इंदौर (मध्य प्रदेश)। किसान भाइयों को अपनी खेती में कम लागत से अच्छी फसल की पैदावार के लिए जैविक खेती करनी चाहिए जिससे उनकी फसल की लागत भी कम हो जाएगी और उत्पादन भी अधिक होगा। किसान अपनी फसल में रासायनिक खाद का प्रयोग करते हैं जो कि जैविक खाद की तुलना में काफी महंगा पड़ता है। कुछ आसान विधियों से वर्मी कम्पोस्ट घर पर ही बना सकते हैं।
गाय के गोबर को पोषण का सर्वाधिक श्रेष्ठ विकल्प माना जाता हैं जिसमे पौधों के लिए आवश्यक सभी सूक्ष्म तत्व संतुलित मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। इन सूक्ष्म तत्वों को पौधे या फसलें बड़ी आसानी से अवशोषित कर लेती हैं। गोबर में उपस्थित सूक्ष्मजीव मृदा में उपस्थित जैव-भार के विघटन का भी कार्य करते हैं। खाद बनाने के लिए आजकल कई विधियां प्रचलन में हैं इनमे से कम्पोस्ट, नाडेप या वर्मी कम्पोस्ट प्रमुख हैं।
प्रचलन में है वर्मी कम्पोस्ट विधि
वर्मी कम्पोस्ट विधि का प्रचलन अन्य विधियों की तुलना में कही अधिक है। इस विधि में खाद का निर्माण अपेक्षाकृत कम समय में हो जाता है। इस विधि से प्राप्त खाद की गुणवत्ता भी अधिक होती है। वर्मी कम्पोस्ट विधि से प्राप्त खाद का भण्डारण भी ज्यादा सहजता से किया जा सकता है। इन सब कारणों से इस विधि के प्रति किसानों में स्वतः ही आकर्षण उत्पन्न हो रहा है।
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधियां
पेड़ विधि
पेड़ के चारों ओर गोबर गोलाई में डाला जाता है। हर रोज गोबर को डालकर धीरे-धीरे इस गोल चक्र को पूरा किया जाता है। पहली बार प्रक्रिया शुरू करते समय गोबर के ढेर में थोड़े से केंचुए डाल कर गोबर को जूट के बोरे से ढक दिया जाता है। नमी के लिए बोर के ऊपर समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है। केंचुए डाले गए गोबर को खाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हैं और अपने पीछे वर्मी कम्पोस्ट बना कर छोड़ते जाते हैं। इस तैयार वर्मी कम्पोस्ट को इकठ्ठा करके बोरों में भरकर रख लिया जाता है।
बेड विधि
छायादार जगह पर जमीन के ऊपर 2-3 फुट की चौड़ाई और अपनी आवश्यकता के अनुरूप लम्बाई के बेड बनाये जाते हैं। इन बेड़ों का निर्माण गाय-भैंस के गोबर, जानवरों के नीचे बिछाए गए घासफूस-खरपतवार के अवशेष आदि से किया जाता है। ढेर की ऊंचाई लगभग लगभग 01 फुट तक रखी जाती है। बेड के ऊपर पुवाल और घास डालकर ढक दिया जाता है। एक बेड का निर्माण हो जाने पर उसके बगल में दूसरे उसके बाद तीसरे बेड बनाते हुए जरूरत के अनुसार कई बेड बनाये जा सकते हैं। शुरुआत में पहले बेड में केंचुए डालने होते हैं जोकि उस बेड में उपस्थित गोबर और जैव-भार को खाद में परिवर्तित कर देते हैं। एक बेड का खाद बन जाने के बाद केंचुए स्वतः ही दूसरे बेड में पहुंच जाते हैं। इसके बाद पहले बेड से वर्मी कम्पोस्ट अलग करके छानकर भंडारित कर लिया जाता है तथा पुनः इस पर गोबर आदि का ढेर लगाकर बेड बना लेते हैं।
ये भी पढ़ें- सीए की पढ़ाई छोड़कर शुरु किया वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम, लाखों में होती है कमाई, किसानों को भी देते हैं ट्रेनिंग
टटिया विधि
प्लास्टिक की बोरी या तिरपाल से बांस के माध्यम से टटिया बनाकर वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। इस विधि में प्लास्टिक की बोरियों को खोलकर कई को मिलाकर सिलाई की जाती है। फिर बांस या लट्ठे के सहारे चारो ओर से सहारा देकर गोलाई में रख कर उसमें गोबर डाल दिया जाता है। गोबर में केंचुए डालकर टटिया विधि से वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। जिसमें लागत न के बराबर आती है।
(कृषि एक्सपर्ट- डॉ जितेन्द्र सिंह, प्रोफेसर, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर)
ये भी पढ़ें:- कहीं गलत तरीके से तो नहीं बना रहे जैविक खाद, यह तरीका है सही
खेती किसानी से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप
ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।