नई दिल्ली/लखनऊ। आप और हम भले ही देसी गाय के नाम पर गिर, साहीवाल, सिंधी, कंकरेज और राठी समेत कुछ ही गायों की नस्लों के बारे में जानते हों। लेकिन देश में 50 तरह की देसी गायों की नस्लें पाई जाती हैं। लगभग हर इलाके की अपनी विशेष नस्ल है, जिसमें कई खूबियां हैं।
केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मुताबिक भारत में 50 नस्लों की देसी गाय पाई जाती हैं। हालांकि बदलते महौल, जलवायु के चलते कुछ की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है तो कुछ हजार में सिमट गई हैं। कुछ गाय ऐसी भी हैं जिनके अस्तित्व पर खतरा भी नजर आ रहा है।
20वीं पशुगणना के अनुसार देश में सबसे ज्यादा संख्या गिर गायों (6857784) की है, दूसरे नंबर पर लाखिमी (6829484), तीसरे नंबर पर साहीवाल (5949674) चौथे नंबर पर बचौर (4345940) पांचवे नंबर पर हरियाणा (2757186) छठे पर कंकरेज (2215537) सातवें पर कोसली (1556674) आंठवें पर खिलारी (1299196) नवें नंबर पर राठी (1169828) और दसवें नंपर पर मालवी (1032968 ) है।
सबसे कम संख्या वाली गायों की बात करें तो बेलाही नस्ल की गायों की संख्या सबसे कम 5264 है। दूसरे नंबर पर पणिकुलम (13934) तीसरे नंबर पर पुंगानुर (13275) चौथे पर वेचुर (15181) और पांचवे नंबर पर डागरी (15000) है।
20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोवंशीय पशुओं की कुल संख्या 192.49 मिलियन है, जबकि मादा गायों की कुल संख्या 145.12 मिलियन है।
लोकसभा में पंजाब के खदूर साहिब लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस सांसद जसवीर सिंह के सवाल के जवाब देते हुए केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परशोत्तम रूपाला ने कहा, “केंद्र सरकार देश में देसी नस्ल की गायों के संरक्षण के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है। साल 2014 से गोकुल मिशन शुरु किया गया है। इस परियोजना के तहत गुणवत्ता वाले सांड़ों के सीमेन का उपयोग करके राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम चलाया गया है। जिसके तहत अब तक 2.37 करोड़ पशुओं को कवर किया गया है। 2.87 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान किए गए हैं और 1.5 करोड़ पशुपालक/किसान लाभान्वित हुए हैं।”
मंत्रालय के जवाब के अनुसार गिर, साहीवाल, थारपरकर, कंकरेज, हरियाणा, राठी नस्ल की गाय और मुर्रा, मेहसाणा, जाफरबादी, पंढारपुरी, नीर रवि जैसी भैंसों की नस्लों के सांड़ों और भैंसों का उच्च अनुवांशिक गुणता वाले सांड़ों का के उत्पादन के लिए संतति परीक्षण (फैमिली चक्र) वंशावली चयन का कार्यक्रम किया गया है।
देसी नस्लों के गो पशुओं (गोवंश) के साथ-साथ अन्य बोवाइन नस्लों के लिए सेक्स सोर्टेड सीमेन (बछिया अनिवार्य) का उत्पादन शुरु किया गया है। सेक्स सोर्टेड सीमेन 90 फीसदी सटीकता के साथ मादा बछियों के उत्पादन के महत्वपूर्ण रहा है।
2 कामधेनु केंद्र, 16 गोकुल ग्राम और एक गोवंश अनुसंधान संस्थान
पशुधन मंत्री ने बताया कि देसी नस्लों को संरक्षण के लिए देश में दो राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केंद्र स्थापित किए गए हैं और 16 गोकुल ग्रामों की स्थापना के लिए बजट जारी किया है, इन केंद्रों पर वैज्ञानिक और समग्र रुप से देसी गायों और भैंसों का संरक्षण और संवर्धन किया जाएगा। इसके साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआऱ) ने केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान की स्थापना की है जो उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित है। ये संस्थान देसी गोवंश के लिए अनुवांशिक सुधार कार्यक्रम चला रहा है।
देसी गाय की सबसे ज्यादा छुट्टा पशु
भारत में गोवंश खेती का आधार रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में खासकर मशीनीकरण के बाद ये गाय और गोवंश खासकर बछड़े और सांड किसानों के अनुपयोगी हो गए। कई राज्यों में छुट्टा पशुओं की बढ़ती संख्या किसानों के मुसीबत तो सरकारों के लिए भी परेशानी का सबब बनी हुई है। छुट्टा घूमने वाले गोवंश में वो गाय, बछड़े और सांड हैं जो उपयोगी न होने के चलते, उपयोग में न लिए जाने के चलते या फिर दूसरी समस्याओं के चलते छुट्टा छोड़ दिए गए हैँ। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार समेत कई राज्यों में ये सबसे है। लेकिन यूपी और एमपी के किसान सबसे ज्यादा परेशान है। यूपी के एमपी वाले बुंदेलखंड के 13 जिलों में इन छुट्टा गोवंश को अन्ना पशु कहा जाता है। गांव कनेक्शन गोवंश की उपयोगिता, छुट्टा पशुओं की समस्याओं पर लगातार स्टोरी करता रहा है। साल 2019 में कराए गए गांव कनेक्शन के 19 राज्यों में कराए गए राष्ट्रीय सर्वे में शामिल 18267 में से 20.5 फीसदी लोगों ने माना था कि उनके इलाके में छुट्टा पशुओं की समस्या है।
इन समस्याओं से निपटने के लिए यूपी गोशाला, गोपालन संबंधी कई योजनाएं चलाई गईं लेकिन जमीन पर किसानों की समस्याएं बरकरार हैं। जो इस विधानसभा चुनाव में कई क्षेत्रों में मुद्दा बन सकती हैं।