महाराष्ट्र ने अपनी ही गाय-भैंसों की नस्ल सुधारकर बढ़ाया दूध उत्पादन, पूरी जानकारी के लिए देखें वीडियो

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पुणे (महाराष्ट्र)। दुधारू पशुओं की नस्ल सुधार कर उनकी दूध उत्पादकता बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने एक ऐसी योजना की शुरुआत की। इस योजना से गाय-भैंसों की उच्च नस्ल की संख्या तो बढ़ी ही साथ ही उनके दूध देने की क्षमता में भी बढ़ोतरी हुई।

वर्ष 2013 में महाराष्ट्र के पशुपालन विभाग ने “सर्वसमावेशी अनुवांशिक सुधार कार्यक्रम” शुरू किया गया था। इसके तहत महाराष्ट्र राज्य में पाई जाने वाली गाय-भैंसों की नस्लों पर काम किया गया। इस योजना को शुरू करने के उद्देश्य के बारे में पशुपालन विभाग, महाराष्ट्र में अतिरिक्त आयुक्त पशुसंवर्धन डॉ धनंजय परकले ने बताया, “किसानों के लिए गाय-भैंस पालना दिन पर दिन खर्चे का काम होता जा रहा है क्योंकि जमीन, पानी और चारे की उपलब्धता यह सभी समस्याएं उनके सामने है। इसलिए इस योजना को वर्ष 2013 में शुरू किया गया। इसका उद्देश्य किसान कैसे कम गाय-भैंस को पालकर उनके ज्यादा दूध का उत्पादन लें।”


देशभर में दूध के उत्पादन में महाराष्ट्र का 7वां स्थान है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2018-19 में दूध पैदा करने के मामले में देशभर में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। इसके बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंधप्रदेश, गुजरात, पंजाब और महाराष्ट्र है।

अनुवांशिक सुधार कार्यक्रम के बारे में डॉ परकले आगे बताते हैं, “इस योजना में हमने अपने राज्य में पाए जाने वाली पांच गायें और दो भैंसों पर काम किया है। इसके लिए हर साल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है इसमें जितने भी अच्छी नस्ल की गाय-भैंस आते है उनका पंजीकरण कराकर, कानों में टैग लगाकर और उनको 12 डिजिट का यूडीआई नंबर दिया जाता है। एक स्वास्थ्य कार्ड जारी होता जिसमें पशु की पूरी डिटेल होता है।” महाराष्ट्र में पांच गाय(खिलार, डांगी, दवणी, लाल कंधारी और गवळावू) और दो भैंस (पंढरपूरी, नागपुरी) की नस्ल पाई जाती है।

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पशुपालन, डेयरी व मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार द्वारा जारी 19 वीं पशुगणना के मुताबिक महाराष्ट्र में दूध देने वाली गाय-भैंसों की संख्या 87 लाख 99 हजार है।

योजना से किसानों को किस तरह लाभ दिया जाता है इसके बारे में डॉ परकले कहते हैं, “इस डिटेल के जरिए जब गाय या भैंस हीट में आती है तो उसको उच्च गुणवत्ता का सीमन लगाया जाता है। इसके बाद जब गाय ग्याभिन हो जाती है तो छह महीने के बाद उसको मिनिरल मिक्चर, विटामिन के साथ-साथ उनका टीकाकरण किया जाता है।

इसके बाद जब बच्चा पैदा होता है तो उस बच्चे का वजन लेते है और उसके कान में टैग लगाकर इनाफ के अंदर उसका हेल्थ कार्ड जारी कर देते है। और जब वो दूध देने लायक होता है तो उसके दूध देने की क्षमता अधिक हो जाती है। उदाहरण के लिए अगर एक गाय 18 लीटर दूध दे रही है तो इस योजना के तहत उसके आने वाली संतति 20 लीटर दूध देती है।” 


