मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)। भारत में नदियों की पूजा की जाती है और उन्हें ‘मां’ कहकर बुलाया जाता है। लेकिन मुजफ्फरनगर के रतनपुरी गांव के 43 वर्षीय सुनील शर्मा के लिए काली नदी बीमारी और मौत का दूसरा नाम है। उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा, “मेरे माता-पिता की कैंसर से मौत हो गई और अब मैं भी इस बीमारी से जूझ रहा हूं।”
सुनील ने काली नदी की ओर इशारा करते हुए कहा, ” यह नदी हमारे लिए परेशानियों का सबब बन चुकी है। इसके रसायनों से भरा प्रदूषित पानी हमें बीमार कर रहाहै। जिन भी रास्तों से होकर ये गुजरती हैं वहां के सभी गांव इससे पीड़ित हैं।” इस काली नदी का पानी इतना काला और बदबूदार है कि कुछ मिनटों के लिए भी इसके किनारे पर खड़ा होना मुश्किल हो जाता है।
वह आगे कहते हैं, “इस इलाके में कई कारखाने हैं जो अपने कचरे को सीधे नदी में बहा देते हैं। वहीं मेरठ और मुजफ्फरनगर में एक पेपर फैक्ट्री और कई अन्य उद्योगों द्वारा दूषित पानी बिना किसी रोक-टोक के सीधे नदी में गिराया जा रहा है। यह पानी इतना जहरीला है कि इसे पीने के कुछ ही घंटों के अंदर जानवरों की मौत हो जाती है।” सुनील ने 2015 में, अपने पिता ओम प्रकाश शर्मा को पेट के कैंसर की वजह से खो दिया था और अगले साल उनकी मां कविता शर्मा की भी इसी बीमारी से मौत हो गई थी।
उत्तर प्रदेश में, काली नदी ने मेरठ और मुजफ्फरनगर जिलों के कम से कम 80 गांवों में लोगों का जनजीवन तबाह कर दिया है। ये लोग पिछले कुछ दशकों से नदी में बढ़ते प्रदूषण के खिलाफ शिकायत करने और इससे कैंसर जैसी होने वाली भयावह बीमारियों के प्रति आगाह करने के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। उनके अनुसार सेहत पर पड़ रहे बुरे असर के बावजूद वे इस जहर को पीने के लिए मजबूर हैं। स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि इन गांवों के तकरीबन 2 लाख 50,000 से ज्यादा निवासियों की दुर्दशा से अनजान नहीं हैं।
एमएलए विक्रम सिंह सैनी, ने गांव कनेक्शन को बताया, “मैं मानता हूं कि काली नदी के पानी की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं है। उस वजह से लोगों ने मेरे खिलाफ विरोध भी किया है। लेकिन इस बार, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि नदी की सफाई पर काम किया जाएगा।” सैनी खतौली निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा सदस्य हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में मुजफ्फरनगर का ये रतनपुरी गांव भी आता है।
जब 20 जनवरी को विधायक सैनी ने अपने पैतृक गांव मानववरपुर का दौरा किया तो स्थानीय लोगों ने उन्हें खदेड़ दिया। इलाके में नदी की सफाई को लेकर निर्वाचित प्रतिनिधि की विफलता के खिलाफ ग्रामीणों में काफी गुस्सा है।
रतनपुरी गांव निवासी मोनू कुमार सोम ने गांव कनेक्शन को बताया, “राजनेता हर पांच साल में एक बार हमारे पास आते हैं। वे सिर्फ भीड़ इकट्ठा करने के लिए नदी की बात करते हैं और जैसे ही भीड़ इकट्ठी होती है, वह तस्वीरें खिचवाते हैं और बस चले जाते हैं। वोयह देखने के लिए कभी वापस नहीं आते कि चीजों में कुछ सुधार हुआ भी है या नहीं। अब हम तंग आ चुके हैं।”
काली का अभिशाप
काली नदी उत्तराखंड में हिमालय की ऊपरी शिवालिक श्रेणी से निकलती है और लगभग 350 किलोमीटर लंबी है। यह सहारनपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर और बागपत जिलों से गुजरते हुए उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में बहती है। बागपत में, यह हिंडन नदी से मिलती है, और दिल्ली के पास यमुना में मिलती है। काली और हिंडन दोनों ही अत्यधिक प्रदूषित नदियाँ हैं।
