन उसी कीमत पर बिक रहा है। हमारे गाँव में लगभग सभी ब्रायलर फार्म बंद हो चुके हैं,” गुलाम मोहम्मद बताते हैं।


पोल्ट्री कारोबार में आ रही दिक्कतों को समझाते हुए गुलाम मोहम्मद लागत और मुनाफे का अंतर समझाते हैं, “पहले मुर्गियों के रेडीमेड फीड की एक बोरी (50 किलो) 850-900 रुपए की थी, जो अब 1200 के आसपास मिल रही है। एक अंडे को तैयार करने में 3.75 रुपए की लागत आती है और बिकता 3 रुपए और 3.15 रुपए में।” आगे कहते हैं, “वहीं एक चिकन को तैयार करने में 80 रुपए की लागत आती है और 55 रुपए में बिकता है। इस वक्त जो फार्म चल रहे हैं वो बड़ी कंपनियों के हैं, छोटे किसानों को काम बंद करना पड़ा।”उत्तर प्रदेश में बंद होने वाले मुर्गी फार्मों की संख्या हजारों में है।

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पांच हजार से ज्यादा पोल्ट्री कारोबारियों के संगठन उत्तर प्रदेश पोल्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष अकबर अली कहते हैं, “यूपी ही नहीं पूरे देश में पोल्ट्री इंडस्ट्री घाटे में चल रही है। यूपी में 40 प्रतिशत फार्म बंद हो चुके हैं। अबकी बार में जाड़े में 12 रुपए से कम का अंडा नहीं मिलेगा। लोगों को आसानी से अंडा मिलेगा ही नहीं।”

कारोबार घटने की मुख्य वजह निर्यात में कमी भी है। भारत सरकार के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के मुताबिक 2018-19 में पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात कुल 5,44,985.05 मीट्रिक टन हुआ जिसकी कीमत 68,731.46 लाख रुपए थी। जबकि 2019-20 में (अ्प्रैल-मई) में निर्यात 82,459.66 मीट्रिक टन ही हो पाया है जिससे 9,900.47 लाख रुपए का कारोबार हुआ। इस तरह पोल्ट्री उत्पादों के निर्यात में गिरावट साफ देखी जा सकती है।

देश में पोल्ट्री उद्योग का कुल कारोबार 90 हजार करोड़ रुपए का है, जिसमें 65 प्रतिशत हिस्सा चिकन मीट का और 35 फीसदी हिस्सा अंडे का है। पोल्ट्री इंडस्ट्री का भारत में तेजी से विस्तार हुआ है। तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से लेकर से पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश में करोड़ों लोग इस कारोबार से जुड़े हैं। पोल्ट्री का कारोबार असंगठित है, जिनमें कुछ समय पहले तक सिर्फ छोटे किसान हुआ करते थे, लेकिन अब बड़ी कंपनियां भी ठेके पर काम कराने लगी हैं।


हरियाणा के हिसार और जींद जिले में पोल्ट्री का बड़ा कारोबार होता है। हिसार के बरवाला में डेढ़ सौ से ज्यादा फार्म हैं जो मंदी की चपेट में हैं। यहां से देश के 7 राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में अंडा सप्लाई किया जाता है, लेकिन फीड की कीमत बढ़ने से लोग परेशान हैं।

देश में कुल मक्का का लगभग 47 फीसदी इस्तेमाल पॉल्ट्री फीड बनाने में ही इस्तेमाल किया जाता है। मक्के के अलावा सोयाबीन दूसरा बड़ा घटक है। कारोबारियों के मुताबिक लेकिन इन दोनों फसलों की न सिर्फ दाम ज्यादा हैं बल्कि मांग के अनुरूप आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। जिसका असर मुर्गी और अंडा पाने वाले किसान, पोल्ट्री फीड और फीड बनाने वाली मशीनें बनाने वाली कंपनियां, चूजे की मशीन और चूजे सप्लाई करने वाली कंपनियों और वैक्सीन-दवा बनाने वाली कंपनियों का भी कारोबार प्रभावित हुआ है।

