दुनिया भर में मशहूर पुष्कर मेले में सबसे ज़्यादा आकर्षण का केन्द्र राजस्थान का जहाज़ कहा जाने वाला ऊंट होता है, लेकिन इस बार न तो पुष्कर मेले में ऊंटों का जमावड़ा पहले जैसे दिखा और न ही ऊंट पालकों को कोई फायदा हुआ।
राजस्थान के अजमेर ज़िले की पुष्कर तहसील में इस बार 11 से 19 नवंबर तक राज्य के सबसे बड़े पशु मेले का आयोजन किया गया। पिछले साल यानी 2020 में कोरोना महामारी के कारण मेले को स्थगित कर दिया गया था, जिससे पशु पालकों को काफी नुकसान हुआ था।
पिछले साल तो राजस्थान के कई ज़िलों और राज्य के बाहर से कई पशुपालक पुष्कर में मेला स्थल पहुंच भी गए थे क्योंकि उन तक मेले के स्थगन की सूचना समय पर नहीं पहुंची थी। लेकिन इस बार मेला तो लगा लेकिन ऊंट बेचने आए लोगों के हाथ मायूसी ही लगी। जबकि ऊंटों से ज्यादा घोड़ों की बिक्री हुई।
अजमेर के पास के एक गाँव से मेले में ऊंट बेचने के लिए लाने वाले उदय सिंह काफ़ी मायूस नज़र आए। उनके पास 7 ऊंट थे, मेला खत्म होने से एक दिन पहले 18 नवंबर को उनमें 3 अभी भी ख़रीदार की राह देख रहे थे, जबकि एक दिन बाद मेला खत्म होने वाला था।
पुष्कर हर साल लगने वाला मेला है जोकि कार्तिक महीने में लगता है। यह भारत के सबसे बड़े ऊंट, घोड़े और पशु मेले में से एक है। पशुओं के व्यापार के अलावा, यह हिंदुओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ है, जो पुष्कर झील में आते हैं।
गाँव कनेक्शन से बात करते हुए उदय सिंह कहते हैं, “कोरोना के बाद से मेले में व्यापारी कम आए हैं, पिछली बार के मुक़ाबले इस बार पशु बहुत कम आए हैं, इस बार का मेला डावांडोल ही चला है।”
पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस साल पुष्कर पशु मेले में 2,327 ऊंट लाए गए हैं जिसमें से सिर्फ़ 426 ऊंट ही बिक पाए हैं जो की ऊंट बिक्री का सिर्फ़ 18 प्रतिशत है। साल 2019 में यहां पर 3300 आए थे। 2001 में मेले में 15,460 ऊंट खरीदे और बेचे गए थे। 2011 में यह संख्या घटकर केवल 8,200 ऊंट रह गई थी।
वहीं, राजस्थान के बाहर से 381 समेत 2291 घोड़े आए। इनमें से 645 घोड़े-घोड़ी बिके। 645 में से 540 घोड़े राजस्थान के बाहर से आए व्यापारियों ने खरीदे। यानी ऊंटों के मुकाबले 120 अश्व ज्यादा बिके।
ऊंट पालक उदय सिंह की चिंता और भी हैं, वो ऊंटों को अन्य राज्यों में नहीं बेच सकते, 2015 में सरकार राजस्थान ऊंट (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रव्रजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम लेकर आई जिसमें ऊंट के वध करने और उसे बाहर ले जाकर ख़रीदने-बेचने पर पाबंदी लगा दी गई थी।
उदय सिंह कहते हैं, “पहले ऊंट बाहर जाते थे जिससे हर कोई ऊंट पालता था, ऊंटों को अपने-अपने क्षेत्रों में बंद करके रख दिया है, हम जैसलमेर- बाड़मेर से जब ऊंट लेकर आते हैं तो हमें भी रास्ते में बहुत परेशान किया जाता है, कई बार रोका जाता है। ऊंटो के बाहर ले जाने के लिए गाड़ी नहीं भरने दी जाती, जिसके कारण हमें ऊंटो के साथ पैदल ही सफ़र करना पड़ता है”
मेले में मौजूद पुष्कर से लगभग 200 किमी दूर हनुमानगढ़ से ऊंट बेचने आए राजकुमार की भी चिंता उदय सिंह से कुछ अलग नहीं है।
राजकुमार के अनुसार वो पिछले 15-16 साल से मेले में आ रहे हैं। राजकुमार बताते हैं, “इस बार व्यापारी भी बहुत कम आए और जानवर भी कम आए। पहले पंजाब, हरियाणा से भी व्यापारी आते थे, लेकिन अब वो आते ही नहीं हैं।”
वो आगे कहते हैं, “सरकार को चाहिए कि हम राजस्थान के लोगों पर पाबंदी न लगाए, कई बार रोक लेते हैं कि कहां जा रहे हो, कहां के रहने वाले, आईडी दिखाओ, हमें परेशान किया जाता है। कम से कम हमें तो न परेशान करें।”
क्या है राजस्थान का ऊंट संरक्षण क़ानून?
2014 में ऊंट को राजस्थान का राज्य पशु घोषित किया गया था और उसके एक साल बाद यानी 2015 में राजस्थान सरकार “राजस्थान ऊंट (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रव्रजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम” लेकर आई जिसका उद्देश्य ऊंटो के वध को रोकने और राज्य से बाहर उनकी ख़रीद फ़रोख़्त पर रोक लगा कर ऊंटो का संरक्षण करना था ।
अधिनियम ऊंटो के राज्य से बाहर निर्यात पर पाबंदी लगाता है, लेकिन बाद में एक सक्षम प्राधिकार को यह अधिकार दिया गया की वो ऊंटो के राज्य से बाहर निर्यात के लिए “परमिट” जारी करें। लेकिन कई ऊंट पालकों का मानना है कि यह परमिट प्राप्त करने में कई महीने का समय लग जाता है ।
इस साल आई एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 2012 से 2019 के बीच ऊंटो की संख्या में 35 प्रतिशत की कमी हुई है ।
2012 में हुई पशुधन गणना के आंकड़ों को देखें तो राजस्थान में ऊंटो की संख्या 3 लाख 25 हज़ार थी जो की 2019 में घट कर 2 लाख 13 हज़ार रह गई। वहीं अगर पिछले तीस सालों के आंकड़े देखें तो राजस्थान में ऊंटों की संख्या में लगभग 85 प्रतिशत की कमी हुई है।