मुजफ्फरनगर और मेरठ के 80 गांव काली नदी के गंदे पानी से प्रभावित हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले मेरठ के एक गैर-सरकारी संगठन नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागी ने गांव कनेक्शन को बताया कि नदी पर डाली गई एक नज़र आपको यह बताने के लिए काफी है कि पानी कितना गंदा है। ये इस्तेमाल के लायक नहीं है।
त्यागी ने कहा, “अब कोई काली का पानी नहीं पीता। लेकिन समस्या यह है कि नदी ने आसपास के इलाकों में भूजल भंडार को भी प्रदूषित कर दिया है। जिन इलाकों से यह नदी निकलती है उन गांवों से कैंसर की कई घटनाओं की जानकारी मिली है।”
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) के क्षेत्र अधिकारी अंकित सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, “हम अच्छी तरह से जानते हैं कि नदी बहुत ज्यादा प्रदूषित है।हम इस पर काम कर रहे हैं। कागज, चीनी और रसायनों जैसे उत्पादों का निर्माण करने वाले 24 कारखाने हैं जो अपने कचरे को नदी में बहा रहे हैं। हमने इन कारखानों के खिलाफ भी कार्रवाई की है।”
गांव कनेक्शन द्वारा नदी की गुणवत्ता के आंकड़ों के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा कि काली नदी में जहरीले तत्वों का आकलन करने के लिए एक टीम का गठन किया गया है और नमूने जांच प्रयोगशालाओं को भेजे गए हैं। अंकित सिंह ने कहा, “परीक्षणों के परिणाम मिलने के बाद ही हम यह बता पाएंगे कि पानी में कौन से जहरीले रसायन मौजूद हैं।”
उन्होंने कहा, “मेरे कार्यकाल के दौरान ही इन कारखानों से कुल 9,517,500 रुपये जुर्माने के रूप में वसूले गए हैं।” एनजीटी मामले पर यहां कुछ जानकारीः
एसपीसीबी के अधिकारी ने यह भी बताया कि मुजफ्फरनगर जिले में सीवेज अपशिष्ट उपचार संयंत्र क्षमता से कम है, जिस कारण अनुपचारित अपशिष्टों को सीधे नदी में छोड़ा जा रहा है औऱ पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है।
अंकित सिंह कहते हैं, “वर्तमान में क्रियाशील संयंत्र की क्षमता 32.5एमएलडी (प्रति दिन मिलियन लीटर) है जो वास्तविक मांग के साथ बहुत कम है। एक नया सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है।” वह आगे कहते हैं, “केमिकल युक्त पानी को साफ करने के लिए दो और ट्रीटमेंट प्लांट भी स्थापित किए जा रहे हैं। एक बार ऐसा हो जाने पर नदी के पानी की गुणवत्ता में काफी सुधार होगा।”
गांव कनेक्शन ने जिले के स्थानीय जल निगम के अधिकारियों से पानी की गुणवत्ता के आंकड़े मांगे लेकिन उन्होंने इसे साझा करने से इनकार कर दिया।
हर बूंद में बीमारी
काली नदी के किनारे बसे गांवों में रहने वाले ग्रामीणों को इन आश्वासनों पर बहुत कम भरोसा है। वे हर चुनाव में अधिकारियों और नेताओं से नदी को साफ करने का वादासुनते हैं। लेकिन ये वादे अभी तक हकीकत में नहीं बदले हैं।
इन 80 गांवों के पीने के पानी का मुख्य स्रोत भूजल है और निवासियों का दावा है कि काली नदी के प्रदूषण ने उनके भूजल को भी दूषित कर दिया है।
46 साल के विजेंद्र सिंह रतनपुती गांव में सुनीलशर्मा के घर के नजदीक रहते हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया “गांव नदी से मुश्किल से पचास मीटर की दूरी पर है। नदी के प्रदूषण के कारण भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है। इसके चलते जमीन से निकलने वाला पानी भी अशुद्धियों से भरा होता है। “
वह कहते हैं, “आपको गांव के लगभग हर घर में कोई न कोई त्वचा के रोग या फिर पेट की समस्याओं से पीड़ित मिल जाएगा। यहां कई लोग कैंसर से मर भी चुके हैं।”
