जब महेश घरे ने अपनी मां को खोया तो वह केवल सात साल के थे। मां के जाने के साथ, उन्होंने और भी बहुत कुछ खो दिया था। जहां उनके पिता ने दुख कम करने के लिए अपने आपको पूरी तरह से काम तले दबा लिया, तो वहीं महेश का ज्यादातर समय मोबाइल या टीवी के साथ बीतता।
एक होनहार और मिलनसार बच्चा जिसे अपने परिवार के साथ बाहर जाना और फैंसी ड्रेस प्रतियोगिताओं में भाग लेना पसंद था, धीरे-धीरे एक वैरागी बन गया। उसके पास अपने विचार या भावनाओं को साझा करने के लिए कोई नहीं था। जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उसने अपने भीतर के खालीपन को भरने के लिए दोस्तों की तरफ देखना शुरू कर दिया। उनका साथ और लगाव उसे अच्छा लगने लगा था।
महेश और उनके दोस्तों का काम मौज-मस्ती करना, यहां-वहां से स्क्रैप इकट्ठा करना और उन्हें बेचकर पैसा कमाना था। उन्हें जो भी पैसा मिलता, उससे वो छोटी-छोटी पार्टियां करते रहते। कुछ बड़े लड़के इन पार्टियों में शराब लेकर आते हैं, जल्द ही, महेश और उसके दोस्तों ने भी इसे पीना शुरु कर दिया।
महेश याद करते हैं कि कैसे उन्होंने पहली बार एक शराब की दुकान से 30 मिलीलीटर शराब की बोतल खरीदी और उसमें एक लीटर पानी मिलाया था ताकि चारों लोग उसे आसानी से पी सकें।
शराब की राह पर चलना भले ही दोस्तों के साथ हंसी-मजाक, मस्ती या खेल के तौर पर शुरू हुआ हो, लेकिन इसकी लत लग जाए तो जिंदगी को हाथ से निकलते हुए देर नहीं लगती। महेश घरे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।
सच्चे अनुभव पर आधारित महेश की कहानी ‘मेरी प्यारी ज़िंदगी’ की एक सीरीज का हिस्सा है, जो भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफॉर्म, गांव कनेक्शन और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्षेत्रिय कार्यालय (WHO SEARO) के बीच एक सहयोग है। यह शराब के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है।
सीरीज में ऑडियो और वीडियो कहानियां में, गांव कनेक्शन के संस्थापक नीलेश मिसरा ने अपनी आवाज दी है। जो अपनी कहानियों के जरिए देश के युवाओं में शराब के कारण शरीर और मन पर पड़ने वाले खतरों से आगाह करते रहे हैं।
‘मेरी प्यारी जिंदगी’ सीरीज की हर कहानी हमारे घरों, पड़ोस, हमारे स्कूल- कॉलेजों और ऑफिस में रोजाना होने वाली घटनाओं से जुड़ी है।
महेश की इस कहानी को दीपक हीरा रंगनाथ ने लिखा है और मिसरा ने इसे अपने अंदाज में सुनाया है।
महेश को अब शराब की आदत हो चली थी। वह अपने दोस्तों के साथ सुबह 11.20 बजे से शराब पीना शुरू कर देता था। ये सिलसिला पूरे दिन ऐसे ही चलता रहता। शराब की तरफ उठाया गया छोटा सा कदम उन्हें अब गलत कामों की तरफ ले जाने लगा था। यहां उनकी कमाई ज्यादा थी। जिससे कई बार एक सप्ताह में वो सब मिलकर 20,000 रुपये तक कमा लेते थे। उनकी संगत में कुछ अमीर घरों से आए लड़के भी थे। जो खूब शराब पीते और मस्ती करते। महेश भी इनके साथ रहकर वैसा ही करने लगा था।
जब वह 22 साल को हुआ तो कल्पना नाम की लड़की से उसकी शादी कर दी गई। कुछ दिन तक तो उसकी शराब पीने की आदत छुपी रही। लेकिन ज्यादा दिन तक ऐसा चलने वाला नहीं था। एक दिन वह शराब पीकर घर आया तो कल्पना ने उससे खूब झगड़ा किया। फिर महेश ने उससे वादा किया कि वह बदल जाएगा और शराब पीना छोड़ देगा। लेकिन उसने ऐसा कभी नहीं किया।
