लखनऊ। दवा से लेकर ब्यूटी प्रोडक्ट और खाने-पीने की चीजों में इस्तेमाल होने वाले मेंथा ऑयल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक है। यूपी समेत देश के कई हिस्सों में फरवरी से लेकर अप्रैल मध्य तक इसकी रोपाई होती है।
नकदी फसल में शुमार मेंथा की सबसे ज्यादा खेती यूपी के बाराबंकी, चंदौली, बनारस, सीतापुर समेत कई जिलों में सबसे ज्यादा होती है। 90 दिनों में तैयार होने वाली इस फसल में किसान कुछ ही समय में मुनाफा कमा सकते हैं। लेकिन इसमें लागत भी काफी ज्यादा आती है।
सरकार की तरफ से सीमैप लगातार इसका प्रचार-प्रसार कर रही है तो कई गैर सरकारी संस्थाएं भी मेंथा की प्रगतिशील खेती के लिए किसानों को प्रेरित करते हैं। सीमैप ने सिम क्रांति और सिम कोसी समेत कई किस्में विकसित की हैं। तो एएसआई जैसी संस्थाएं शुभ मिंट प्रोजेक्ट के जरिए किसानों को कम लागत में ज्यादा पैदावार के तरीके बता रही हैं। मेंथा में सबसे जरूरी फैक्टर इसकी पौध और रोपाई होती है।
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सीमैप पूर्व वैज्ञानिक और एएसआई के टेक्निकल डॉयरेक्टर डॉ. एसपी सिंह कहते हैं, “मेंथा की खेती में लागत तो आती है, लेकिन अगर किसान शुरुआत से ही कुछ बातों का ध्यान रखे तो मुनाफा भी उसी अनुमात में होता है। इसके लिए सबसे जरुरी अच्छी किस्म की पौध और लाइन से लाइन में रोपाई।”
वो आगे बताते हैं, “मेंथा को कतार में लगाना चाहिए, “लाइन से लाइन की दूर 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। लेकिन अगर यही रोपाई गेहूं काटने के बाद फसल लगानी है तो लाइन से लाइन की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए।”
वैज्ञानिकों के मुताबिक ज्यादा उत्पादन के चक्कर में किसान अक्सर उर्वरकों (डीएपी-यूरिया) का अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं। लेकिन मेंथा को डीएपी की जरूरत नहीं, इसलिए किसानों को चाहिए सिंगल सुपर फास्फेट डालें। डॉ. एसपी सिंह बताते हैं, “एक बोरी डीएपी 1100 रुपए की मिलती है, जबकि एसएससी महज 350-400 रुपए की। इसी तरह कतार में लगाने से खेत में ज्यादा पौधे लगते हैं। इसी तरह हम लोगों ने निराई गुड़ाई का खर्च बचाने के लिए किसानों को पुआल से मल्चिंग (पौधों के बीच के खाली स्थान को पराली से ढकना) शुरु कराया है।”
एक बोरी डीएपी 1100 रुपए की मिलती है, जबकि एसएससी महज 350-400 रुपए की। इसी तरह कतार में लगाने से खेत में ज्यादा पौधे लगते हैं। इसी तरह हम लोगों ने निराई गुड़ाई का खर्च बचाने के लिए किसानों को पुआल से मल्चिंग शुरु कराया है।
डॉ.एसपी सिंह, कृषि वैज्ञानिक
बाराबंकी में मसौली के पास पुरवा गांव में रहने वाले राम सुरेश बताते हैं, पहले सिंचाई और निराई में काफी खर्च होता था, वैज्ञानिकों की सलाह मानी तो खर्च तो कम हुआ ही फसल भी अच्छी जा रही है।”
बाराबंकी में ही सूरतगंज ब्लॉक में टांडपुर गांव के नरेद्र शुक्ला ने भी इस बार वैज्ञानिक तरीकों को आजमाकर मेंथा उगाई है। वो बताते हैं, हमनें पहले अपने खेती की मिट्टी की जांच कराई उसके बाद उसमें फसल लगाई,पहले हम लोग अपनी समझ से खाद डालते थे, लेकिन जांच में पता चला कि यूरिया के साथ पोटाश और सल्फर की खेत में कमी है, जो वो भी डाली। हमने फरवरी में रोपाई की थी, पिछले साल की अपेक्षा इस बार फसल काफी अच्छी है।’
मेंथा के किसान इन बातों का रखें ध्यान
- हमेशा मिंट की उन्नत किस्मों का करें चुनाव
- 3 से 4 इंच से ज्यादा बड़ी न हो मेंथा की पौध
- छोटी क्यारियों में कतार विधि से करिए मेंथा की खेती
- लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटी. रखें
- गेहूं काटकर मेंथा लगाने वाले लाइन से लाइन की दूरी 30 सेटीं और पौधों के बीच की दूरी रखें 10 सेंटी
- खेत में पूरब-पश्चिम में मेंथा की रोपाई करें किसान
- निराई-गुड़ाई से बचने के लिए मेंथा में करें पुवाल (पायरा) की मल्चिंग
- मात्र 200-300 रुपए के खर्च में मल्चिंग की ये नई तकनीकी किसानों के बचा सकती है हजारों रुपए