हजारीबाग(झारखंड)। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार जिसका भाई-बहन बेसब्री से इंतजार करते हैं, लेकिन इस बार कुछ भाइयों के हाथों में ‘सखी दीदी’ की बनाई ईको-फ्रेंडली राखियां होंगी। हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड में कई महिला समूहों ने राखी बनाई है।
परासी पंचायत स्थित ‘भवानी आजीविका सखी मंडल’ की अध्यक्ष अंजू देवी के समूह में 14 महिलाएं हैं। राखी बनाने में पांच सदस्य सक्रिय हैं जबकि अन्य पांच ने राखी बेचने का जिम्मा संभाला है। पिछले चार साल से उनका समूह काफी काम कर रहा है।
अंजू देवी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “अब तक हमने 250 से भी ज्यादा राखी बना ली है। इनमें 100 से ज्यादा राखी बिक चुकी है। सारी राखी बिक जाने पर हमें पांच हजार रुपया फायदा होने की उम्मीद है।” अंजू के समूह में राखी के साथ ही मंगलसूत्र, चूड़ी और नमकीन जैसे खाद्य पदार्थ भी बनाए जाते हैं।
ये तो सिर्फ एक समूह है, झारखंड राज्य के आठ जिलों के 75 आजीविका समूहों से जुड़ी लगभग 550 महिलाओं ने अब तक 25000 से ज्यादा राखियां बना ली हैं। इस बार इन्हें लाखों का व्यवसाय होने की उम्मीद है। झारखण्ड के विभिन्न जिलों के ‘पलाश मार्ट’ में सखी दीदी की जैविक राखी उपलब्ध हैं। यह बेहद आकर्षक और किफायती हैं। इस बार आजादी का अमृत महोत्सव होने के कारण ‘तिरंगा’ थीम पर बनी राखियों का भी काफी आकर्षण है।
रांची के हेहल स्थित ‘पलाश मार्ट’ में राखी बेचने का जिम्मा अरूणा देवी पर है। वह कमड़े (रातू) स्थित ‘रोशनी आजीविका सखी मंडल’ से जुड़ी हैं। वह खरीददारों को हरेक राखी की खासियत बताते हुए कहती हैं, “वैसे तो इस राखी का दाम चालीस रुपया है। लेकिन इसको बनाने में जो मेहनत लगी है, उसे देखते हुए एक सौ रुपया भी दाम लगाना कम होगा।”
अरूणा देवी चावल से बनी जैविक राखियों को लेकर भी काफी उत्साहित हैं। वो गाँव कनेक्शन से कहती हैं, “शहर की चकाचौंध से निकलकर देखें तो गाँव की महिलाओं के हाथ से बनी इन राखियों का काफी महत्व है। बहुत से लोग आकर इसे खरीद रहे हैं। तिरंगा वाली राखी भी खूब पसंद आ रही है। इस बार आजादी के 75 साल के कारण तिरंगा थीम की राखी की मांग है।”
झारखंड में ग्रामीण महिलाओं का आजीविका अभियान काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। रक्षाबंधन की तैयारी काफी पहले शुरू कर दी गई। सखी मंडल की महिलाएं राखी निर्माण कर रही हैं। रेशम के धागे से बनी राखी इस बार आकर्षण का केंद्र है। झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी ने इन्हें राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है। दीदी की राखी की ब्रांडिंग और मार्केटिंग ‘पलाश’ ब्रांड के तहत हो रही है।
झारखंड के आठ जिलों में रांची, हजारीबाग, दुमका, गिरिडीह, रामगढ़, बोकारो, धनबाद और लोहरदगा में यह प्रयोग हो रहा है। लगभग 75 स्वयं सहायता समूहों की 550 से अधिक महिलाएं राखी बनाने व बिक्री से सीधे तौर पर जुड़कर आय बढ़ा रही हैं। राखी निर्माण की इस पहल से दीदियों की अतिरिक्त आमदनी हो रही है।
अब तक सखी मंडल की प्रशिक्षित दीदियों द्वारा 25,000 से अधिक आकर्षक राखियों का निर्माण किया जा चुका है। इन जिलों में पलाश मार्ट में प्रदर्शनी लगाई गई है। बिक्री काउंटर के माध्यम से जिला व प्रखण्ड स्तर पर बिक्री की जा रही है।
बनाती हैं इको-फ्रेंडली राखी
सखी मंडल की महिलाओं द्वारा राखी बनाने में जैविक सामग्री का इस्तेमाल हो रहा है। हाथ से बनी राखियां आकर्षण का केंद्र बन रही हैं। इन महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण के तहत जैविक सामग्री का उपयोग करते हुए 20-25 प्रकार की राखी बनाने की कला सिखाई गई है। अब अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए महिलाएं जैविक सामग्री जैसे – धान, चावल, मौली धागा, सूती धागा, रेशम धागा, मोती, बुरादा, हल्दी, आलता आदि का उपयोग कर विभिन्न डिजाइन की जैविक राखियां तैयार कर रही हैं।
