लखनऊ। जनवरी-फरवरी महीने में आम की बाग में कई तरह के रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे आम उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है। ऐसे में किसान अभी से प्रबंधन करके नुकसान से बच सकते हैं।
आम की बागवानी उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, ओड़िसा, महाराष्ट्र, और गुजरात में व्यापक स्तर पर की जाती है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत में विश्व में सबसे अधिक आम उत्पादन करने वाला देश है। इसके साथ ही आम के निर्यातक दस प्रमुख देशों में से पांचवें स्थान पर है।
इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि समय रहते फसल में आने वाली समस्याओं को पहचाना जाये व उनकी रोकथाम किया जाए। आम की फ़सल पर लगने वाले रोगों और उनके प्रबंधन के के बारे में बता रहे हैं क्षेत्रीय केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, लखनऊ के संयुक्त निदेशक डॉ. टीए. उस्मानी और वैज्ञानिक सहायक राजीव कुमार…
आम पर लगने वाले प्रमुख रोग
सफ़ेद चूर्णी रोग/दहिया रोग (Powdery mildew):
बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बादल वाला हो या बरसात हो रही हो तो यह बीमारी लग जाती है। इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफ़ेद दिखाई पड़ने लगता है। इससे मंजरियां और फूल सूखकर गिर जाते हैं।
रोकथाम: इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर पांच प्रतिशत वाले गंधक (दो ग्राम/लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें।
इसके अतिरिक्त डायनोकेप (कैराथेन एक मिली/लीटर) घोलकर छिड़काव करने से भी बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में बौर आने के समय मौसम असामान्य रहा हो वहां हर हालत में सुरक्षात्मक उपाय के आधार पर 0.2 प्रतिशत वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें और आवश्यकतानुसार दोहराएं।
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कालावूणा रोग/एन्थ्रेक्नोज रोग (Antracnose):
यह बीमारी अधिक नमी वाले क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। इसका आक्रमण पौधों के पत्तों, शाखाओं, और फूलों जैसे मुलायम भागों पर अधिक होता है। प्रभावित हिस्सों में गहरे भूरे रंग के धब्बे आ जाते हैं।
रोकथाम: 0.2 प्रतिशत जिनैब मिश्रण का छिड़काव करें। जिन क्षेत्रों में इस रोग की सम्भावना अधिक हो वहां सुरक्षा के तौर पर कलियां विकसित होने से पहले ही उपरोक्त घोल का छिड़काव करें।
ब्लैक टिप/कोइली रोग (BlackTip)
यह रोग ईंट के भट्टों के आसपास के क्षेत्रों में उससे निकलने वाली गैस सल्फर डाई ऑक्साइड के कारण होता है। इस बीमारी में सबसे पहले फल का अग्रभाग काला पड़ने लगता है, इसके बाद उपरी हिस्सा पीला पड़ता है। तत्पश्चात गहरा भूरा और अंत में काला हो जाता है। यह रोग दशहरी किस्म में अधिक होता है।
रोकथाम: इस रोग से फसल बचाने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि ईंट के भट्ठों की चिमनी आम के पूरे मौसम के दौरान लगभग 50 फिट ऊंची रखी जाए। इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही (संभवतः अप्रैल में) बोरेक्स 1% (एक किग्रा/100 लीटर) पानी की दर से बने घोल का छिड़काव करें। फलों के बढ़वार की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान आम के पेडों पर 0.6 प्रतिशत बोरेक्स के दो छिड़काव फूल आने से पहले और तीसरा फूल बनने के बाद छिड़काव करें। जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाएं तो 15 दिन के अंतराल पर तीन छिड़काव करना चाहिए।
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गुच्छा/गुम्मा रोग (Malformation)
यह एक प्रकार का आम पेड़ों पर होने वाला एक रोग है। प्रायः इस रोग के कारकों में फ्यूजेरियम सबग्लुट्टीनेन्स नामक फफूंद का उल्लेख होता है। लेकिन अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि इस रोग का कारण पौधे में होने वाले हार्मोनों का असंतुलन हैं। गुम्मा रोग से ग्रसित आम के पेड़ में पत्तियों और फूलों में असामान्य वृद्धि और फल विकास अवरुद्ध हो जाता है। ऐसा पाया गया है कि आम की भारतीय प्रजातियां इस रोग से अधिक ग्रसित होती हैं।
