जैसे-जैसे भैंसे महंगी होती जा रही है, पशुपालकों का ध्यान छोटे पशुओं की तरफ जा रहा है। छोटे पशुओं को पालने में लागत काफी कम और मुनाफा होने की गुंजाइश कई गुना ज्यादा होती है। बरबरी बकरी की ऐसी ही एक प्रजाति है जिस पर रोजाना सिर्फ 6-7 रुपए का खर्च आता है और इससे साल में 10 हजार तक की कमाई हो सकती है।
बकरी पालने में झंझट तो कम हैं लेकिन इन्हें चराने ले जाना बहुत बड़ी मुसीबत। ऐसे लोग जिनके पास चराने की जगह न हो वो बकरियों से फायदा नहीं उठा पाते। लेकिन बारबरी एक ऐसी बकरी है, जिसे चराने का झंझट नहीं होता। यहां तक कि इसे शहरों में छतों पर भी पाला जा सकता है। इनकी दूसरी खूबी ये एक बार में तीन से पांच बच्चे देने की क्षमता रखती है। (देखिए ट्रेनिंग और पालन का वीडियो)
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बकरी पालने के भी किसानों ने कई आधुनिक तरीके अपनाए है। उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले से 32 किमी. दूर त्रिवेदीगंज ब्लॉक के मोहम्मदपुर गाँव में लगभग आधे एकड़ में स्टॉल फेड विधि से विवेक (35 वर्ष) और सदीप सिंह (27 वर्ष) बारबरी बकरी पालन कर रहे है और इससे लाखों कमा रहे हैं।
पिछले तीन वर्षों से बारबरी बकरी पालन कर रहे सदीप बताते हैं, “शुरू में हमारे पास बारबरी प्रजाति के दो बकरे और 21 बकरियां थे। आज करीब 60 बकरी और 40 बकरे हैं। बारबरी एक ऐसी बकरी है जिसको चराने की जरूरत नहीं होती। गाय-भैंस की तरह एक जगह पर बांधकर पाल सकते हैं।” यह फार्म उत्तर भारत में एलीवेटेड प्लास्टिक फ्लोरिंग से बना हुआ प्रथम फार्म हाउस है। इस फार्म को बनाने में पंद्रह लाख रुपए का खर्चा आया था।
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अपनी बात को जारी रखते हुए संदीप आगे कहते हैं, “अगर कोई व्यवसायिक रूप में बकरी पालन शुरू करना चाहते हैं तो बारबरी बकरी सबसे अच्छी होती है। जहां जमुनापारी 22 से 23 महीनें में, सिरोही 18 महीने में गाभिन होती है वहीं बरबरी मात्र 11 महीनें में ही तैयार हो जाती है। और इन बकरी से साल दो बार दो से तीन बच्चे ले सकते हैं। जबकि और बकरियों में ऐसा नहीं है।” वर्तमान समय में खत्म होते चारागाह और चारे की समस्या को देखते हुए यह विधि काफी सहायक हो सकती है।
पूरे विश्व में बकरियों की कुल 102 प्रजातियां उपलब्ध हैं, जिसमें से सिर्फ 20 प्रजातियां ही भारत में हैं। 19वीं पशुगणना के अनुसार भारत में 7.61 करोड़ बकरियां हैं। विलुप्त बारबरी बकरी प्रजाति की बकरी के बारे में विवेक सिंह बताते हैं, किसानों की अज्ञानता की वजह से बारबरी बकरी विलुप्त हो रही है। हमारा प्रयास है कि इस बकरी को किसान पालें। इसके लिए हम समय-समय पर ट्रेंनिग देते रहते हैं। अभी तक सैंकड़ों किसानों को इसकी ट्रेंनिग दे चुके हैं और 20 से भी ज्यादा ऐसे फार्म खुल चुके हैं जहां पर किसान स्टॅाल विधि से बरबरी पाल रहे हैं। धीर-धीरे किसान जागरूक हो रहे हैं।
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बारबरी बकरी मध्यम कद की होती है लेकिन इसका शरीर काफी गठीला होता है। शरीर पर छोटे-छोटे बाल होते हैं। शरीर पर सफेद रंग के साथ भूरा या सुनहरे रंग का धब्बा होता है। इसकी नाक बहुत ही छोटी और कान खड़े हुए रहते हैं। मैदान के गर्म इलाकों के अलावा इसे पहाड़ के ठंडे इलाकों में भी इसे आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की मादा का वजन 25 से 30 किलो ग्राम होता है। इसकी प्रजनन क्षमता भी काफी अच्छी होती है। इस नस्ल कि खासियत यह है कि यह साल में दो बार बच्चा देती है और 2 से 5 बच्चों को जन्म देती है, जिससे इनकी संख्या बहुत जल्दी बढ़ती है। इनके बच्चे करीब 10 से 12 महीनों में वयस्क होते है। यह बकरियां प्रतिदिन 1 किलो दूध देती हैं।
