गोबर से ईको फ्रेंडली दिए और मूर्तियां बनाकर महिलाओं को घर बैठे मिल रहा रोजगार

इस दीवाली बाजार में आपको गोबर से बने दिए और गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां मिल सकती हैं, समूह की महिलाएं इसे पूरी से ईको फ्रेंडली दिए और मूर्तियां बना रही हैं।
#Cow Dung

सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। गाय के गोबर से खाद और बायो गैस बनने के बारे में तो सभी ने सुना होगा, लेकिन इस बार दिवाली के लिए गोबर से दिए और मूर्तियां भी बनाए जा रहीं हैं, जिन्हें स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बना रही हैं।

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में ये पहल शुरू हुई है, लखनऊ स्थित कान्हा उपवन में महिलाएं एक लाख दिए बना रहीं हैं तो सीतापुर में कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से महिलाओं को गोबर के दिए, मूर्तियां और धूपबत्ती बनाना सिखाया जा रहा है।

गाँवों में जिस तरह से लोग छुट्टा गायों से परेशान हैं, ऐसी पहल से अनुपयोगी गायों से भी कमाई की जा सकती है। सीतापुर में समूह की महिलाओं को दिए बनाना सीखा रही कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया, सीतापुर की वैज्ञानिक डॉ सौरभ बताती हैं, “आजकल सभी लोग छुट्टा जानवरों से परेशान हैं, लेकिन खेती में गोबर भी बहुत आवश्यकता होती है। आप देख सकते हैं गाँवों में लोगों के दरवाजों से कैसे धीरे-धीरे गोवंशीय पशु कम होते जा रहे हैं, क्योंकि पहले ईंधन के लिए गोबर की जरूरत पड़ती थी, लेकिन अब उसपर लोग नहीं आश्रित हैं।”

वो आगे कहती हैं, “तो जब ये चीजें बचेंगी ही नहीं जो हमारे खेती के लिए गोबर चाहिए अगर जानवर ही नहीं रहेंगे तो हम जो किस तरह से अपनी मृदा को उपजाऊ बना पाएंगे। इसी चीज को आगे बढ़ाने के लिए हमने ये मुहिम चलायी है, जिसमें हम समूह की महिलाओं और किशोरियों को हम गौ आधारित उत्पाद बनाना सीखा रहे हैं। जैसे इस समय दीवाली आ रही है तो हम गाय के गोबर से बनी ईको फ्रेंडली दिए, गाय के गोबर से बनी मूर्तियां, धूप बत्ती बनाना सीखा रहे हैं। इससे महिलाओं को भी काम मिलेगा और गौवंश का महत्व एक बार फिर बढ़ेगा, जिससे लोग एक बार फिर उन्हें घर पर रखना शुरू करेंगे।”

अभी तक प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां पूजा के बाद लोग नदियों में फेक देते हैं, जिससे प्रदूषण भी होता है, लेकिन गोबर की बनी मूर्तियां पूरी तरह से ईकोफ्रेंडली होती हैं। इन्हें बनाने में ऐसा कुछ भी नहीं डाला जाता, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचे।

मूर्तियों और दिए बनाने के प्रोसेस के बारे में डॉ सौरभ बताती हैं, “दिए बनाने के गाय के गोबर का पाउडर लेते हैं, उसमे मुल्तानी मिट्टी मिलाएंगे और उसमें पहले से बना हुआ प्रीमिक्स डालते हैं। इसको पानी से अच्छी तरह गूंथ लेते हैं, गूंथने के बाद जैसे हम मक्के की रोटी को हम अच्छी तरह गूंथने हैं, उसी तरह से इसे अच्छी तरह से मसलकर गूंथेंगे। हम देखते हैं कि जब अच्छी तरह से आटा गूंथ जाता है तो हमारे दिए और मूर्तियों के सांचे में डालकर सुखाने के लिए रख देते हैं। आप चाहे तो इसमें रंग भी डाल सकते हैं, लेकिन हमारा प्रयास है क्योंकि हम ईको फ्रेंडली की बात कर रहे हैं तो इसमें बाहर से कुछ नहीं डालते हैं। गोबर के रंग के दिए और मूर्तियां बनाते हैं। एक किलो मिक्स से 100 से ज्यादा दिए बन सकते हैं एक दिया बनाने में 90 से 80 पैसे लागत आती है और इससे अच्छे दाम में मूर्तियां बिक जाती हैं।”

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