महाराष्ट्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजना के इस योजना के तहत एक लाख 43 हजार 751 किसानों ने इस योजना में भाग लिया है। योजना के तहत जब गाय-भैंस का बच्चा पैदा होता है तो उसकी परवरिश अच्छी हो इसके लिए 5000 रुपए भी दिए जाते है। “छह महीने के बाद पैदा हुए बच्चे का टीम वजन लेती है हर नस्ल के बच्चे का वजन कितना होता है इसके बारे में किसानो को पहले ही बता दिया जाता है। अगर वजन सही रहा तो सब्सिडी के तौर पर उनको पांच हजार रुपए दिए जाते है ताकि उनकी अच्छी देखभाल हो।” डॉ धनंजय ने बताया।

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पशुपालन विभाग ने खिलार का 60 किलो, डांगी का 65 किलो, दवणी 70 किलो, गवळावू 60 किलो, लाल कंधारी 65 किलो, गिर 75 किलो, साहीवाल 75 किलो, थारपारकर 75 किलो, जर्सी क्रासब्रीड 90 किलो, संकरित होल्स्टीन फ्रिजियन 100 किलो है ऐसे ही भैंसों की नस्लों का अलग-अलग वजन रखा है। इस वजन के मानक को जो किसान पूरा कर लेते है उन किसानों को सीधे खाते में राशि दे दी जाती है।

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में 17 करोड़ 63 लाख 47 हजार टन दूध का उत्पादन हुआ जिसमें महाराष्ट राज्य का एक करोड़ 11 लाख टन दूध का उत्पादन शामिल था। 


इस योजना से किसानों को हो रहा फायदा

एक भैंस की नस्ल का उदाहरण देते हुए डॉ धनंजय ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इस योजना से किसानों को काफी फायदा हुआ है। हमारे राज्य में पंढ़रपूरी नस्ल की भैंस की कीमत 30 से 40 हज़ार थी क्योंकि उसके दूध देने की क्षमता 10 लीटर तक थी। इस योजना के तहत उस पर काम किया गया। यहीं भैंस 14 से 15 लीटर पर आ गई और बाजार में किसानों को इसकी कीमत 60 से 70 हजार रुपए मिल रही है।”

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अन्य नस्लों पर भी दे रहे ध्यान

महाराष्ट्र राज्य में पाई जाने वाली गाय-भैंसों की नस्लों के अलावा गुजरात से गिर, पंजाब से साहीवाल, हरियाणा से मुर्रा भैंस के साथ कांकरेज और थारपारकर नस्ल को पाल रहे किसानों के इस योजना के तहत लाभ दिया जा रहा है।

तीन हजार से ज्यादा बच्चों का रिकार्ड

इस योजना के नर/मादा को मिलाकर 3 हजार 186 बच्चों का रिकार्ड दर्ज किया गया है। डॉ धनंजय ने बताया, “मादा पशु तो किसान के पास रहते है। इसके अलावा इसके अलावा हर ब्रीड में लगभग 2 प्रतिशत मेल बछड़े हम लोग सेलेक्ट करते है जिनका प्रयोग सीमन तैयार में किया जाता है क्योंकि वह उच्च गुणवत्ता की नस्ल के बच्चे है। सेलेक्शन के बाद सरकार किसान को उस नर बच्चे का 25000 रुपए भी देती है।

महाराष्ट्र में नहीं आवारा पशुओं की समस्या

डॉ धनंजय बताते हैं, “गाय की नस्ल अच्छी होने से आवारा पशुओं की संख्या हमारे यहां कम है। यहां गायों को खुला नहीं छोड़ते है। यहां के किसान ज्यादा बछड़ों को तैयार करके चार्ज लेकर ब्रीडिंग कराने का काम करते है। इससे उनकी आमदनी भी अच्छी होती है।” महाराष्ट्र राज्य में पंजीकृत 543 गोशालाएं है जिसमें सरकार द्वारा अनुदान दिया जाता है।

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