बिहार: भारत-नेपाल सीमा के गांवों में अचानक आई बाढ़, गंडक नदी में बाढ़ की चेतावनी

इस साल बिहार में समय से पहले बाढ़ आ गई। पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज और सारण जिले अलर्ट पर हैं। बिहार भारत का सर्वाधिक बाढ़ संभावित राज्य है। भारत-नेपाल सीमा से लगे उत्तर बिहार के गांवों में एक साल में 66 बार तक बाढ़ आती है।
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बिहार और उसके ऊपर स्थित हिमालयी देश नेपाल में भारी बारिश के कारण उत्तरी बिहार के कुछ हिस्सों में अचानक से बाढ़ आ गई। बाढ़ ने भारत-नेपाल सीमा स्थित गांवों में तबाही मचा दी है। उत्तरी बिहार के पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज और सारण जिलों में बाढ़ की चेतावनी भी जारी की गई है।

गंडक नदी के लिए भी अलर्ट जारी किया गया है। गंडक गंगा की सहायक नदी है जो नेपाल से निकलती है और बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में प्रवेश करती है। हिमालय से निकलने वाली नदियां पहले से ही बाढ़ के पानी से उफान पर हैं।

उत्तरी बिहार में बाढ़ की स्थिति और खराब होने की संभावना है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अगले 2-3 दिनों तक इन इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी जारी की है, जो बाढ़ की स्थिति को और बदतर कर सकती है। 

इलाके में काम कर रहे जल विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल राज्य में बाढ़ काफी पहले आ गई है। मेघ पाईन अभियान के प्रबंध ट्रस्टी एकलव्य प्रसाद ने गांव कनेक्शन को बताया, “आम तौर पर बाढ़ जुलाई महीने से आना शुरू होती है। लेकिन इस साल यह जल्दी आ गई।” उनका ये सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट पिछले 15 सालों से उत्तरी बिहार सहित भारत के पूर्वी हिस्सों में पानी और स्वच्छता के मुद्दों पर काम कर रहा है।

आधी रात में आई बाढ़

बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में 14 और 15 जून को आधी रात में ग्रामीणों की अचानक आंखें खुलीं तो उन्होंने देखा कि उनके गांव और घरों में बाढ़ का पानी घुस आया है। सीमा के आर-पार बहने वाली और गंडक की एक सहायक नदी मसान उफान पर थी। कुछ गांवों में पानी कमर तक आ गया था और तेज प्रवाह के साथ बह रहा था। यह मिट्टी और फूस से बने कच्चे घरों को बहा कर ले गया। रात के समय ग्रामीण घंटों तक बाढ़ के पानी में फंसे रहे। महिलाएं और बच्चे मदद के लिए चिल्ला रहे थे।

पश्चिमी चंपारण में रामनगर का इनारबरवा गांव बाढ़ प्रभावित गांवों में से एक है। वहां के निवासी उज्वल कुमार गांव कनेक्शन को बताते हैं “मसान नदी का पानी गांव के अंदर तक आ गया था और कई घरों में भर गया. कम से कम 15 घर पूरी तरह ध्वस्त हो गए। लोगों के समान और अनाज का नुकसान हुआ।” उनके अनुसार अचानक से आई इस बाढ़ से पड़ोसी गांव सरहवा सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।

14 जून और 15 जून की तड़के सेरहवा गांव में अचानक आई बाढ़। सभी तस्वीरें: अरेंजमेंट

कुमार शिकायती लहजे में कहते हैं, “यह इस साल की पहली बाढ़ नहीं है। हम पिछले तीन हफ्तों के भीतर इस तरह अचानक आई बाढ़ का दो बार सामना कर चुके हैं। लेकिन अभी तक कोई भी अधिकारी दौरा करने नहीं आया।” वह कहते हैं, “नेपाल से आने वाली नदी का पानी पूरी ताकत से नीचे की तरफ आता है और जो कुछ उसके रास्ते में आता है, उसे बहाकर ले जाता है। इससे सीमा से लगे सैकड़ों गांवों और बस्तियां प्रभावित होती हैं।”