“अन्य बकरियों की अपेक्षा इनको बीमारियां बहुत कम होती है। ये बकरियां गर्मी, बरसात और सर्दी सभी तरह के वातावरण में आसानी से रह सकती है।” बकरी की खासियत के बारे में विवेक ने बताया।
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बकरियों में आने वाले खर्च के बारे में संदीप बताते हैं, ”एक दिन में एक बकरी पर 6 से 7 रुपए का खर्चा आता है। एक साल में एक बारबरी बकरी को तैयार करने में तीन हजार रुपए का खर्चा आता है और बाजार में इसकी कीमत करीब दस हजार रुपए तक है।”
दिल्ली स्थित एक प्राइवेट कंपनी में बकरी पालन सलाहकार इबने अली बताते हैं, “बारबरी बकरी ज्यादातर एटा, इटावा, आगरा और मैनपुरी में पाई जाती है इन्हीं जगहों से ये पूरे देश में सप्लाई होती है। इनकी प्रजनन क्षमता और अन्य बकरियों की अपेक्षा ज्यादा होती है। अगर कोई किसान एक जनवरी से 100 बारबरी बकरियों से एक फार्म शुरू करता है तो उसके फार्म में दिसंबर तक 250 बारबरी बकरियां होंगी।”
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इनके चारे-दाने के बारे में अली बताते हैं, गेहूं के भूसे, दलहन, उरद और ग्वार के अलावा पेड़ की पत्तियों को को इन बकरियों को खिलाया जा सकता है। इस बकरी की फीडिंग काफी सस्ती है ज्यादा खर्चा नहीं आता है। ईद, बकरीद होली जैसे कई त्यौहारों में इनकी मांग ज्यादा होती है। छोटे वर्ग के लोग है वो छोटे पशु ही खरीदते हैं।
इनके विलुप्त होने का कारण बताते हुए अली कहते हैं, “अफ्रीका में बरबरा एक जगह है। जहां से इसको लाया गया था तभी इसका नाम बरबरी रखा गया। किसानों में जानकारी के अभाव के कारण इन बकरियों को देसी बकरियों से क्रास करा दिया गया इसलिए ये विलुप्त हो गई। अभी इन पर ध्यान दिया जा रहा है। सरकार भी अगर प्राइवेट फार्म के साथ मिलकर काम करे तो इसको और बढ़ावा मिल सकता है।”
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स्टॅाल फेड विधि के बारे में
इस विधि से बकरी पालन अधिक दिनों तक चलता है। फ्लोर और पार्टिशन को इन्टर-लॉकिंग करके आसानी से कुछ दिनों में ही बकरी पालन फ्लोर तैयार किया जा सकता है। इस विधि से बकरी पालन करने से बाड़े की आसानी से धुलाई की जा सकती है।
16 मिमी होल से मैगनीं और यूरीन नीचे गिर जाता है और फ्लोर एकदम साफ-सुथरा रहता है। वाटर प्रूफ वर्जिन प्लास्टिक का प्रयोग जिससे बकरी को नमी और गर्मी से बचाता है। पानी गिरने पर भी कोई फिसलन नहीं होती।
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स्टॅाल फेड विधि से लाभ
- इस विधि में बकरियों में चराने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे उनका उर्जा व्यय कम होता है तथा वजन में वृद्धि तेजी से होती है।
- बकरियों को शेड में ही (जमीन पर या जमीन से उठा हुआ) ब्रीड, लिंग, उम्र तथा वजन के अनुसार अलग किया जाता है।
- बीजू बकरे और बकरियों को अलग-अलग बाड़ों रखा जाता है तथा उनको मेटिंग के समय ही बकरियों से मिलाया जाता है।
- चारे की मात्रा और गुणवत्ता को हर उम्र की बकरियों के अनुसार नियंत्रित किया जाता है।
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यहां होती हैं ट्रेंनिग
मथुरा स्थित केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान एक साल में चार बार प्रशिक्षण देता है। इच्छुक व्यक्ति इस फॉर्म को वेबसाइट पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं।
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