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तेलंगाना में फीड और फीड बनाने वाली मशीन का कारोबार करने वाली फर्म साई दुर्गा इंडस्ट्री के मार्केटिंग हेड जी.प्रसादा राजू फोन पर ‘गाँव कनेक्शन’ को बताते हैं, “यह एक चक्र की तरह है जब किसान को फायदा होगा तब ही मशीन बनाने वाले कंपनी को फायदा होगा। हमारे यहां फीड बनाने की मशीन के लिए जहां 80 प्रतिशत ऑर्डर आते थे वहीं अब 50 प्रतिशत रह गया है। क्योंकि उनके पास मक्का और सोयाबीन नहीं है खरीदने के लिए तो मशीन नहीं खरीदेगा। मक्का का रेट बढ़ने से छोटे-बड़े दोनों किसान घाटे में है।” साई दुर्गा इंडस्ट्री पिछले कई वर्षों से मुर्गियों को फीड देने वाली मशीनों को बना रही है।


मत्स्य, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार के वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने में पोल्ट्री इंडस्ट्री बड़ा कारक होगी। मंत्रालय ये भी मानता है कि धान-गेहूं की अपेक्षा पशुपालन और पोल्ट्री में आमदनी तेजी से बढ़ती है। अंडा उत्पादन में चीन और यूएसए के बाद भारत तीसरे नंबर (3.97 मिलियन टन सालाना) है।

मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में पोल्ट्री मीट का उत्पादन 3.46 मिलियन टन है, जो वर्ष 2015-16 के (3.26) मुकाबले 2016-17 में 3.46 मिलियन टन था। ये बढ़ोतरी करीब 6 फीसदी है, लेकिन मौजूदा हालात सरकार की उम्मीदों को झटका दे सकते हैं।

यूपी में हर रोज एक करोड़ से सवा करोड़ अंडे बाहर से आते हैं। यानि इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं लेकिन छोटे किसान इसका फायदा नहीं उठा पा रहे। लखनऊ में बक्शी का तालाब क्षेत्र में मडवाना गाँव की सरोज के पास पहले 10 हजार मुर्गियां एक बार में बाड़े में रखती थीं, इस वक्त उनके पास मुश्किल से 50-60 हैं चूजे बचे हैं। सरोज बताती हैं, “पहले अच्छा मुनाफा होता था, लेकिन डेढ़ साल से घाटा हो रहा है। दो बार चूजे डाले, उसका घाटा पूरा करने के लिए दो भैंसे बेचनी पड़ी, इस बार चूजे ही नहीं डाले।”

केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के निदेशक, बरेली (यूपी) डॉ. ए.बी. मंडल बताते हैं, “ब्रायलर और लेयर दोनों में प्रोडक्शन कास्ट बढ़ी है, जिससे छोटे फार्मर घाटे में हैं। चिकन के रेट की बात करें तो इस समय किसान को 12 से 15 रुपए का सीधे घाटा हो रहा है। मक्का पोल्ट्री फीड का अहम हिस्सा है इसके जो विकल्प हैं जैसे बाजरा-चावल की पॉलिश इनकी भी कमी है।”


डॉ. मंडल आगे बताते हैं, “पूरे भारत में पोल्ट्री व्यवसाय की यही स्थिति है। तेलंगाना और तमिलनाडू में खपत ज्यादा है लेकिन वो किसान भी घाटे में है। आंध्र प्रदेश में एक अंडे की उत्पादन लागत 3.60 रुपए आ रही है और लेकिन कीमत 3 रुपए ही मिल पा रही है।” 

पोल्ट्री किसानों के साथ इस व्यवसाय से जुड़ी बड़ी कंपनियां भी घाटे में हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल इलाकों में चूजों को सप्लाई करने वाली कंपनी सनराइज हैचरी के निखिल गुप्ता बताते हैं, “पोल्ट्री उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहा है अब इसको कोई पालना ही नहीं चाहता है। हम लोगों के पास 70 पोल्ट्री फार्म थे, जिसमें 25 बंद हो गए। जो 50 चल रहे हैं, उनको भी चलाने में दिक्कत आ रही है जबकि कंपनी चूजा, फीड और दवा की लगात खुद उठाती है लेकिन कंपनी ही घाटे में तो किसान को पालने के लिए कहां से देगी।”

देश में कई कंपनियां किसानों से ठेके पर अंडा-चिकन पालन करवाती हैं। इस काम में जगह, स्ट्रक्चर और देखरेख किसान की होती है, वहीं चूजा, फीड और दवा की लागत कंपनियां उठाती हैं। बदलते में किसान को तैयार चूजे पर प्रति किलो के हिसाब से कमीशन मिलता है। जैसे यूपी के कई इलाकों में ये 6 रुपए किलो है।

