कोरोना के चलते पिछले कुछ महीनों में बहुत सारे काम प्रभावित हुए हैं, पशुपालन भी उन्हीं में एक है। गाय-भैंस पालन में बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है, खास कर गर्भावस्था में खास खयाल रखना होता है, थोड़ी सी लापरवाही से बहुत नुकसान हो सकता है।
पशुपालन व्यवसाय के लिए भैंस को हर 12-14 महीने बाद ब्याना चाहिए और लगभग 10 महीने तक दूध भी देना चाहिए। लेकिन आमतौर दो ब्यात के बीच में 14-16 महीनों का अंतर होता है और यह रख रखाव और पशुओं के दिए जाने वाले आहार पर निर्भर करता है। भैंस में दो पूर्वकाल के बीच का समय 60 से 90 दिनों तक होना चाहिए। इस बीच दूध उत्पादन के समय हुई पोषक तत्वों की कमी की भरपाई और गर्भ में पलने वाले पोषण की जरूरत पूरी करते हैं।
गर्भकाल के अंतिम तीन महीने में अतिरिक्त पोषक तत्वों की जरूरत होती है, इस समय भैंस का वजन 20 से 30 किलो तक बढ़ भी जाता है। इस समय संचित पोषक तत्वों से ब्याने के बाद के दूध उत्पादन में मदद मिलती है। गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनों में नियमित आहार के साथ ही दो किलो ऊर्जायुक्त दाना मिश्रण देना चाहिए, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को उचित पोषण मिल सके। ब्याने से पहले मिले इस अतिरिक्त पोषक तत्वों को पशु अपने शरीर में जमा कर लेता है और ब्याने के पश्चात दूध उत्पादन में उपयोग करता है।
गर्भकाल के आखिरी तीन महीनों में देखभाल
इस काल या अवस्था में भैंस को दौड़ने या अधिक चलने से बचाना चाहिए और चरने के लिए दूर भी नहीं भेजना चाहिए।
भैंस कहीं फिसल न जाए, इसलिए उसे फिसलने वाली जगहों पर नहीं जाने देना दीजिए और चिकने फर्श पर घास-फूस, पुआल बिछाकर रखना चाहिए।
गर्भवती भैंस को दूसरे अन्य पशुओं से लड़ने मत दीजिए।
भैंस के आहार में एक किलोग्राम अतिरिक्त दाना देना जरूरी है दाने में एक प्रतिशत नमक व नमक रहित खनिज लवण भी दीजिए। अगर हो सके तो एक प्रतिशत हड्डी का चूरा भी अलग से दें।
पीने के लिए स्वच्छ व ताजा पानी ही हर समय देना चाहिए।
गर्मी के मौसम में भैंस को दिन में 2-3 बार नहलाएं व तेज धूप से बचाएं। भैंस के बांधने की जगह अगले पैरों के तरफ नीची और पिछले पैरों की तरफ थोड़ी ऊंची होनी चाहिए। यदि बांधने की जगह इसके उलट है, तो गाभिन भैंस में फूल या गर्भाशय दिखने की संभावना बढ़ जाती है।
गर्भकाल के आखिरी महीनों में भैंस को तालाब में लेटने के लिए भी नहीं ले जाना चाहिए। जल्दी ब्याने वाली भैंस का आवास अलग होना चाहिए और इसके लिए उसे 100-120 वर्ग फुट ढका क्षेत्र और 180-200 वर्ग फुट खुला क्षेत्र जरुर देना चाहिए।
गर्भकाल के आखिरी माह में प्रबन्धन
यदि भैंस दूध दे रही है तो भैंस का दोहन बन्द कर देना चाहिए। ब्याने से 2 महीने पहले भैंसों का दूध निकालना बन्द कर देना, चाहिए नहीं तो बच्चे कमजोर पैदा होगा, अगले ब्यांत में पशु कम दूध देगा और भैंसों की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होगी।
भैंस को प्रसव तक 2-3 किलोग्राम दाना प्रतिदिन दीजिए यदि उसे कब्ज रहता हो तो अलसी का तेल पिलाएं।
ब्याने के 20 से 30 दिन पहले भैंस को दस्तावर आहार जैसे गेहूं का चोकर, अलसी की खल आदि दाने में खिलाएं। यदि हरा चारा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो तो इस मिश्रण की आवश्यकता नहीं पड़ती।
अगर संभव हो तो गाभिन भैंस को दूसरे पशुओं से अलग रखिए ताकि उसकी देखरेख भली-भांति हो सके। गाभिन भैंस को उन पशुओं से दूर रखना उचित होगा, जिनका गर्भ गिर गया हो।
प्रथम बार ब्याने वाली भैंस के शरीर पर हाथ फेरते रहना चाहिए और प्यार करना चाहिए।
भैंसों में प्रसव से पूर्व के लक्षण
प्रसव के 2-3 दिन पहले पशु कुछ सुस्त हो जाता है और दूसरे पशुओं से अलग रहने लगता हैं।
