जौ की करें अभी बुवाई, बाजार में मांग बढ़ने से किसानों को हो सकता है फायदा

जौ कई उत्पाद बनाने में काम आता है, जैसे दाने, पशु आहार, चारा और अनेक औद्यौगिक उपयोग (शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उत्पाद) बनाने के काम आता है।
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लखनऊ। जौ रबी मौसम में बोई जाने वाली प्रमुख फसल है, पिछले कुछ वर्षों में बाजार में जौ की मांग बढ़ने से किसानों को इसकी खेती से फायदा भी हो रहा है।

देश में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और जम्मू व कश्मीर में जौ की खेती की जाती है। देश में आठ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हर वर्ष लगभग 16 लाख टन जौ का उत्पादन होता है।


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जौ कई उत्पादों में काम आता है, जैसे दाने, पशु आहार, चारा और अनेक औद्यौगिक उपयोग (शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उत्पाद) बनाने के काम आता है। जौ की खेती अधिकतर कम उर्वरा शक्ति वाली भूमियों में क्षारीय और लवणीय भूमियों में और पछेती बुवाई की परिस्थितियों में की जाती है। लेकिन उन्नत विधियों द्वारा जौ की खेती करने से औसत उपज अधिक प्राप्त की जा सकती है।

अधिक उत्पादन पाने के लिए अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों का चयन करें। जौ की प्रजातियां में उत्तरी मैदानी क्षेत्रों के लिए ज्योति, आजाद, के-15, हरीतिमा, प्रीति, जागृति, लखन, मंजुला, नरेंद्र जौ-1,2 और 3, के-603, एनडीबी-1173 जौ की प्रमुख किस्में हैं।

बुवाई का सही समय

जौ के लिए समय पर बुवाई करने से 100 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की जरूरत होती है। यदि बुवाई देरी से की गई है तो बीज की मात्रा में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर देनी चाहिये। जौ की बुवाई का उचित समय नवम्बर के प्रथम सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक होता है लेकिन देरी होने पर बुवाई मध्य दिसम्बर तक की जा सकती है। बुवाई पलेवा करके ही करनी चाहिये तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेमी. और देरी से बुवाई की स्थिति में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी. रखनी चाहिये।

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बीजोपचार

अधिक उपज प्राप्त करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बहुत से कीट और बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए बीज का उपचारित होना बहुत आवश्यक है। कंडुआ व स्मट रोग की रोकथाम के लिए बीज को वीटावैक्स या मैन्कोजैब 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। दीमक की रोकथाम के लिए 100 किग्रा. बीज को क्लोरोपाइरीफोस (20 ईसी) की 150 मिलीलीटर या फोरमेंथियोन (25 ईसी) की 250 मिलीलीटर द्वारा बीज को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये।

भूमि और उसकी तैयारी

जौ की खेती अनेक प्रकार की भूमियों जैसे बलुई, बलुई दोमट या दोमट भूमि में की जा सकती है। लेकिन दोमट भूमि जौ की खेती के लिए सर्वोत्तम होती है। क्षारीय व लवणीय भूमियों में सहनशील किस्मों की बुवाई करनी चाहिये। भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिये।

भारत में प्रमुख उत्पादक राज्यभारत में प्रमुख उत्पादक राज्य

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जौ की अधिक पैदाकर प्राप्त करने के लिए भूमि की अच्छी प्रकार से तैयारी करनी चाहिये। खेत में खरपतवार नहीं रहना चाहिये और अच्छी प्रकार से जुताई करके मिट्‌टी भुरभुरी बना देनी चाहिये। खेत में पाटा लगाकर भूमि समतल और ढेलों रहित कर देनी चाहिये। खरीफ फसल की कटाई के पश्चात्‌ डिस्क हैरो से जुताई करनी चाहिये। इसके बाद दो क्रोस जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिये। अन्तिम जुताई से पहले खेत में 25 किलो. एन्डोसल्फॅान (4 प्रतिशत) या क्यूनालफॉस (1.5 प्रतिशत) या मिथाइल पैराथियोन (2 प्रतिशत) चूर्ण को समान रूप से छिड़कना चाहिये।

सिंचाई

जौ की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए चार-पांच सिंचाई पर्याप्त होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद करनी चाहिये। इस समय पौधों की जड़ों का विकास होता है। दूसरी सिंचाई 40-45 दिन बाद देने से बालियां अच्छी लगती हैं। इसके बाद तीसरी सिंचाई फूल आने पर और चौथी सिंचाई दाना दूधिया अवस्था में आने पर करनी चाहिये। 

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