संकटा चौथ: बघेलखंड और बुंदेलखंड में सूखे सिंघाड़े और तिल गुड़ के साथ मनाया जाता है ये पर्व

मध्यप्रदेश के बघेलखंड में सकट चौथ के दिन सूखे सिंघाड़े से एक विशेष व्यंजन भी बनाया जाता है। यह व्यंजन संकटा चौथ के दिन विशेष रूप से पूरे बघेलखंड और बुंदेलखंड में बनाए जाने वाले सूखे सिंघाड़े की काची को लोग बड़े चाव से खाते हैं।
Sakat festival

सतना (मध्य प्रदेश)। विमला चौधरी चूल्हे पर रखी कढ़ाही में सिंघाड़े का आटा भूनने में व्यस्त थीं, अभी उन्हें गुड़ और तिल के लड्डू भी तो बनाने थे, दूसरे दिन उन्हें संकटा चौथ की पूजा जो करनी थी।

मध्य प्रदेश के सतना जिले के कैमा कोठार गाँव की विमला चौधरी (37 वर्ष) कई वर्षों से संकटा चौथ का व्रत रखती आ रही हैं। वो गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “”सूखा हुआ सिंघाड़ा बाजार से लाकर कुछ दिन धूप में रखते हैं। इसके बाद खलबट्टा पर कूट कर इसका महीन आटा तैयार करते हैं और तिलवा चौथ के दिन इस कढ़ाई में भूनकर गुड़ के शिरा में मिला देते हैं। इसके बाद गरमा गरमा थाली में परोसते हैं। ठंडा होने के बाद मिठाई की तरह काट लेते हैं।”

विमला चौधरी आगे कहती हैं, “आज कल तो बाजार में सूखे सिंघाड़े का आटा भी आने लगा तो महिलाएं सीधे आटा ही खरीद ला रही हैं। सूखे सिंघाड़े से बने पकवान को काची कहा जाता है।”

सर्दियों में आपने उबले हुए सिंघाड़े को मिर्च और नमक के साथ खाया ही होगा। इसे सूख जाने के बाद भी खाया जाता है। सूखे सिंघाड़े के आटे से कई तरह के लजीज व्यंजन भी बनाए जाते हैं। मध्यप्रदेश के बघेलखंड में तो सूखे सिंघाड़े से एक विशेष व्यंजन भी बनाया जाता है। यह व्यंजन संकटा चौथ के दिन विशेष रूप से पूरे बघेलखंड और बुंदेलखंड में बनाए जाने वाले सूखे सिंघाड़े की काची को लोग बड़े चाव से खाते हैं।

पोइंधा कला की 35 साल की प्रीति कई सालों से संकटा चौथ का व्रत रखती आ रही हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन से कहा, ”तिलवा चौथ की रात को चांद की पूजा की जाती है। काची के अलावा शकरकंद और तिल गुड़ के लड्डू भी बनाते हैं। यह विशेष तौर पर महिलाओं का त्यौहार हैं। हालांकि यह भाइयों के लिए होता है।”

संकटा चौथ या तिल चौथ को भाई और संतान की सलामती का व्रत माना जाता है। बघेलखंड और बुंदेलखंड में स्थानीय कथाएं प्रचलित हैं। इन कथाओं में भाई को ज्यादा महत्व दिया गया है। इसी साल 100 वर्ष की हुई सुखवरिया चौधरी गाना गाते हुए बताती हैं, ”तिलवा चौथ का व्रत भाई के लिए होता है। इसके पीछे की एक कहानी है कि एक भाई के बहन नहीं होती और एक बहन के कोई भाई नहीं था। बहन एक दिन रोने लगी थी तो वह भाई उसे दिलासा देता है और उससे अपनी कलाई में रक्षा सूत्र बंधवा लेता है। इस तरह से बहन को भाई और भाई को बहन मिल जाती है।”

100 वर्ष की हुई सुखवरिया चौधरी

100 वर्ष की हुई सुखवरिया चौधरी

कई जगह इस व्रत करें संतान की सलामती को लेकर भी बातें कही जाती है। 52 वर्ष की फूलमती नामदेव गाँव कनेक्शन से कहती है ” यह व्रत संतान की सलामती के लिए भी कहा जाता है। बाकी तो पता नहीं लेकिन सब रखते आए हैं तो रख रहे हैं व्रत।”

तिल चौथ को लेकर रामायण कथा वाचक ऋषि पंडित ने गाँव कनेक्शन को बताया, ”सनातन धर्म के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकटा, तिल, लंबोदर और मार्गी चौथ के नाम से जाना जाता है। इस दिन तिल का भोग भगवान गणेश को लगाया जाता है। यह व्रत बघेलखंड में बड़े उत्साह से महिलाएं रखती हैं। यह व्रत संतान की दीर्घायु के लिए महिलाएं रखती हैं। व्रत के पराण में भी तिल से बने चीजें खाने का महत्व है।”

ऐसे बनाएं सिंघाड़े की काची

10 से 12 लोगों के लिए सिंघाड़े की काची के लिए सामग्री

01 किलोग्राम सूखे सिंघाड़े

500 ग्राम गुड़

03 लीटर पानी

सूखे हुए सिंघाड़ों को खलबट्टी पर कूट कर महीन पीस कर आटा बना लेना है। इस आटे को धीमी आंच में भूनना है। इस भुने हुए आटे को गुड़ के शिरे में तरीके से मिला देना। यह देखना जरूरी है कि दाने न बने। इसके बाद गर्म काची को थाली में परोस लें। ठंडा होने पर इसी मिठाई की तरह चौकोर टुकड़ों में काट लें और भी खाने को दीजिए।

शिरा बनाने के लिए कढ़ाई में 3 लीटर पानी में 500 ग्राम गुड़ को डाल दें। शिरा बन जाने के बाद भुना हुआ सिंघाड़े का आटा मिला दें। इसके लिए बिल्कुल वैसी ही प्रक्रिया करनी है जैसे दूध से खोवा बनाते हैं। बस यह ध्यान रखना है कि लिक्विड फार्म में ही रहे। ताकि थाली में फैल जाए। 

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