मध्य प्रदेश में दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई योजना की शुरूआत की जा रही है, जिसके तहत लघु सीमांत किसानों को मुर्रा भैंस उपलब्ध कराई जाएगी।
प्रदेश में लघु सीमांत किसानों से केवल 50 फीसदी राशि लेने के बाद दो मुर्रा भैंस उपलब्ध कराई जाएंगी। किसानों के लिए भैंस हरियाणा से मंगवाई जाएगी। अभी इस योजना की शुरूआत भोपाल मंडल के तीन जिलो रायसेन, विदिशा और सीहोर में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शूरू की जा रही है।
मध्य प्रदेश पशुधन विकास निगम के एमडी डॉ. हरिभान सिंह भदौरिया बताते हैं, “इस योजना में सामान्य वर्ग के किसानों को भैंस खरीदने के लिए 50 प्रतिशत राशि देनी होगी, बाकी बची राशि सरकार की तरफ से दी जाएगी। जबकि एससी-एसटी किसानों के लिए 75 प्रतिशत राशि सरकार देगी बाकी 25 प्रतिशत किसान को देना होगा।”
जब भी भैंसों की नस्लों की बात आती है, सबसे पहले मुर्रा भैंस का ही नाम आता है। ये सबसे अधिक दूध देने वाली नस्ल होती है। वैसे तो मुर्रा नस्ल की भैंस हरियाणा के रोहतक, हिसार व जींद और पंजाब के नाभा व पटियाला जिले में पायी जाती है, लेकिन अब तो कई राज्यों के पशुपालक मुर्रा भैंस को पालने लगे हैं। इसका रंग गहरा काला होता है और खुर और पूछ के निचले हिस्सों पर सफेद धब्बा पाया जाता है। इसकी मुड़ी हुई छोटी सींग होती है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 1750 से 1850 लीटर प्रति व्यात होती है। इसके दूध में वसा की मात्रा 9 प्रतिशत के करीब होती है।
पशुपालन विभाग के अनुसार दो भैंसों की कीमत करीब ढाई लाख रुपए होगी। भैंस को कृत्रिम गर्भाधान किया जाएगा, जिसके लिए सेक्स सार्टेड सीमन का उपयोग किया जाएगा, जो मुर्रा बुल का होगा। इसकी खासियत यह होगी कि इसके माध्यम से सिर्फ भैंस ही पैदा होंगी। इससे लाभार्थियों के यहां भैंस की संख्या बढ़ती जाएगी। इसलिए भैंस को पांच साल रखना अनिवार्य किया गया है। अगर तीन साल में भैंस मरती है तो किसान को दूसरी भैंस मिलेगी।
डॉ भदौरिया आगे बताते हैं, “इस योजना में किसानों को दो मुर्रा भैंस दी जाएगी। इसमें एक भैंस लगभग 5 महीने की गर्भवती रहेगी, जबकि दूसरी भैंस का करीब एक महीने का बच्चा रहेगा। यानी दो में से एक भैंस दूध देती हुई मिलेगी। भैंस का प्रेग्नेंसी पीरियड 10 माह का होता है। इस तरह से ऐसा क्रम बनेगा कि एक भैंस लगातार दूध देती रहेगी।”
लाभार्थी किसानों को भैंस को खिलाने के लिए छह महीने का दाना-चारा भी मिलेगा, ताकि उसे किसी तरह की समस्या न हो। इसमें इनका बीमा, ट्रांसपोर्ट और चारा भी शामिल है। इसमें से किसान को केवल 62,500 रुपए देना होंगे। शेष 1,87,500 रुपए की सब्सिडी मिलेगी।
मध्य प्रदेश भैंस में सबसे अधिक किसान भदावरी नस्ल की भैंस पालते हैं, यह यहां की मूल नस्ल है। दूसरे नंबर पर यहां पर मुर्रा नस्ल की भैंस ही हैं। इसके साथ ही यहां के कुछ इलाकों में जाफराबादी और मेहसाणा नस्ल की भी भैंसे पाली जाती हैं।
20वीं पशुधन गणना के आधार पर नस्ल के अनुसार पशुधन और पोल्ट्री रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में भदावरी नस्ल की 202556 भैंस हैं, जबकि मुर्रा नस्ल की 2,875,686 भैंस हैं। इसके साथ ही जाफराबादी नस्ल की 10,197 और मेहसाणा नस्ल की 387 भैंस हैं।
“अभी तक प्रदेश में ज्यादातर जो भी मुर्रा नस्ल की भैंस हैं, वो बड़ी प्राइवेट डेयरियों की हैं, लेकिन इस योजना से छोटे पशुपालकों को मुर्रा भैंस पालने का मौका मिलेगा, “डॉ. भदौरिया ने बताया।
20वीं पशुगणना के अनुसार, देश में भैंसों की आबादी 109.9 मिलियन है, जबकि अगर प्रदेश के हिसाब से बात करें तो सबसे अधिक भैंसों की संख्या उत्तर प्रदेश में है, उसके बाद राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेश आते हैं।
केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के अनुसार देश में भैंसों की मुर्रा, नीलीरावी, जाफराबादी, नागपुरी, पंढरपुरी, बन्नी, भदावरी, चिल्का, मेहसाणा, सुर्ती, तोड़ा, स्वैंप, तराई, जेरंगी, कालाहांडी, परालखेमुंडी, मंडल/गंजम, मराठवाड़ी, देशिला, असामी/मंगूस, संभलपुरी, कुट्टांड, धारावी, साउथ कन्नारा, सिकामीस और गोदावरी जैसी 26 तरह की नस्लें हैं। इनमें से 12 नस्ल की भैंसें रजिस्टर्ड नस्लें हैं, जोकि ज्यादा दूध देती हैं। इनमें मुर्रा, नीलीरावी, जाफराबादी, नागपुरी, पंढरपुरी, बन्नी, भदावरी, चिल्का, मेहसाणा, सुर्ती, तोड़ा, जैसी भैंस शामिल हैं।