लखनऊ। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी अब इंसानों तक सीमित नहीं रही, गाय-भैंस समेत कई जानवर इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं। इन पशुओं का दूध पीना इंसानों के लिए घातक हो सकता है। यूपी के सीतापुर जिले के अल्लीपुर गाँव में रहने वाली चंद्रकला शुक्ला की गाय पिछले एक महीने से ब्रेन कैंसर की चपेट में है।
चंद्रकला ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमारी गाय काफी समय से खूंटे से अपने सिर को मारती थी। पहले तो समझ नहीं आया फिर डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि उसको कैंसर है। घर में पहले इसी का दूध पिया जाता था लेकिन अब यह एक कोने में बंधी रहती है।” चंद्रकला के पास एक ही गाय है जो करीब तीन लीटर दूध देती है। पहले वह इस दूध का इस्तेमाल घर में करती थीं लेकिन अब वह बाजार से दूध खरीदती हैं।
कैंसर का यह मामला सिर्फ चंद्रकला की गाय का नहीं है। हिसार स्थित लाला लाजपतराय पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) ने इलाज के लिए आए जानवरों के अल्ट्रासाउंड से डाटाबेस तैयार किया है, जिसमें दुधारु पशुओं में कैंसर के मामले सामने आए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा मामले बच्चेदानी के हैं।
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अच्छी तरह उबाल कर ही इस्तेमाल करें दूध
लुवास के वैज्ञानिकों का मानना हैं कि कैंसर से ग्रसित पशु का दूध पीने से लोगों में भी इसका खतरा बढ़ सकता है। अगर दूध को उबालकर न पिया गया तो। उनका कहना है कि दूध को अच्छी तरह उबालने से उसमें कैंसर फैलाने वाले तत्व खत्म हो जाते हैं।
गर्भाशय और थनों का कैंसर ज्यादा
लुवास में गायनोकोलॉजी विभाग में पशु वैज्ञानिक डॉ. आरके चंदोलिया बताते हैं, “हमारे पास अभी तक 20 से भी ज्यादा मामले आ चुके हैं जिनमें कैंसर पाया गया। इसमें गाय-भैंस दोनों शामिल हैं। दुधारु पशुओं में कैंसर की जांच के लिए हमारी टीम काफी समय से काम कर रही है। जो भी पशु हमारे पास आए उनकी जांच किया गया है, जिसमें कुछ के थनों में गांठ और कुछ के गर्भाशय में गांठ पाई गई।” दुधारु पशुओं के थनों में अक्सर गांठें हो जाती हैं जिसे थनैला रोग कहते हैं। अगर इनका सही समय पर इलाज न हो तो ये कैंसर बन सकता है। ये बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी महिला के स्तन की गांठ होने पर कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।
डॉ चंदोलिया आगे कहते हैं, “जिन गाय-भैंस के गर्भाशय में कैंसर के मामले थे, उनके उपचार के लिए उनके गर्भाशय को निकाल दिया गया। दुधारु पशुओं में कैंसर सिर्फ गर्भाशय में नहीं बल्कि किडनी, थनों , यूरिन के साथ-साथ उनको स्किन कैंसर भी हो सकता है।”
डायनासोर भी थे कैंसर की चपेट में
जानवरों में कैंसर कोई नहीं बीमारी नहीं है। अमेरिका के फोर्ट कॉलिंस में स्थित फ्लिंट एनिमल कैंसर सेंटर के संस्थापक और प्रोफेसर डॉ स्टीफन जे विडरो ने अपने एक लेख में लिखा है, ” जानवरों में कैंसर कोई नहीं बीमारी नहीं। इसकी पुष्टि हो चुकी है कि डायनासोर भी कैंसर की चपेट में थे। नॉर्थईस्टर्न ओहियो यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिक ब्रूस रॉथचाइल्ड ने पोर्टेबल एक्स-रे मशीन का प्रयोग करके 700 संग्रहालयों में रखे लगभग 10000 हजार डायनासोर के बचे-खुचे हिस्सों की जब जांच की तो उनमें से कई में कैंसर के तत्व पाये गये।” लेख में इस बात का भी जिक्र है कि वर्ष 1906 में जर्मनी के एक वैज्ञानिक ने पहली बार रेडिएशन से जानवर में कैंसर का इलाज भी किया था।
