मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 606 किमी दूर पन्नी पथरिया गाँव में आजकल गोबर बेचने वालों की भीड़ लगी रहती है; कोई बाइक पर तो कोई साइकिल पर कई लोग ट्रैक्टर ट्राली में गोबर लादकर पहुँच रहे हैं।
मऊगंज जिले के दुग्मा कुर्मियान गाँव के राम उजागर पटेल भी उन्हीं में से एक हैं और अब तक तीन ट्राली गोबर बेच चुके हैं। उन्हें तो जब पता चला कि गोबर भी बेचकर भी पैसा कमाया जा सकता है तो उन्हें भी पहले विश्वास नहीं हुआ, लेकिन अब अपनी छह भैंस और एक गाय का गोबर बेच देते हैं।
राम उजागर पटेल गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “कलेक्टर साहब ने हमारे गाँव में मीटिंग लेकर कहा था कि सड़कों पर घूमने वाले गौवंश में से एक एक गोवंश हम हमारे घर में बांधेंगे; तो सड़क पर घूमने वाले गोवंश के मामले में कमी आएगी; अब तो हमने भी गोबर बेचना शुरू कर दिया है।”
वो आगे कहते हैं, “हमें तो कमाई का जरिया मिल गया है, योजना काफी अच्छी है; लेकिन कुछ लोग अब भी जागरूक नहीं हैं, उन्हें थोड़ा वक्त लगेगा और जल्द ही सड़कों पर घूमने वाले आवारा गौवंश की संख्या में कमी आएगी।”
मऊगंज जिले के कलेक्टर अजय श्रीवास्तव के प्रयासों से यहाँ के पन्नी पथरिया गाँव में गोबर से लकड़ी बनाने की यूनिट लगाई गई है। जहाँ पर दो रुपए प्रति किलो के हिसाब से गोबर खरीदा जाता है। 26 जनवरी को इस यूनिट की शुरुआत की गई तब से 40 से 50 टन गोबर खरीदा जा चुका है।
गोबर से लकड़ी बनाने वाली निजी कंपनी के संचालक राजू नोनहटा इस प्रयास के बारे में गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “इस काम की शुरुआत हमने छोटे स्तर पर यूपी में शुरू की थी; मैं एमपी का ही रहने वाला हूँ, लोगों ने मुझे बताया कि यहाँ पर भी सड़कों पर घूमने वाले गोवंश से लोग परेशान हैं। तब मैं यहाँ कलेक्टर साहब से मिला और उनसे इस काम के बारे में बताया, उन्होंने मेरी पूरी मदद का आश्वासन दिया।”
बस यहीं से पन्नी पथरिया गाँव में इस नई पहल की शुरुआत हुई, अब तो हर दिन आसपास के गाँव के किसान यहाँ गोबर लेकर पहुँच रहे हैं। यूनिट शुरू करने से पहले राजू ने कई गाँवों में दो महीने तक सर्वे किया, जिसमें उन्हें पता चला कि आवारा पशुओं की संख्या हजारों में हैं। साथ ही लोगों के पास अपने भी पशु हैं।
राजू आगे बताते हैं, “जब शुरुआत हुई तो पहले दिन सिर्फ एक ट्राली गोबर आया जिसका वजन दो टन के आसपास था; अब तो हर दिन 6 टन के करीब गोबर आ जाता है।”
गोबर खरीदने से पहले देखा जाता है कि कहीं उसमें मिट्टी, कंकड़ और पत्थर तो नहीं मिला हुआ है। कुछ किसान तो बाइक पर 50 से 100 किलो गोबर लेकर पहुँच रहे हैं। अभी तक 30 किसान ऐसे हैं जो रोजाना गोबर लेकर पहुँच रहे हैं।
“कई ऐसे भी किसान हैं, जिनके पास ज़्यादा जानवर हैं और ज़्यादा गोबर होता है उनके यहाँ हम अपनी गाड़ी भेज देते हैं; 26 जनवरी से अब तक 40-50 टन गोबर खरीदकर उससे 15 टन के लगभग लकड़ी तैयार हो गई है। ” रवि ने आगे बताया।
अगर ये योजना मऊ में सफल होती है तो रवि इसे प्रदेश के दूसरे जिलों में भी शुरु करेंगे। अभी यहाँ पर 18 लोगों को रोजगार मिला हुआ है। उत्तराखंड और नेपाल तक इन लकड़ियों को भेजा जा रहा है।
मऊगंज के कलेक्टर अजय श्रीवास्तव गाँव कनेक्शन से बताते हैं,” किसानों से गोबर एक निजी कंपनी खरीद रही है, जिसका हम समर्थन कर रहे हैं; कंपनी समय पर किसानों को भुगतान भी कर देती है।”
वो आगे समझाते हैं, “एक पशु अनुमानित 10 किलो के लगभग गोबर करता है, अगर किसी गोशाला को ही हम आधार माने और गोशाला में ही सौ पशु हैं; तो प्रतिदिन उसके यहाँ एक हज़ार किलो गोबर निकलेगा; और इसको दो में गुणा करेंगे तो दो हज़ार प्रतिदिन हो गए, एक महीने के 60 हज़ार हो गए और साल भर के 7 लाख 20 हज़ार हो गए। और ये टैक्स फ्री इनकम है; जिसमें आपको कोई भी इनपुट नहीं देना है, पशु चाहे दूध न दे रहा हो तो भी गोबर तो करेगा ही बस यही आपको मुनाफा होगा।”
गोबर में कोयले का पाउडर मिलाकर ये लकड़ियाँ बनाई जाती हैं, भट्ठियों के साथ ही अंतिम संस्कार में भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। राजू के अनुसार गोबर और कोयले से तैयार होने वाली लकड़ी समान्य लकड़ी से 4 गुना ज़्यादा ज्वलनशील होती है।
रकरी गाँव के किसान नरेंद्र सिंह सेंगर भी गोबर बेच रहे हैं। उनके पास छह पशु हैं और अब तक 60 क्विंटल गोबर बेच चुके हैं। वो गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “पहले सिर्फ दूध बेचकर कमाई होती थी, अब तो गोबर भी बेच रहे हैं; ऐसे ही फायदा होता रहेगा तो लोग अपने पशुओं को नहीं छोड़ेंगे।”
इससे पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने भी गोबर खरीदने की शुरुआत की थी, जिससे समूह की महिलाएँ वर्मी कम्पोस्ट बनाती हैं।