दोस्त ने बलात्कार करने की कोशिश की; डिप्रेशन में गईं, लेकिन आज लड़कियों के हक़ लिए लड़ रहीं हैं

हर दिन लड़कियों के साथ रेप की ख़बरें आती रहती हैं, कुछ लड़कियाँ जो बच तो जाती हैं, लेकिन ज़िंदगी भर उस घटना को नहीं भुला पाती हैं। ऊषा विश्वकर्मा के साथ भी ऐसी ही एक घटना हुई थी, जिसके बाद उन्होंने लड़कियों की हक़ की लड़ाई लड़नी शुरू की।
red brigade

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार साल 2022 की तुलना में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अगर आंकड़ों से हटकर बात करें तो हर दिन अख़बारों, टीवी चैनलों पर बलात्कार और छेड़खानी की ख़बरें आती रहती हैं। इनमें कुछ ऐसी लड़कियाँ होती हैं, जो किसी तरह से बच तो जाती हैं, लेकिन ज़िंदगी भर उस घटना को भुला नहीं पाती हैं।

कुछ ऐसी ही कहानी लखनऊ में रहने वाली उषा विश्वकर्मा की है, आज वो रेड ब्रिगेड के ज़रिए महिलाओं और लड़कियों के हक़ के लिए आवाज़ उठाती हैं, लेकिन साल 2006 में उनके साथ भी ऐसी ही घटना हुई थी।

उषा विश्वकर्मा उस दिन को याद करते हुए गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मेरे साथ 2006 में एक घटना हुई, जिसे याद करके आज भी मेरी रूह काँप जाती है; ये बात तब की है जब में शिक्षा पर काम करती थी और उस समय मेरे साथ एक सहयोगी काम करते थे, मैंने सोचा भी नहीं था वो दोस्त के रूप में एक हैवान है।”

आज ऊषा लड़कियों को आत्मरक्षा का गुर सिखाती हैं, जिसे लड़कियाँ खुद को सुरक्षित रख सकें।

आज ऊषा लड़कियों को आत्मरक्षा का गुर सिखाती हैं, जिसे लड़कियाँ खुद को सुरक्षित रख सकें।

“वो शख़्स जिस पर आप विश्वास करते हो और फिर वही आपके विश्‍वास की इमारत को रौंद कर चला जाता है; लोग बोलते हैं कि लड़कियों का जींस पहना सही नहीं है, लेकिन अगर उस दिन मैंने जींस ना पहनी होती तो शायद में ज़िंदा भी नहीं बचती। ” उषा ने आगे बताया।

चेहरे पर गुस्से और डर का भाव लिए वो आगे कहती हैं, “एक दिन जब मैं अपने सहयोगी के घर वाउचर लेने गई तो, अचानक से दरवाज़ा बंद हुआ; एक पल के लिए थोड़ा घबराई फिर भी अनुमान नहीं लगा पाई कि साथी के दिमाग में क्‍या चल रहा है? थोड़ी ही देर में किसी ने पीछे से पकड़कर खींचना शुरु कर दिया, समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ये मेरे साथ क्‍या हो रहा है? जब उसने ज़ोर ज़बर्दस्ती शुरू किया; तो उस को धक्‍का दिया और गाल पर जोरदार तमाचा मारकर वहाँ से बच कर भाग निकली।”

“लेकिन देश में अभी भी बहुत सी ऐसी लड़कियाँ हैं जो इतनी खुशनसीब नहीं होती; भारत में आज भी रेप केसेस होते हैं, ” उषा ने आगे कहा।

उस दिन उषा बच तो गईं, लेकिन वो अंदर से टूट गईं, घर वालों को कुछ न समझ में आया तो अस्पताल में भर्ती करवाया, लेकिन जब कुछ सुधार ना समझ में आया तो झाड़ फूंक भी करवाया, यहाँ तक की दिमागी डॉक्टर को भी दिखाया।

आखिर में जब उषा को समझ में आया कि लड़कियों के लिए सिर्फ शिक्षा ही ज़रूरी नहीं उनको शक्तिशाली बनाना भी ज़रूरी है। उन्होंने 15 लड़कियों की एक टीम बनाई जो जगह जगह जाकर नुक्कड़ नाटक और लड़कियों से छेड़छाड़ करने वाले लड़कों के ख़िलाफ आवाज़ उठाने लगीं।

फिर लड़कियों ने तय किया कि एक ड्रेस कोड होना चाहिए. ड्रेस कोड लाल कुर्ता, काली सलवार और काला दुपट्टा बनाया गया। उषा आगे कहती हैं, “इसके पीछे वजह यह थी कि लाल रंग संघर्ष, तो काला रंग विरोध का होता है।”

इसी बीच एक बार उनकी टीम एक नुक्कड़ नाटक कर रही थी, तभी एक लड़के ने बोला ‘क्या बात है पावरफुल रेड ब्रिगेड’ जा रही है यह नाम लड़कियों को बहुत पसंद आया और तब से हमारे ग्रुप का नाम रेड ब्रिगेड रख दिया।

साल 2012 में निर्भया कांड के समय जब पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे थे तब रेड ब्रिगेड ने भी जगह जगह जा कर प्रोटेस्ट किया था। तभी उषा के मन में ख्याल आया की निर्भया अकेली नहीं थी फिर भी उसके साथ ये हादसा हुआ। इसलिए उन्होंने ठाना की वो लड़कियों को सशक्त बनाएँगी तब ही से मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग शुरू की।

इसके सोशल मीडिया पर वीडियो बनाकर डाले गए तो अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया से लोगों ने इंडिया में आकर उनके साथ मार्शल आर्ट्स सिखाना शुरू किया। पीड़िताओं से मिलकर उनके साथ हुई घटना के अनुसार ही उन्होंने 15 तकनीक बनाई और उस तकनीक का नाम दिया निशस्त्र और इसी तकनीक से अब रेड ब्रिगेड पूरे देश में लड़कियों को ट्रेनिंग दे रही हैं। ये तीन दिन की ट्रेनिंग होती है, जिसमें शारीरिक से लेकर मानसिक रूप से लड़कियों को सशक्त बनाया जाता है।

उषा विश्वकर्मा को साल 2014 में कौन बनेगा करोड़पति से ऑफर आया था। वहाँ गईं और बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के साथ हॉट सीट पर बैठीं और 12 लाख रुपये भी जीते। इसके बाद पूरी दुनिया में रेड ब्रिगेड मशहूर हो गई।

2012 की उषा विश्वकर्मा और 2023 की उषा में फर्क है। आज की ऊषा देश की हर एक लड़की के साथ खड़ी हैं और देश की महिलाओं को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बना रही हैं। 

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