सतना (मध्य प्रदेश)। अब तक आप मिट्टी, फिटकरी, प्लास्टर ऑफ पेरिस आदि की गणेश मूर्तियां बनाने के बारे में देख व सुन चुके हैं, लेकिन एक शख्स ऐसे भी हैं जो गणपति की काठ यानी लकड़ी में गणेश प्रतिमाएं गढ़ते हैं। वह यह काम एक दो दिन नहीं बल्कि रोजाना करते हैं।
सतना के शिवेंद्र सिंह परिहार 17 सालों से लकड़ी के टुकड़ों में गणपति की प्रतिमा उकेरने का काम कर रहे हैं। 61 वर्षीय काठ के कलाकार शिवेंद्र सिेह परिहार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, ” हर दिन सुबह 6:30 बजे तक नित्यक्रिया से फुर्सत होकर गणेश जी की प्रतिमा बनाने का काम शुरू कर देता हूं। यह काम करीब 09:15 तक चलता है। इसके बाद ऑफिस जाना होता है।”
शिवेंद्र सिंह परिहार मूल रूप से मध्यप्रदेश के सतना जिले की तहसील रामपुर बघेलान के गाँव छिबौरा के रहने वाले हैं। वह सतना शहर के निशांत विहार कालोनी में रहते हैं। शिवेंद्र ने 17 साल पहले से लकड़ी में गणेश जी की आकृति उकेरने का काम कर रहे हैं।
अपनी इस यात्रा के बारे में शिवेंद्र बताते हैं, “साल 2005 की बात है। उन दिनों तनाव भरे दिन चल रहे थे। अचानक एक स्टिकर देखा जिसमें गणेश जी बने हुए थे। मन आया कि लकड़ी में उकेर कर देखते हैं। घर में जो कुछ मिला चाकू, ब्लेड आदि से सफेद आकुआ की लकड़ी में गणेश जी की आकृति उकेरी। हालांकि वह केवल आभास करा थी कि गणेश जी हैं। दूसरे प्रयास में जो मूर्ति बनी वह ठीक थी। इस तरह से सिलसिला शुरू हो गया।
श्री गणेश की प्रतिमा को लकड़ी में उकेरने की जुनूनी शिवेंद्र सिंह ने सबसे छोटी आकृति अपनी माँ को दे दी और बड़ी मूर्ति को पूजा घर में विराज दिया। अपने बेटे के इस हुनर पर शिवेंद्र सिंह की मां श्यामवती ने गाँव कनेक्शन को बताया कि इनकी राइटिंग अच्छी नहीं है लेकिन गणेश प्रतिमा बनाने का हुनर पता नहीं कहां से आया है। कई बार छोटे छोटे टुकड़े दे देते हैं जिसमें मूर्ति बनाते रहे। अब तो ठीक तरीके से बड़ी मूर्तियां बना लेते हैं।”
शिवेंद्र बताते हैं, “17 साल से तरह-तरह की लकड़ियों में गणेश प्रतिमा उकेरी हैं। तब से अब तक 60-70 मूर्तियां गढ़ चुका हूं। इनमें सबसे छोटी है वह गले में माला के साथ पहनने वाले पेंडेंट के बराबर है। एक इंच की मां ने गले में लटका रखा है। इसके अलावा जो सबसे बड़ी है वह आठ फ़ीट की है उसका वजन पौने दो कुंतल वजन की है। यह मूर्ति आम की लकड़ी में बनी है। इसे बनाने में 1 माह से अधिक का समय लगा था।” शिवेंद्र आगे बताते हैं, “इसी आठ फ़ीट की मूर्ति को बनाने के बात मन आया कि रिकॉर्ड में दर्ज कराएं प्रयास किया लेकिन 2 इंच छोटी होने के कारण रिजेक्ट हो गया।”
यूं तो गणेश उत्सव उत्तर भारत में मनाया जाने लगा है लेकिन महाराष्ट्र राज्य का यह मुख्य त्योहार है लेकिन इससे सटे सीमाई राज्यों में भी गणेश प्रतिमा स्थापना का उत्सव मनाया जाने लगा है।
शिवेंद्र की गणेश मूर्तियों के कलाकृतियों में विशेष यह है कि वह लकड़ी के एक टुकड़े में ही गढ़ी हुई हैं कहने का मतलब यह है कि मूर्तियों में कोई जोड़ नहीं है और न ही किसी दूसरी लकड़ी को मोड़ तोड़ के जोड़ दिया गया हो।
शिवेंद्र बताते हैं, “किसी भी लकड़ी में गणेश जी की मूर्तियां बना देता हूं। इनकी खासियत यह है कि जितनी भी मूर्तियां बनाई वह सब एक ही लकड़ी के टुकड़े में गढ़ी गई हैं। इन मूर्तियों के श्रृंगार में भी किसी तरह का कोई जोड़ नहीं है।”
लकड़ी का चुनाव कैसे करते हैं कहां से लाते हैं का जवाब देते हुए शिवेंद्र ने कहा, “लकड़ी का चुनाव ही जरूरी है, क्योंकि एक कि लकड़ी के टुकड़े में गढ़ना होता है। रही बात लकड़ी कहां से लाते हैं। यही जब नीलाम होती हैं तब अपने काम की खरीद लेते हैं। या फिर कोई दोस्त दे जाता है।’