गोविंदपुर (धनबाद) में भी सखी मंडल को राखी निर्माण का प्रशिक्षण मिला। सखी मंडल की अध्यक्ष पूनम सहाय के अनुसार लगभग 55 महिलाओं ने मिलकर अब तक पांच हजार से भी ज्यादा राखियां बना ली हैं। उनकी राखियों के प्रति लोगों में काफी लगाव देखा जा रहा है। पांच रुपये से लेकर पचास रुपये तक की राखी बनाई गई है। लगभग साठ हजार रुपये की आमदनी होने की उम्मीद है।
गोविंदपुर सखी मंडल की सचिव पूनम सहाय के अनुसार जेएसएलपीएस ने इन राखियों की बिक्री के लिए जिला स्तर पर पलाश काउंटर उपलब्ध कराया है। हमारी राखियों की काफी मांग है और हमें ऐसा करना काफी अच्छा लग रहा है।
हजारीबाग सखी मंडल ने कपड़े की राखियां तैयार की है। यह काफी लुभावनी एवं आकर्षक हैं। उसमें स्माइली राखी, इमोजी राखी, भैया-भाभी राखी, रुद्राक्ष राखी, चाकलेट राखी आदि प्रमुख हैं। हस्तनिर्मित राखियों की कीमत दस रुपये से 280 रुपये तक के रेंज में उपलब्ध है।
हजारीबाग जिले के इचाक प्रखण्ड की कुटुमसुकरी गाँव की राधा सखी मंडल की ललिता देवी कहती हैं- “एक राखी बनाने में 16-17 रुपये की लागत लगी है। 20-25 रुपये में राखी बिक्री होने पर अच्छी आमदनी हो जाएगी। इस बार सफलता मिली तो अगले साल बड़े पैमाने पर राखी बनाकर बेचना चाहती हूँ, जिससे और अधिक आमदनी हो सके।”
चास (बोकारो) जिला के बांसगोड़ा पूर्वी में एसएचजी की 15 महिलाएं राखी बना रही हैं। इन दीदियों ने अब तक 8000 राखियाँ बना ली है। पलाश मार्ट में इनकी बिक्री की जा रही है।
हेसबातु की मेहनाज़ बेगम कहती हैं- “हमारे समूह ने अब तक 8000 राखी बना ली है। हमें लगभग 25 से 30 हज़ार रुपये तक का मुनाफे की उम्मीद है। आजीविका मिशन वालों ने हमें राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया और अब पलाश मार्ट के जरिये इन्हें बेचना भी आसान है।”
इचाक (हजारीबाग) स्थित ‘लक्ष्मी महिला स्वयंसहायता समूह’ की सदस्य गीता देवी कहती हैं- “मैं पहली बार राखी बना रही हूँ। धनबाद से आई टीम ने हमें राखी और चूड़ी बनाने का प्रशिक्षण दिया। लगभग तीन साल पहले मैं यह सोचकर महिला समूह से जुड़ी थी कि इससे हमारी आजीविका बढ़ेगी। ऐसा सचमुच हो गया। अभी राखी से पंद्रह सौ तक का मुनाफा हो चुका है। छह हजार तक फायदा होने की उम्मीद है।”
‘पलाश मार्ट’ में उपलब्ध हैं राखियां
राजधानी के हेहल स्थित ‘पलाश मार्ट’ में एसएचजी दीदी की फैंसी राखियां बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। वाजिब कीमत पर फैन्सी एवं आकर्षक राखियों की बिक्री हो रही है। इससे राज्य की ग्रामीण महिलाओं की आमदनी में इजाफा होगा।
ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत जेएसएलपीएस ने सखी मंडलों के उत्पादों की बिक्री का शानदार प्रयोग किया है। इन उत्पादों को “पलाश ब्रांड” ट्रेड मार्क के जरिए नई पहचान दी गई है। इसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सितंबर 2020 में लांच किया था। इन उत्पादों की बिक्री के लिए जिले और प्रखंडों में ‘पलाश’ मार्ट भी बनाए जा रहे हैं। ‘पलाश’ ब्रांड के अंतर्गत 29 चिह्नित कृषि एवं गैर कृषि आधारित उत्पादों को गुणवता के तय मानकों के आधार पर बाज़ार में उचित मूल्य पर उपलब्ध कराया गया है।
गत माह ग्रामीण विकास विभाग की समीक्षा बैठक के अनुसार राज्य में पलाश ब्रांड के सभी उत्पादों की बिक्री आठ करोड़ तक पहुंच चुकी है। विभाग का लक्ष्य इसे 50 करोड़ तक पहुंचाने का है। सभी जिलों में पलाश ब्रांड के ऑउटलेट खुल चुके हैं। अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन मार्केटिंग चैनल के जरिये भी पलाश ब्रांड की बिक्री हो रही है।