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पशु विज्ञान के क्षेत्र में विदेशों में काफी काम हुआ। इसके साथ विदेशों में पशुचिकित्सा की सुविधाएं अच्छी होती हैं जिस कारण वहां सही समय पर बीमारियों की पहचान कर ली जाती है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अमर पाल ने कहते हैं, “कैंसर ही नहीं पशुओं में कई ऐसी बीमारियां हैं जिनका सही समय पर पता लगाकर इलाज किया जा सकता है। लेकिन जिले स्तर पर मल्टीस्पेशलियटी अस्पताल न होने के कारण डॉक्टर भी पशुओं की सही बीमारी का पता नहीं लगा पाते। हमारे यहां अभी भी लक्षण देखकर इलाज किया जाता है।”
भारत में जांच की सुविधाएं कम
जानवरों को बेहतर इलाज मिल सके, इसके लिए भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान (आईवीआरआई) ने बरेली जिले में उत्तर भारत का यह पहला मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल बना हुआ है। इस अस्पताल में बड़े और छोटे जानवरों के लिए अलग-अलग ऑपरेशन थिएटर, माइनर ओटी, प्रसव कक्ष, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, जांच प्रयोगशाला, एंडोस्कोपी, डायलिसिस यूनिट और सेमिनार रूम उपलब्ध है। साथ ही इस अस्पताल में आईसीयू की भी सुविधा है। बरेली जैसे अस्पताल अगर देशभर में जिले स्तर पर खुल जाए तो जानवरों में होने वाली कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से उनको बचाया जा सकता है।
डॉ अमर पाल कहते हैं, “किसान के पास इतने पैसे नहीं की वह अपने पशु को दूर-दूराज के मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में लेकर जाएं। अगर सरकार जिले स्तर पर मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल खुलवाती है तो उनकी जांच करके तुरंत बीमारी का पता लगाया जा सकता है और पशुओं का सही इलाज हो सकता है।”
प्लास्टिक भी बन रही कैंसर की वजह
जहां एक ओर पशुओं का सही समय पर इलाज न होने से पशुओं में कैंसर जैसी बीमारी एक बड़ा रूप ले लेती हैं वहीं कुछ वैज्ञानिक जानवरों में इस बीमारी का कारण प्लास्टिक बताते हैं। वर्ष 2018 में नेचर सांइस इनेशिएटिव द्वारा किए गए सर्वे में पाया गया कि गाय-भैंस के दूध, गोबर और मूत्र में प्लास्टिक के कण पाए जा रहे हैं जो इंसान के लिए तो हानिकारक हैं ही जानवरों में कैंसर को भी बढ़ावा दे रहे हैं। सर्वे में जानवरों में पॉलीथीन से कैंसर होना पाया गया है।
80 फीसदी छुट्टा गायों में प्लास्टिक के अंश
इस सर्वे में शामिल नेचर साइंस इनेशिएटिव में रिसर्च एसोसिएट सौम्या प्रसाद बताती हैं, “पर्यावरण के साथ प्लास्टिक जानवरों में कई तरह की बीमारी पैदा कर रहा है। जानवरों के लिए प्लास्टिक पचाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि उसमें जो रसायन ( केमिकल्स) होते हैं, उसकी वजह से उन्हें संक्रमण (इंफेक्शन) हो जाता है। यह इंफेक्शन कई बीमारियों को जन्म देता है कभी-कभी इससे पशुओं की मौत भी हो जाती है। प्लास्टिक पर आई कई रिपोर्ट के मुताबिक 80 फीसदी छुट्टा गायों में प्लास्टिक मौंजूद है।”
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यूपी के राज्य पशु चिकित्सा विभाग और पशु कल्याण संगठन के मुताबिक अकेले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पॉलिथीन खाने से हर साल करीब 1000 गायों की मौत हो जाती है। पॉलीथिन खाने गाय की मौत के मामले कई राज्यों से आए है लेकिन उत्तर प्रदेश और राजस्थान में यह आंकड़ा ज्यादा है।