पशु आहार लेना कम कर देता हैं।
प्रसव से पहले उसके पेट की मांसपेशियों सिकुड़ने या बढ़ने लगती हैं और पशु को पीड़ा शुरु हो जाती है।
योनिद्वार में सूजन आ जाती है और योनि से कुछ लसलसा पदार्थ आने लगता है।
पशु का अयन सख्त हो जाता है, पशु के कूल्हे की हड्डी वाले हिस्से के पास 2-3 इंच का गड्ढा पड़ जाता है।
पशु बार-बार पेशाब करता है।
पशु अगले पैरों से मिट्टी कुरेदने लगता है।
प्रसव काल में भैंस की देखभाल
जहां तक हो सके प्रसव के समय पशु के आसपास किसी प्रकार का शोर नहीं होने देना चाहिए और न ही पशु के पास अनावश्यक किसी को जाने दीजिए।
जल थैली दिखने के एक घंटे बाद तक यदि बच्चा बाहर न आए तो बच्चे को निकलने में पशु की सहायता के लिए अनुभवी और योग्य पशु चिकित्सक की मदद लें।
बच्चे के बाहर आ जाने पर उसे भैंस द्वारा चाटने दीजिए ताकि वह सूख जाये। आवश्यकता हो तो बच्चे को साफ आरै नरम तौलिए या कपडे़ से रगड़ कर पोंछ दीजिए ताकि उसके शरीर पर लगा सारा श्लेष्मा साफ हो जाये।
प्रसव के बाद जेर गिरने का पूरा ध्यान रखिये और जब तक यह गिर न जाये भैंस को खाने को कुछ मत दीजिए। सामान्यतः जेर निष्कासन में 6 से 8 घंटे का समय लगता हैं जेर न गिरने पर पशु चिकित्सक की सहायता लीजिए।
प्रसव के बाद जननांगों के बाहरी भाग, कोख आरै पूछ को गुनगुने साफ पानी से, जिसमें पोटेशियम परमैंगनेट के कुछ दाने पड़े हों या नीम की पत्ती के उबले हुए पानी से धो दीजिए। इसके पश्चात् पशु को गरम पेय जिसमें गुड़ का घोल, चोकर (500 ग्राम) या नमक पड़ा हो पीने के लिये दीजिए। यह पेय भैंस को दो दिन तक सुबह और शाम तक देते रहना चाहिए।
भैंस को एक-दो दिन तक गुड़ व जौ का दलिया भी खिलाना लाभदायक होगा। दो दिन के बाद धीरे-धीरे चोकर की मात्रा बढ़ाते हुए चूनी व खली आदि मिलाकर बना हुआ दाना थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खिलाना प्रारम्भ करें। 15-20 दिन बाद दूध की मात्रा के अनुसार दाना देना प्रारम्भ कर दें।
प्रसव के बाद भैंसों की देखभाल
ब्याने के पश्चात् भैंस ही नहीं बल्कि बछड़े य बछड़ी की देखरेख भी ठीक प्रकार से करें थोड़ी सी असावधानी से पशुओं में जनन सम्बंधी रोग उत्पन्न हो सकते हैं। प्रसव के बाद भैंस की देखरेख अच्छी तरह से होनी चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार का जनन रोग उत्पन्न न हो, दूध देने की क्षमता बनी रहे और पशु समय पर गर्मी में आकर गाभिन हो। आमतौर पर पशु को ब्याने के बाद 2-6 घंटे के अन्दर जेर गिरा देनी चाहिए। लेकिन कमजोर पशुओं में या बच्चेदानी में रोग होने और प्रसव के समय अधिक पीड़ा के कारण जेर बच्चेदानी से अलग नहीं हो पाती और यह बच्चेदानी के अन्दर ही रह जाती है। कभी-कभी जनन अंगों में किसी रुकावट के कारण जेर शरीर से बाहर नहीं गिरती और बच्चेदानी में ही सड़ती रहती है। यह विकार विटामिन-ए तथा आयोडीन की कमी के कारण भी हो सकता है।
यदि पशु ब्याने के बाद समय से जेर नहीं गिराए तो घबराना नहीं चाहिए आरै न ही किसी अनुभवहीन व्यक्ति से जेर बाहर निकलवानी चाहिए। इससे बच्चेदानी में जेर के टूटने से रक्त भी बह सकता हैं और हाथ डालने के कारण विषाणु बाहर से बच्चेदानी में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे बच्चेदानी में सूजन और मवाद पड़ सकती हैं इस कारण पशुओं का मदचक्र अनियमित होने के साथ-साथ पशु समय पर गर्मी में भी नहीं आते। ऐसे में पशुओं में गर्भधारण करने में बहुत समय लग जाता है। ऐसी दशा में योग्य पशु चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिये तथा उनके निर्देशानुसार ही पशु का उपचार कराना चाहिए।
अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष से सम्पर्क करे।
डॉ. नगेन्द्र कुमार त्रिपाठी, वैज्ञानिक पशुपालन (9452820333)