सुनील शर्मा ने कहा, “जो लोग खर्च कर सकते हैं उन्होंने अपने घरों में वाटरप्यूरीफायर लगा लिया है। लेकिन हम जैसे कई लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है।”
उनके अनुसार काली नदी के जहरीले पानी से होने वाली कैंसर जैसी बीमारियों का कोई सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन जो दिख रहा है,वो इस बड़ी सी समस्या की सिर्फ एक छोटी सी झलक है।
सुनील शर्मा ने कहा, “यहां के लोग गरीब किसान हैं जिनके पास इस बीमारी (कैंसर) की महंगी जांच और लंबे इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। मैंने अपना परीक्षण इसलिए कराया क्योंकि मैंअपने माता-पिता को इस डरावनी बीमारी से खो चुका हूं।”
अपने पुराने दिनों के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं: ” मेरे बचपन में, नदी का पानी बहुत साफ हुआ करता था। किनारे पर गिरा एक सिक्का ऊपर से साफ दिखाई दे जाता था। लेकिन पिछले पंद्रह सालों से पानी काला हो रहा है।” उन्होंने बताया कि पिछले आठ सालों में उनके गांव रतनपुरी में पानी की समस्या से कई लोगों की मौत हुई है। उनके अनुसार, “जब गांव वाले डॉक्टर के पास जाते हैं, तो उन्हें बताया जाता है कि गंदा पानी पीने के कारण उनकी सेहत खराब हो रही है।
गांव कनेक्शन ने मुजफ्फरनगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी महावीर सिंह फौजदार से काली नदी के प्रदूषित पानी से होने वाले बीमारियों के बारे में जानकारी लेने के लिए संपर्क किया। लेकिनउन्होंने इस बारे में खुद कुछ कहने से इंकार करते हुए, अपने जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) से जवाब देने के लिए कहा।
सीएमओ के जन संपर्क अधिकारी शमशेर आलम ने बताया कि काली नदी के किनारे स्थित मुजफ्फरनगर के 36 गांवों में जांच किए गए 3,462 लोगों में से कुल 571 लोगों में, काली नदी के प्रदूषित पानी के वजह से होने वाली बीमारियों के लक्षण पाए गए थे।
उन्होंने आगे कहा, “हम लोगों में बीमारियों कीजांच के लिए समय-समय पर चिकित्सा शिविर आयोजित कराते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से, कोविड-19 महामारी के चलते ये शिविर नहीं लगाए जा सके।”उन्होंने बताया कि “2019 में आयोजित एक शिविर में, कुल 3,462 लोगों की जांच की गई थी। इनमें से 19 में कैंसर के लक्षण पाए गए, 172 लोगों को सांस की बीमारी थी, जबकि 380 लोग त्वचा की बीमारियों से पीड़ित थे।”
काली नदी के दूषित पानी ने मवेशियों को भी नहीं बख्शा है। रतनपुरी गांव के रहने वाले 22 साल के आकाश सोम ने गांव कनेक्शन को बताया कि नदी का पानी पीने से पशुओं की मौत होने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
वह कहते हैं, “नदी के गंदे पानी के कारण गाय और भैंसों की मौत होती रही है। अभी पिछले हफ्ते, नदी से पानी पीने के कुछ घंटों बाद ही एक भेड़ की मौत हो गई थी। ”
आकाश ने आगे बताया, “जब भी कभी हवा नदी से गांव की ओर चलती है, चारों ओर बदबू फैल जाती है। बदबू इतनी ज्यादा होती है कि ऐसे माहौल में खाना तक मुश्किल हो जाता है। मुझे याद है, गांव में आने वाले नेताओं ने नदी को साफ करने का वादा किया था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। ”
गांव के एक अन्य किसान विजेंद्र सिंह ने कहा कि इससे खेती को भी नुकसान हो रहा है। प्रदूषित भूजल से खेतों की सिंचाई करनी पड़ती है, जिससे खेत बर्बाद हो रहे है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, ” कई बार तो फसल बुवाई के कुछ दिनों में ही मर जाती है।”
स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए पुरस्कार!