इस बीच, पश्चिमी चंपारण के जिला कलेक्टर कुंदन कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, “यहां भारी बारिश हुई थी। स्थिति बिल्कुल सामान्य है। यह अचानक आने वाली बाढ़ नहीं, बल्कि जलभराव की एक समस्या है।” वह कहते हैं कि 156 मिलिलीटर बारिश हुई थी। उनके अनुसार, “बाढ़ बचाव दल और गश्त करने वाली टीमें वहां मौजूद हैं। इसके अलावा एनडीआरएफ की दो और एसडीआरएफ की एक टीम भी काम कर रही है। हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और गंडक को लेकर चिंतित हैं।”

ग्रामीण अभी तक डर के साये में जी रहे हैं, क्योंकि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने बिहार के पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सिवान, सारण और गोपालगंज जिलों में 21 जून तक भारी बारिश, आंधी और बिजली गिरने की चेतावनी जारी की है।

16 जून को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण और गोपालगंज के जिलाधिकारियों को बाढ़ से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाने और गंडक नदी के तट पर बने बांध और तटबंधों को किसी भी तरह के नुकसान से बचाने के दिशा-निर्देश जारी किए।

बार-बार आने वाली बाढ़

रामनगर से करीब 20 किलोमीटर पूर्वोत्तर में, पश्चिमी चंपारण का गोंडाब्लॉक भी बाढ़ से प्रभावित हुआ है। वहां रूपालिया गांव की निवासी बिनीता कुमारी ने गांव कनेक्शन को बताया, “14 जून को भारी बारिश हुई और 15 जून तक चलती रही। जब तक बारिश हुई, उन दो दिनों तक हमारे घरों में पानी भरा रहा। ऐसे में समय में खाना पकाने के अलावा साफ-सफाई भी एक समस्या बन जाती है। हम या तो बाढ़ के पानी के घटने का इंतजार करें या फिर खुले में शौच के लिए जाएं।”

वह बताती हैं कि छगराहा और अमावा नदियां पूरे उफान पर हैं। ये दोनों बूढ़ी गंडक नदी की छोटी सहायक नदियां और बूढ़ी गंडक गंगा की एक और सहायक नदी है। कुमारी कहती हैं, “नेपाल के जंगलों से निकलने वाली नदियां भारत-नेपाल सीमा पर बसे गांवों में बार-बार आने वाली बाढ़ का कारण हैं।” उनका गांव रूपालिया इन्हीं बाढ़ प्रभावित गांवों में से एक है।

घंटों तक ग्रामीण बाढ़ के पानी में फंसे रहे और महिलाएं और बच्चे मदद की गुहार लगाते रहे।

बिहार भारत का सर्वाधिक बाढ़ संभावित राज्य है। और राज्य में होने वाली भारी बरसात ही बाढ़ आने का एकमात्र कारण नहीं है। नेपाल से निकलने वाली कई हिमालयी नदियां उत्तरी बिहार में दाखिल होती हैं और इसे भारत का सबसे ज्यादा बाढ़ संभावित क्षेत्र बनाती हैं। नदियों से आने वाली बाढ़ मॉनसून में ही आती है, जबकि भारत-नेपाल सीमा पर बसे गांवों में अचानक आने वाली बाढ़ पूरे साल आती रहती है।

मेघ पाइन अभियान के एक व्यापक अध्ययन के अनुसार, उत्तरी बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित गांवों में एक साल में 66 बार बाढ़ आती है। वहां कम से कम 148 छोटी और मौसमी नदियां हैं जो नेपाल से उत्तरी बिहार में आती है। ये नदियां सालभर अचानक आने वाली बाढ़ का कारण बनती हैं, जिससे स्थानीय लोगों को बार-बार नुकसान होता है।

हाल ही में, अचानक आने वाली बाढ़ का कारण यही छोटी और मौसमी सहायक नदियां है।

भारत-नेपाल सीमा पर अचानक आने वाली बाढ़ का संदर्भ समझाते हुए मेघ पाईन अभियान से जुड़े प्रसाद गांव कनेक्शन को बताते हैं कि उपलब्ध जानकारी के अनुसार पश्चिमी चंपारण दो प्रकार की बाढ़ से जूझ रहा है।

भारत-नेपाल सीमा के पास के गांवों में अचानक आई बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान होता है।

वह कहते हैं, “पहली गंडक नदी की बाढ़ और दूसरी मसान नदी से अचानक आने वाली बाढ़। मसान एक छोटी और मौसमी नदी है। यह सीमा पार से आती है। नेपाल के तराई क्षेत्र में जब भी बारिश होती है, तो भौगोलिक परिस्थितियों के कारण बारिश का पानी बिहार के मैदानी इलाकों की तरफ बहने लगता है। यह एक प्राकृतिक घटना है। इसका ये मतलब कतई नहीं है कि नेपाल अपना पानी बिहार की तरफ छोड़ रहा है।”