लक्षण : नई पत्तियों और फूलों की असामान्य वृद्धि, टहनियों पर एक ही स्थान पर अनगिनत छोटी–छोटी पत्तियां निकल आना, बौर के फूलों का असामान्य आकार होना, फूल का गिर जाना, फल निर्माण अवरुद्ध हो जाना आदि।
यह दो प्रकार का होता है…
आम के पत्तियों का गुम्मा (Leaf malformation) : आम की टहनी पर एक पट्टी के स्थान पर अनगिनत छोटी-छोटी पत्तियों का गुच्छा बन जाना, तने की गाठों के बीच का अंतराल अत्यधिक कम हो जाना, पत्तियों का कड़ा हो जाना। बाद में यह गुच्छा नीचे की ओर झुक जाता है, जो बन्ची टॉप जैसा दिखता है।
आम के फूलो का गुम्मा (Floral Malformation): इस रोग से ग्रसित बौर की डाली अधिक मोटी और अधिक शाखायुक्त हो जाती है, जिसपर दो से तीन गुना अधिक असामान्य पुष्प बन जाते हैं जो कि फल में परिवर्तित नहीं हो पाते हैं। अथवा यदि इन पुष्पों से फल बनता भी है तो जल्द ही सूख कर गिर जाते हैं।
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रोकथाम: इस बीमारी का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है।
1) आम के पौधे को गुम्मा रोग से बचाने के लिए रोगग्रस्त पुष्पों की मंजरियों को 30-40 सेमी नीचे से कटाई कर दें और धरती में खोद कर दबा दें।
2) उपचार के लिए प्रारंभिक अवस्था में जनवरी फरवरी माह में बौर को तोड़ दें और अधिक प्रकोप होने पर एनएए 200 पीपीएम वृद्धि होरमोन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर दें और कलियां आने की अवस्था में जनवरी के महीने में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है क्योंकि इससे न केवल आम की उपज बढ़ जाती है। इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है।
3) चार मिलीलीटर प्लानोफिक्स प्रति नौ लीटर पानी में घोलकर फरवरी-मार्च के महीने में छिड़काव करें।
पत्तों का जलना (Leaf scorching/burning)
उत्तर भारत में आम के कुछ बागों में पोटेशियम की कमी से और क्लोराइड की अधिकता से पत्तों के जलने की गंभीर समस्या है। इस रोग से ग्रसित वृक्ष के पुराने पत्ते दूर से ही जले हुए जैसे दिखाई देते हैं।
रोकथाम: इस समस्या से फसल को बचाने के लिए पौधों पर पांच प्रतिशत पोटेशियम सल्फ़ेट के छिड़काव की सिफारिश की जाती है। यह छिड़काव उसी समय करें जब पौधों पर नई पत्तियां आ रही हों। ऐसे बागों में पोटेशियम क्लोराइड उर्वरक प्रयोग न करने की सलाह भी दी जाती है।
उल्टा सुखा रोग/डाई बैक रोग (Dieback)
इस रोग में आम की टहनी ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है और धीरे-धीरे पूरा पेड़ सूख जाता है। यह फफूंद जनित रोग होता है, जिससे तने की जलवाहिनी में भूरापन आ जाता है और वाहिनी सूख जाती है और जल ऊपर नहीं चढ़ पाता है।
रोकथाम: इसके रोकथाम के लिए रोग ग्रसित टहनियों के सूखे भाग से 25 सेमी. नीचे से काट कर जला दें। कटे स्थान पर बोर्डो पेस्ट लगाए और अक्टूबर माह में कॉपर ऑक्सीकलोराइड का 0.3 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। साथ ही साथ ट्राईकोडर्मा युक्त गोबर की सड़ी खाद चार-पांच किग्रा/पेड़ डालें।
तने से गोंद निकलना (Gummosis)
यह रोग यांत्रिक चोट या रगड़ के कारण होता है, जिससे कि ग्रसित भाग से गोंद निकलना शुरू हो जाता है, इससे उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ता है।
रोकथाम: ग्रसित भाग हो शार्प चाकू से साफ़ कर लें और कापर ऑक्सीक्लोराइड का 0.3 प्रतिशत घोल का लेप लगाएं अथवा देशी गाय के गोबर का स्लरी बनाकर लेप लगाएं।
झुमका रोग (Mango clustering)
इस रोग में आम का आकार मटर के दाने के बराबर रह जाता है। इसका मुख्य कारण पुष्पावस्था में कीटनाशक का छिड़काव जिसकी वजह से सत प्रतिशत पर-परागण की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हुई अर्थात आधा अधूरा ही हुआ जिसके फलस्वरूप फ्रूट सेटिंग नहीं हुआ और आकार मटर के दाने के बराबर ही रह गया।
रोकथाम: 1.पुष्पावस्था के समय किसी भी प्रकार के कीटनाशक व रोगनाशक का प्रयोग न करें।
2.कीट आकर्षक फसलें जैसे गेंदा, गुलदाउदी व सरसों आदि का अन्तःफसल लगाएं, जिससे की बाग़ में पर-परागण करने वाले कीट की संख्या बनी रहे।