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निखिल की कंपनी ठेके पर काम करवाने के साथ ही किसानों को चूजा भी बेचती है। वो कहते हैं, “एक चूजे को तैयार करने में 16 रुपए की लागत आ रही है और बिक रहा 13 रुपये में रहा है। कंपनियां भी नुकसान में हैं, अगर यही रहा तो काम बंद करना पड़ेगा। सुना भी है कि अक्टूबर तक मक्के का दाम घट सकते हैं।”

मोदी सरकार ने 2018 में मक्के की कीमतों में करीब 275 रुपए की बढ़ोतरी की थी, जबकि 2019 में 60 रुपए की बढ़ोतरी हुई। न्यूनतम समर्थन मूल्य में हुई बढ़ोतरी के साथ ही बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में पहले कमजोर मानसून और फिर फॉल आर्मी वर्म कीट के हमले के चलते उत्पादन प्रभावित हुआ था। जिसका सीधा असर पोस्ट्री इंडस्ट्री और स्टार्च कंपनियों के कारोबार में पड़ा।

केंद्र सरकार ने हाल में पोल्ट्री उद्योग की मांग को पूरा करने के लिए 15 फीसदी शुल्क पर चार लाख टन मक्का आयात की अनुमति दी थी, जबकि इसके पहले भी एक लाख टन आयात की अनुमति दी हुई है। हालांकि अभी आयातित मक्का भारत नहीं पहुंचा है।


जुलाई में तमिलनाडु में रवि पोल्ट्री फार्म्स के डायरेक्टर शशि कुमार ने एक बयान जारी करते हुए कहा था कि, “सरकार ने रूस और यूक्रेन से मक्का आयात करने का टेंडर जारी करने का निर्णय किया था, ताकि सप्लाई बढ़ाई जा सके। हालांकि उसमें देर हो गई है। उन देशों में फसल तैयार हो चुकी है और दाम चढ़ रहे हैं।”

पोल्ट्री कारोबारियों को उम्मीद है कि सावन (धार्मिक मान्यताओं के चलते अंडा-मुर्गा की बिक्री कम होती है) बीतने और सर्दियां आने के बाद मांग बढ़ सकती है। साथ ही अक्टूबर तक मक्के की नई फसल भी आने उनके राहत मिलेगी।

लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने देश में फसल उत्पादन को लेकर जो आरंभिक अनुमान जारी किया है उसके मुताबिक देश में मक्के का उत्पादन घट सकता है। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में रबी सीजन में मक्का का उत्पादन घटकर 70.19 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 80.63 लाख टन का उत्पादन हुआ था। देश में खरीफ में मक्का का ज्यादा उत्पादन होता है। फसल सीजन 2018-19 में खरीफ और रबी सीजन को मिलाकर कुल उत्पादन 278.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 287.5 लाख टन का उत्पादन हुआ था।

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पोल्ट्री उद्योग को मंदी से बाहर लाने के लिए पोल्ट्री कारोबारी मक्के पर सब्सिडी देने की मांग कर रहे हैं। केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. जयदीप रोकडे बताते हैं, “छोटे किसान इसलिए घाटे में हैं कि चाहे जो रेट हो उनको अंडा बेचना है क्योंकि उनके पास बड़ी कंपनियों की तरह कोल्ड स्टोरेज नहीं है। उसको 2 दिन के अंदर बेचना ही है।” वह आगे बताते हैं, “इसके अलावा साउथ इंडिया में बाढ़ रही तो एग्रीकल्चर प्रोडेक्ट, जिसमें पोल्ट्री निर्भर है उसका उत्पादन कम हुआ। इसलिए फीड के दाम भी बढ़े हैं।”


इस उद्योग में चूजा बनाने वाली कंपनी से लेकर इनकी दवाओं को बेचने वाली कंपनी को भी घाटा हुआ। पोल्ट्री की दवा बनाने वाली कंपनी में काम कर रहे मार्केटिंग से जुडे एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “दवाओं की सेल करना मुश्किल हो गया है। फार्म बंद हो रहे हैं तो दवा और वैक्सीन नहीं बिक रही हैं।”

पोल्ट्री फीड में होता है क्या?

पोल्ट्री फीड में 50 फीसदी मक्का होता है और 15-18 फीसदी सोयाबीन होता है। इसके साथ ही मुर्गियों के फीड में 15 फीसदी डीऑयल राइड ब्रांड पॉलिश का इस्तेमाल किया जाता है। बाकी में अन्य ऊर्जावर्धक तत्व होते हैं। मुर्गियों को तीन तरह का आहार दिया जाता है, जो उनकी उम्र पर निर्भर करता है। 

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