महेश याद करते हुए कहते हैं, “दरअसल, मैं सच को ज्यादा लंबे समय तक छिपा कर नहीं रख सकता था। जब मैंने अपनी पत्नी के सामने दारु पी तो मुझे बड़ी राहत मिली। मानों मेरे कंधों से एक भार उतर गया हो।” नतीजा यह हुआ कि अब वह बिना किसी डर के खुलेआम शराब पीने लगा। और चीजें काबू से बाहर होती चली गईं।
महेश दिन-भर नशे में धुत रहने लगा था। कभी-कभी तो वह सुबह 4.30 बजे से शराब पीने लगता। पैसा खत्म हो गया था। वह अपने पिता से पैसे मांगता और मना करने पर उनसे झगड़ा करता था। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर बेचने शुरू कर दिए।
उनकी आवाज़ में अब पछतावा है। वह याद करते हैं कि कैसे उनकी पत्नी बिना किसी जेवर पहने पारिवारिक शादियों और समारोहों में शामिल हुई थी।
महेश एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे। उन्होंने बताया, ” शराब ने मेरे शरीर को खोखला कर दिया था।” काम पर भी नशे में ही रहता था। लेकिन कभी तो ये खत्म होना ही था। एक दिन जब वह एक भारी बैरल को हिलाने में मदद कर रहे थे, तो उन्होंने अपनी पकड़ खो दी और दुर्घटना में एक उंगली कट गई।
महेश कहते हैं, ” इस घटना ने मुझे होश में लाने का काम किया। जो अभी तक कोई नहीं कर पाया था। मैंने सोचा कि शायद यह मेरे लिए भगवान की ओर से एक चेतावनी थी। वह आखिरी दिन था जब मैंने शराब को छुआ था।”
इसी बीच महेश के पिता का भी देहांत हो गया। महेश ने अपनी भर्राती आवाज में कहा, “वह मुझे सुधरा हुआ देखकर बहुत खुश होते।”
उन्होंने कहा कि वह अपनी सभी गलतियों के लिए पश्चाताप करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। ” मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताता हूं। मैं ज्यादा जिम्मेदार हो गया हूं। और मैंने अपनी पत्नी से छीने गए सभी गहनों को वापस ला दिया है। “
कल्पना हंसते हुए कहती है, “उसे बुरा लगता है कि जब वह पीता था तो उसने मुझे कुछ भी खरीदकर नहीं दिया। लेकिन अब सब बदल गया है। भले ही मैंने उससे कुछ न मांगा हो, लेकिन उसने मेरे लिए गहने खरीदे हैं। कई बार तो वह मेरे लिए फूल भी लाता है। “
महेश ने शराब के नशे में अपने कितने कीमती साल गंवा दिए, अपने पिता को दुख पहुंचाया, जो अब अपने सुधरे हुए बेटे को देखने के लिए जिंदा नहीं है। उन्हें अपनी युवा पत्नी के दिल तोड़ने का भी पछतावा है। अब वह सारा ध्यान अपने परिवार और उस स्टोर पर लगा रहे हैं, जो उनकी आमदनी का जरिया है।
महेश का सौभाग्य था कि उन्होंने सही समय पर अपने रास्ते बदल लिए और मजबूत इरादों के साथ शराब को अपने जीवन से निकाल दिया। खुद को और अपनी पत्नी व बच्चों को अनकहे दुख से बचा लिया। लेकिन, सभी लोगों के जीवन का अंत सुखद नहीं होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक डरावनी तस्वीर पेश करते हुए कहा है कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के कारण 2030 तक भारत को 1.03 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान होगा। शराब के सेवन से बहुत सारी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जुड़ी हुई हैं। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार, लगभग 15 करोड़ भारतीयों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की जरूरत है। लेकिन वास्तव में सिर्फ 3 करोड़ लोग ही इन्हें पाने की कोशिश करते हैं।