उत्तर प्रदेश के लखनऊ के अमेठी गाँव के बाहर एक बड़ी सी फूंस की झोपड़ी में मुकेश कुमार बटन मशरूम की खेती करते हैं। ऐसा नहीं है कि मुकेश शुरू से ही मशरूम की खेती करना चाहते थे या फिर खेती से जुड़ना चाहते थे।
मुकेश कुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मैंने सोचा कि पढाई के साथ कुछ ऐसा किया जाए, जिससे घर का खर्चा भी चले और मेरी पढ़ाई भी पूरी हो जाए तो मैंने देखा अगर खेती में कुछ नया किया जाए तो मुनाफा हो सकता है।”
वो आगे कहते हैं, “मैंने कई चीजें इंटरनेट पर खोजी, फिर मशरूम की खेती के बारे में पता चला। मालूम हुआ कि कृषि विज्ञान केंद्र लखनऊ पर मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी जाती है। मैंने वहाँ साल 2016 में ट्रेनिंग ली और लगभग 70 क्विंटल भूसे का कंपोस्ट बनाया और खेती शुरू कर दी।”
“उस बार मेरी 90 हज़ार की लागत लगी और 70 हज़ार रुपए का मुनाफा हुआ, “मुकेश ने आगे कहा।
ऐसा नहीं था कि मुकेश को शुरू में कोई परेशानी नहीं हुई, जब गाँव में मशरूम की खेती शुरू की तो गाँव के लोगों के लिए ये बिल्कुल नया था। मुकेश कहते हैं, “सबको यही लगा कि मैं ये क्या कर रहा हूँ, किसी को मशरूम के बारे में नहीं पता था, सभी ने यही कहा कि मुझे भी कहीं नौकरी करनी चाहिए।”
लेकिन पहले साल 70 हज़ार की कमाई होने के बाद मुकेश रुके नहीं दूसरे साल लगभग 120 क्विंटल भूसे से कंपोस्ट बनाया और उन्हें लगभग दो लाख 80 हज़ार का मुनाफ़ा हुआ।
एक साल अच्छा प्रॉफिट होने के बाद मुकेश के अन्दर आत्मविश्वास आ गया। वो बताते हैं, “दूसरे साल मैंने 120 क्विंटल भूसे का कम्पोस्ट बनाया और फिर तीसरे साल हमने दो झोपड़ी लगायी और 200 क्विंटल भूसे का कंपोस्ट बनाया, जिससे लगभग 72 क्विंटल मशरूम का उत्पादन हुआ और चार लाख 80 हज़ार का नेट प्रॉफिट हुआ।”
विश्व में मशरूम की खेती हज़ारों वर्षों से की जा रही है, जबकि भारत में मशरूम के उत्पादन का इतिहास लगभग तीन दशक पुराना है। भारत में 10-12 वर्षों से मशरूम के उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। इस समय हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना व्यापारिक स्तर पर मशरूम की खेती करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य है।
मशरूम की खेती के साथ मुकेश दूसरे किसानों को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण देते हैं, जिसमें लखनऊ ही नहीं यूपी के दूसरे ज़िलों के किसान भी सीखने आते हैं। “दूर-दूर से युवा और किसान मुझसे मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेने आते हैं, सितंबर महीने में जब मशरूम की खेती की शुरुआत होती है, तभी उन्हें बुलाता हूँ, जिससे उन्हें प्रैक्टिकली भी दिखा सकूँ।” मुकेश साल में लगभग 25-30 लोगों को ट्रेनिंग देते हैं।
मुकेश उन्हें मशरूम की खेती का पूरी प्रक्रिया समझाते हैं। मुकेश कहते हैं, “दूर-दूर से लोग आते हैं, जिन्हें पाँच दिनों की ट्रेनिंग देता हूँ। लेकिन उन्हें लगातार नहीं बुलाता हूँ। बीच बीच में जैसे प्रैक्टिकल हो रहा है तो जिस दिन हमारा कम्पोस्ट बन रहा है, उस दिन बुलाता हूँ, ऐसे ही अलग-अलग प्रक्रिया के बारे में समझाते हैं।”
मुकेश के अनुसार जब से उन्होंने मशरूम की खेती की शुरुआत की है तब से उनकी आर्थिक परिस्थिति बहुत अच्छी हो गई है। वो कहते हैं, “मैं अगर किसी की प्राइवेट जाँब करता तो 10 से 12 घंटे काम करता और 8 से 10 हज़ार रुपए ही मिलते,आज की डेट में ये है कि मैं मजदूरों को पैसे देता हूँ।”