काली नदी के दूषित पानी के कारण जहां लोग बीमार हो रहे हैं, वहीं मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बाल्यान कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि जिले में साफ पानी उपलब्ध कराने के लिए जमीनी स्तर पर काम किया जा रहा है। इस महीने की शुरुआत में 7 जनवरी को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा घोषित राष्ट्रीय जल पुरस्कार 2022,में मुजफ्फरनगर को उत्तर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ जिले के रूप में सम्मानित किया गया था।
वह कहते है, “हमने जिले में पानी की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए बहुत काम किया है। हमें 2020 में सर्वश्रेष्ठ जिला पुरस्कार भी मिला। यह जिले में आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के हमारे संकल्प को दर्शाता है।’
जल जीवन मिशन द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मुजफ्फरनगर में केवल 27.22 प्रतिशत ग्रामीण घरों में नल के पानी के कनेक्शन हैं, जबकि ऐसे 26.03 प्रतिशत घरों में मेरठ में यह सुविधा है।
काली नदी में भारी धातु
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम दोनों के पास नदी के पानी की गुणवत्ता पर आंकड़े नहीं हैं। लेकिन दूसरी तरफ ऐसे कई शोध अध्ययन हैं जो काली नदी में मौजूद जहरीले रसायनों और धातुओं की ओर इशारा करते हैं।
22 फरवरी, 2016 को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फिशरीज एंड एक्वाटिकस्टडीज में एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ था। इसका शीर्षक था- डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ हैवीमैटल्स इन वॉटर, सेडिमेंट्स एंड फिशटिस्यु (हेटेरोपनेस्टिस फॉसिलिस) इन काली रिवर ऑफ वेस्ट्रन यूपी, इंडिया। (पश्चिमी यूपी की काली नदी में पानी, तलछट और मछली के ऊतकों (हेटेरोपनेस्टिस फॉसिलिस) में भारी धातुओं का वितरण) इसके अनुसार काली नदी का पानी क्रोमियम, सीसा और कैडमियम जैसी कार्सिनोजेनिक भारी धातुओं से प्रदूषित था (तालिका देखें)।
नीर फाउंडेशन के रमन त्यागी के अनुसार, पानी में कैडमियम और लेड जैसे प्रदूषकों का उच्च स्तर उस क्षेत्र में कैंसर की उच्च घटनाओं पर सीधा प्रभाव डाल सकता है।
साथ ही, नीर फाउंडेशन द्वारा किए गए एक शोध Grasping for Breath के अनुसार, इस पानी में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अधिकतम अनुमेय सीमा से कई गुना अधिक लेड का स्तर पाया गया। मुजफ्फरनगर जिले के चंदनमाल में एक स्थान पर, सीसा का स्तर डब्ल्यूएचओ की अनुमेय सीमा से 34 गुना अधिक था।
समाजवादी पार्टी के मुजफ्फरनगर के एक नेता अनिल कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि काली नदी एक चुनावी मुद्दा है और ग्रामीण नागरिक उसी के अनुसार मतदान करेंगे।
वह कहते हैं, ‘उन्होंने (भाजपा नेताओं ने) यहां के गंदे पानी के संकट को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया। जनता इससे अच्छी तरह वाकिफ है। सत्ता में आने के बाद मेरी कोशिश काली नदी में गंदे पानी की समस्या का सफलतापूर्वक समाधान करने की होगी।
लेखक- प्रत्यक्ष श्रीवास्तव