प्रसाद के अनुसार, सरकार मसान जैसी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण नदियों की उपेक्षा करती रही है और सिर्फ मानसून के मौसम में ही इन पर पर ध्यान दिया जाता है।

उज्ज्वल कुमार भी इसी तरह की चिंता जताते हुए कहते हैं, “गंडक नदी में बाढ़ पहले पेज की खबर है लेकिन मसान में आने वाली अचानक बाढ़ को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता।” उनके अनुसार, बाढ़ की यह स्थिति, मॉनसून के मौसम यानी अगस्त से लेकर सितंबर माह तक बनी रहती है।

क्या इस साल बाढ़ जल्दी आई है?

इस साल 4 मई को, आपदा प्रबंधन विभाग बिहार ने जिला स्तर पर आगामी मॉनसून के लिए बाढ़ की तैयारियों के लिए विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए। अगले दिन 5 मई को, बिहार सरकार ने भी अपने जल संसाधन विभाग द्वारा तैयार बाढ़ नियंत्रण आदेश जारी कर दिया। दोनों दिशा-निर्देशों में राज्य के बाढ़ प्रभावित जिलों में सभी बाढ़ पूर्व तैयारियों को पूरा करने की आखिरी तारीख 15 जून तय की गई है। आपदा प्रबंधन विभाग के दिशा-निर्देश खतरों से निपटने के उपायों को सक्रिय करते हैं।

प्रसाद बताते हैं, “बाढ़ नियंत्रण आदेश 2021 के अनुसार निगरानी और सभी तटबंधों की मरम्मत सहित जैसी तैयारियां 15 जून तक पूरी हो जानी चाहिए। हालांकि हमने पश्चिमी चंपारण जिले में बाढ़ और नदी में आने वाली बाढ़ दोनों की खबरें सुनी है।”

भारत-नेपाल सीमा के पास के गांवों में अचानक आई बाढ़ से कई घर ढह गए हैं।

उन्होंने बताया कि कैसे बाढ़ से निपटने की सभी तैयारियां तटबंधों से जुड़ी होती हैं और उनमें अचानक से आने वाली बाढ़ के संबंध में कुछ खास नहीं होता। प्रसाद कहते हैं, “अचानक से आने वाली बाढ़ से निपटने के लिए उन्होंने क्या किया है? यह जीवन से जुड़ा मामला है। हमारे जिले में सीमा के आर-पार बहने वाली मसान जैसी असंख्य छोटी मौसमी नदियां हैं।”

उन्होंने कहा, “14-15 जून को फिर से बाढ़ जैसी समस्या का आना दर्शाता है कि इस मुद्दे को हल करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है, यह जानते हैं हुए भी कि बाढ़ की यह समस्या मॉनसून के मौसम तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे साल चलने वाली घटना है।”

कुमार समेत स्थानीय लोगों का आरोप है कि अचानक आने वाली बाढ़ को लेकर पहले से कोई तैयारी नहीं की गई। उनके अनुसार, बाढ़ प्रबंधन योजनाओं में इस तरह की बाढ़ का जिक्र तक नहीं होता है, क्योंकि सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार किसी क्षेत्र को तभी बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया जाता है, जब वह क्षेत्र कम से कम 48 घंटे तक तीन फिट गहरे पानी में डूबा रहे।

कुमार कहते हैं, “भारत-नेपाल सीमा पर अचानक आई बाढ़ की स्थिति में, बाढ़ का पानी तेजी से नीचे आता है, तबाही मचाता है और 4-5 घंटे में बहकर चला जाता है। यदि सरकार की बाढ़ की परिभाषा मानी जाए, तो हम कभी बाढ़ का सामना करते ही नहीं है, भले ही अचानक आने वाली बाढ़ से होने वाला नुकसान नदी की बाढ़ से ज्यादा हो।” वह कहते हैं “सरकार यह नहीं समझती कि अगर अचानक से आने वाली यह बाढ़ 48 घंटे तक बनी रही तो इन गांवों में प्रलय आ जाएगी।”

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अनुवाद- संघप्रिया मौर्य

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